कुछ बुद्धिजीवी तर्क दे रहे हैं कि मुगल मध्यएशिया से आये थे जहां हरियाली थी, रेगिस्तान नहीं और वहाँ वास्तु संस्कृति थी। तो सुनो भैये, मध्यएशिया का अधिकांश भाग घास के मैदान हैं जिन्हें स्टेपी कहा जाता है।
पामीर व कुछ उज्बेक वादियों को छोड़कर वहाँ सदैव ही खानाबदोश चरवाहे ही रहे हैं जो घोड़े, औरत, पनीर, कूमिस, नमदे के तंबू और तलवार, इसके अलावा कुछ नहीं जानते थे।
बर्बर खानाबदोशों की लंबी श्रृंखला वहां रही है- सीथियन, यूची, जियांग्नू, तुर्क, मंगोल इनमें से जो भी भारतीय प्रभाव में आया वही सभ्यता का पाठ पढ़ सका।
हिंदुओं ने शक, कुषाण व हूणों व तुर्कों को सभ्य बना दिया लेकिन अरबों द्वारा लाये इस्लाम ने उनके अंदर के बर्बर तत्व को फिर जगा दिया क्योंकि ‘माल ए गनीमत’, कुछ भी अपराध करने पर भी जन्नत की गारंटी उनके बर्बर स्वभाव को सूट करती थी।
तुर्क पहले मुस्लिम बने और उन्होंने मध्यएशिया के इस्लाम पूर्व की अधिकांश रचनाओं को तोड़ दिया या मस्जिद मकबरों में बदल दिया, जो सभी हिंदू, बौद्ध पारसी थे।
कला मर गई। इसीलिये तैमूर भारत से दो सौ शिल्पी बंदी बनाकर ले गया।
आज आप समरकंद वगैरह एकाध जगह मध्यकालीन इमारतें देखते हैं वह उन्हीं बंदी शिल्पियों और उनके धर्मांतरित वंशजों ने बनाई हैं।
इसी से समझ लीजिए कि समरकंद में तैमूर के मकबरे को ‘सूर सादूल’ कहा जाता है जो ‘सूर्य शार्दूल’ का अपभ्रंश है और संभवतः उसपर अंकित रहे होंगे।
मुगलिया स्थापत्य?
My foot.