Home रंजना सिंह न्यूज़ चैनल्स पर हिन्दू ही अपराधी क्यों

न्यूज़ चैनल्स पर हिन्दू ही अपराधी क्यों

रंजना सिंह

by रंजना सिंह
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NDTV मार्का राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर ऐसे दुर्दांत निर्भीक निर्लज्ज पैशाचिक कृत्य वाले सहज ही हिन्दू हो जाते हैं क्योंकि ऐसे लोगों की निश्चिन्त मुस्कुराहट में उन्हें सेकुलड़िता खतरे में पड़ती जो नज़र आती है और उन्हें हर हाल में स्थापित यह करना है कि अमानुष तो केवल हिन्दू ही हो सकता है।उनका वह दुलारा तो कुछ भी करके मासूम बच्चा और बहुत हुआ तो भटका हुआ नौजवान होगा।

वैसे सेकुलड़ इस देश में जहाँ अघोषित शरिया शासन व्यवस्था में हम काफ़िर/हिन्दू रहते हैं,हमें सहज भाव से स्वीकार लेना चाहिए Harshal Khairnar भाई कि हमें पूर्ण कापुरुषता से इस अलिखित व्यवस्था को शिरोधार्य करना है,हम जिनके चारा हैं,वे यदि हमें छोड़ते हैं तो यह उनकी उदारता महानता है और हमें उनका कृतज्ञ रहना है,,,यदि वे हमें चारा रूप में निगलना चाहते हैं,तो यह उनका अधिकार है जिसकी रक्षा में सेकुलड़िता की रक्षा में सनद्ध पूरा सिस्टम लगा हुआ है। हर्षल भाई,आपकी संलग्न यह पोस्ट पढ़ते मेरे मन में तो यही आया है।

हर्षल भाई की पोस्ट:-
वो सुंदर थी, पढ़ी लिखी थी.. लेकिन दो कौड़ी का पंक्चर छाप शाहरुख उसे हर हाल में पाना चाहता था.. तीन साल से उसके पीछे पड़ा था… लेकिन वो नहीं मानी तो केरोसिन छिड़ककर उसे आग के हवाले कर दिया..
मरने वाली अंकिता है और मारने वाला शाहरुख है तो ये किसी के लिए ख़बर ही नहीं है.. ना कोई डिबेट, ना कहीं चर्चा.. ना राहुल, ना प्रियंका, ना अखिलेश, ना केजरीवाल, ना ममता किसी ने दुमका जाने की बात तो दूर ऐसा सोचा तक नहीं..
हमारा भांड मीडिया दिन भर ट्विन टॉवर को गिराए जाने की घटना को ऐसे कवर करता रहा मानों ये राष्ट्रीय मुद्दा हो.. उधर अस्पताल में अंकिता संघर्ष कर रही थी अपने जीवन के लिये.. 18 साल की तो थी.. वो जीना चाहती थी.. ये जानते हुए भी कि वो 90% झुलस चुकी है..उसके मन में जीवन जीने की उत्कंठा थी..
लेकिन वो हार गई.. वो ना सिर्फ जीवन से हारी बल्कि वो हार गई इस देश के घटिया सिस्टम से, घटिया राजनीति से, घटिया पत्रकारिता से, घटिया मानसिकता से, एक घटिया लड़के की नीयत से, उस लड़के के पीछे खड़े होने वाले उसी के मज़हब के और सेक्युलर जमात से, वो हार गई एक सोची समझी साजिश से..
शाहरुख अगर उसे पा भी लेता तो भी कुछ साल तक उसे नोंचने के बाद वो उसे किसी सूटकेस में पैक करके छोड़ जाता.. उसका ये मिशन सफल रहता तो उसके जैसे अनेक शाहरुखों को बल मिलता.. अंकिता उसे नहीं मिली तो भी वो अपने मिशन में सफल ही रहा..
उसने संदेश दिया है कि जो अंकिता मना करे उसे जला दो.. उसे मालूम है जिन महँगे वकीलों की फीस लाखों में होती है वो उसके लिये मुफ़्त में केस लड़ेंगे.. कुछ नेता, पत्रकार उसके गरीब होने की दुहाई देंगे.. उसके लिये सहानुभूति की जमीन तैयार करेंगे और इसी ज़मीन में ऐसे कई शाहरुख पनपेंगे, फलेंगे फूलेंगे और किसी अंकिता के मना करने या हाँ करने पर भी उसे या तो जला देंगे या सूटकेस में पैक कर देंगे..
जितने गद्दार भारत में हैं उतने शायद ही किसी और देश में होंगे.. अपने ही देश में बहुसंख्यक हिंदुओं की सुनने वाला कोई नहीं है.. लेकिन किसी अख़लाक़ के मारे जाने पर किसी तबरेज़ के मारे जाने पर ये कितने ही दिनों, घंटों तक लाइव कवरेज करता है, नेताओं का हुजूम उमड़ता है.. लेकिन किसी अंकिता के मारे जाने पर इन्हें साँप सूँघ जाता है..
हो सके तो हमें माफ कर देना अंकिता, हम भी थोड़ा सा लिखकर, चार दिन तुम्हारे बारे में चर्चा करके सब भूल जाएंगे.. इससे ज़्यादा कर पाने की हिम्मत हम नपुंसक लोगों पास भी नहीं है.. हम जस्टिस फ़ॉर अंकिता का हैशटैग कुछ दिन चला लेंगे लेकिन जस्टिस तो कभी मिलना ही नहीं है..
जस्टिस तो अब शाहरुख को मिलेगा, उसके परिवार को मिलेगा और आगे कई शाहरुखों को मिलेगा.. तुम्हें जो मिलना था वो मिल गया अंकिता.. इससे ज़्यादा की उम्मीद अब मत रखना..
अलविदा प्यारी अंकिता..

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