सोशल मीडिया पर कहीं पढ़ा, जी न्यूज परिवार के ‘डीएनए’ में काम करने वाली एक पत्रकार ने लिखा ”जिन 70 प्रतिशत महिलाओं को आर्गेज्म नहीं मिलता तो वे कहीं न कहीं तो तलाशेंगी। नैतिकता सिर्फ स्त्री के लिए क्यों?”
एक पोस्टर से बात बनती नहीं। विदुषी और उनकी पूरी मित्र मंडली अध्येयताओं से भरी हुई। उन्हें एक पोस्टर की जगह विश्लेषण का लिंक साझा करना चाहिए। यह 70 प्रतिशत महिलाओं का जो डाटा है, उसके सर्वेक्षण के लिए सैंपल साइज क्या लिया गया? उसमें महानगर, कस्बे और गांवों की महिलाओं की भागीदारी कितनी थी?
इसमें राजपूत और ब्राम्हणों का प्रतिशत अलग—अलग करें तो क्या आंकड़ा बैठेगा? दलित और ओबीसी महिलाओं के बीच सर्वेक्षण को क्या परिणाम मिला?
इन सारी बातों से 70 प्रतिशत का आंकड़ा मुंह छुपाता फिर रहा है। यकिन से लिख रहा हूं कि यदि डीएनए वाले सुधीर चौधरी के हाथ में यह कॉपी पहुंची गई तो वे इसे कचड़े के डब्बे में फेंक देंगे।
अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल कि हिन्दू और मुसलमान लड़कियों में आर्गेज्म की तलाश किसे अधिक है? मुसलमान लड़कियों में पसमंदा मुसलमान लड़कियां अधिक आर्गेज्म की तलाश कर रहीं हैं या पठान, सिंधी, बलोच, पंजाबी मुस्लिम लड़कियां।
इस तरह के पोस्टर जिस तरह की चर्चा बटोरने के लिए शेयर किया गया था। वह पर्याप्त मात्रा में बटोरा जा चुका होगा। अब इस मुद्दे पर डीएनए की पत्रकार और उनकी टीम को थोड़ा विस्तार से लिखना चाहिए। यदि सुधीर चौधरी इस मुद्दे पर एक डीएनए कर दें तो फिर सोने पर सुहागा हो जाए।