पाञ्चजन्य

देवेन्द्र सिकरवार

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दक्षिणावर्ती, गुलाबी रंग और संगीतमय गंभीर घोष वाला एक शंख!
कौन अभागा हिंदू होगा जो इस धर्मघोषक के बारे में न जानता होगा!
कौन ऐसा हिंदू होगा जो इससे निःसृत पुण्यध्वनि को न जानता होगा जो धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में गीता की पूर्वभूमिका बनी!
कौन ऐसा जड़ हिंदू होगा जो इसके स्वामी कृष्ण को न जानता होगा!
लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे यह कृष्ण को ‘पंचजन’ से प्राप्त हुआ।
‘पंचजन’ जो मेसोपोटामियाई क्षेत्र (ईराक) स्थित प्रथम असीरियन साम्राज्य का एक दास व्यापारी असुर था और भारत से आर्य युवकों व युवतियों का अपहरण कर उन्हें पश्चिम एशिया के बाजारों में बेचता था।
कृष्ण ने इसका वध अपनी पश्चिम एशिया की समुद्री यात्रा के दौरान किया और इस अमूल्य रत्न को धर्मघोष का प्रतीक बना दिया।
कहते हैं यह आज भी अरब सागर की गहराइयों में कहीं मौजूद है।
बहुत कुछ छिपा है हमारे पुराणों में।
पूरा इतिहास छिपा है पुराणों में जिसे काल्पनिक चमत्कार कहकर अनदेखा किया गया।
जानिये पंचजन के बारे में।
जानिएअसीरियन साम्राज्य के विषय में।
जानिए असीरियन साम्राज्य के असुरों के विषय में।
ये मिथक नहीं हमारा इतिहास है जो पूरे विश्व से जुड़ा रहा है, हजारों वर्ष पूर्व भी।
पढ़िए ‘अनसंग हीरोज’ #इंदु_से_सिंधु_तक
Note:- चित्र प्रतीकात्मक है।

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