Home मधुलिका यादव शची जो स्व मानस रचना लिखते हो वो राम कृष्ण और शिव पर ही क्यों लिखते हो?

जो स्व मानस रचना लिखते हो वो राम कृष्ण और शिव पर ही क्यों लिखते हो?

602 views
पिछ्ले साल की बात है किसी ने कमेंट में कहा कि आप लोग जो स्व मानस रचना लिखते हो वो राम कृष्ण और शिव पर ही क्यों लिखते हो..?
सर्वसाधारण पर भी लिख सकते हो इससे दूसरे धर्म वाले भी आपकी रचना से जुड़ने का प्रयत्न करेंगे….
उनके प्रश्न पर मैं बोली कि देखिए जो भारतीय प्रवृत्ति चेतना है भक्ति में रची बसी है और भक्ति प्रेम समर्पण त्याग से उपजती है ,
यहां तो त्याग और प्रेम को सब धर्मों में श्रेष्ठ बताया गया है।
सोचिये घनानंद सुजान से प्रेम करते थे,
सुजान से प्रेम में ठुकराए जाने पर कृष्ण को ही अपना सबकुछ मान बैठते हैं , उन्ही को उलाहना देते हैं, उन्ही में सुजान को देखने लगते हैं,
विरह के ऐसे कवि बन जाते हैं जहाँ प्रेम भक्ति समर्पण की पराकाष्ठा दिखती है,
तुलसी दास पत्नी द्वारा धिक्कारे जाने पर सबकुछ राम को ही समर्पित कर देते हैं,
मीरा कृष्ण में ही रम जाती हैं,
देखिए हमारे यहां यह परंपरा नहीं है कि प्रेम में असफल होने पर कोई दारू गांजा पीकर मरने लगे, ये तो बंगाली बाबू ने “देवदास” पश्चिम से प्रभावित होकर लिख दिया,
पत्थर से मार खाकर मरने वाले प्रेमी वाली संस्कृति हमारे यहां की नहीं है । यहां हीर रांझा मझनु नहीं..!
यहाँ घनानंद और तुलसी दास होते हैं।
हमारे यहां घर से रूठकर भागा लड़का सन्यासी ही बनता था और सबसे बड़ी बात उसके घर वाले भी पूर्ण विश्वास रखते थे कि सन्यासी ही बना होगा, इसीलिए हर युवा साधु को ध्यान से देखते थे और उसे भिक्षा देने में कतराते थे कि कहीं उनका ही बेटा तो नहीं है जो घर की भिक्षा लेकर अंतिम विदा तो लेने नही आया है…..
अरे साहब ये तो हिंदी फिल्मों ने जब से पश्चिमी संस्कृति का भारतीयकरण किया तब से घर से भागा लड़का गलत राह पर जाता दिख जाता है….
हम प्रेम के सच्चे व्यवसायी हैं, यदि भौतिक प्रेम ने हमें ठुकराया तो हम सबसे बड़े दैविक प्रेम पर अपना दावा ठोंक देते हैं।
यही कारण है हम राम शिव कृष्ण पर ही अपनी मानस रचना रचते हैं जिससे भौतिक के साथ साथ दैविक अभिव्यक्ति भी हो जाती है ।
सरल शब्दों में कहें तो दोनों हाथों में लड्डू रखना हमारा स्वभाव है ।
#शचि

Related Articles

Leave a Comment