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बुद्ध ने कहा : वेद पौरुषेय हैं
कर्मकांडियों को बात बुरी लग गयी और उन्होंने चुनौती दे डाली
बुद्ध ने वेदों के ही माध्यम से सिद्ध कर दिया कि जब पूरे वेद में ऋषि ही हर बात बोल रहे हैं तो कैसे कह सकते हैं कि वेद अपौरुषेय हैं..?
कर्मकांड के बड़े बड़े आचार्य पराजित होकर ‘ बुद्धम शरणम गच्छामि का घोष कर बैठे”
ईश्वर है या नहीं इसपर बुद्ध मौन हो गए, उन्होंने बात टालने की कोशिश की यह कहकर कि पहले मनुष्य जीवन सदाचार के साथ जीने का प्रयत्न करो, ईश्वर की बात बाद में करना लेकिन जब लोगों ने ज्यादा परेशान किया तो वेदों के ही माध्यम से निरीश्वर वाद को सिद्ध करवा दिया। (आत्मा और आत्मा की श्रेष्ठता को नकारने का प्रसंग, सर्जन, पालन, विनाश को नकारने का प्रसंग)
वेद ही अंतिम है, वेद केवल ईश्वर के होने की ही बात करता है ऐसा मानने वाले पराजित हो गए।
उपनिषदीय वैदिक मुस्कुरा रहे थे कर्मकांडियों की और अतिविश्वासियों की हार पर ,वो बुद्ध पर भी नजर गड़ाए हुए थे।
समय बदला, शंकराचार्य का अब युद्ध कर्मकांड वालों से , ईश्वर को न मानने वालों से छिड़ गया। शंकराचार्य ने वेदों के मन्त्र द्रष्टा ऋषियों को प्रकृति से ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात ईश्वर ही कहा क्योंकि ब्रम्ह को जान लेने वाला ब्रम्ह में ही लीन हो जाता है , वह वही हो जाता है।(आत्मा परमात्मा का एकात्मवाद)
अहं ब्रम्हास्मि का घोष हुआ ।
ऋषियों ने ब्रम्ह से साक्षात्कार किया, ऋषियों के रूप में ब्रम्ह ही बोल रहा है। अद्वैतवाद की सहायता से शंकराचार्य ने वेदों को अपौरुषेय सिद्ध कर दिया।
बौद्धों की टेक्निक से बौद्धों को पराजित किया और वैदिक मत के अंदर के संप्रदायों को वैदिक तकनीकी से परास्त कर दिया।
वेद का अर्थ है जानने से
इस सृष्टि में सिर्फ ईश्वर को आध्यात्मिक ढंग से जान लेना ही सिर्फ वेद नहीं है बल्कि सृष्टि को भौतिकता की दृष्टि से, नियमों की दृष्टि से जानना भी वेद है।
ईश्वर है ; यह भी वेद है
ईश्वर नही है : यह भी वेद है
” जानने” की प्रवृत्ति को आप सीमित कैसे कर सकते हैं..?
वेद को पौरुषेय , अपौरुषेय की बहस में कैसे उलझा सकते हैं।
हम कहते हैं वेदों में समस्त ज्ञान है फिर ईश्वर को नकारने वाला तर्क वेदों में कैसे नहीं हो सकता..? और यदि नहीं है तब कैसे कह सकते हैं कि वेदों में हर पक्ष है ..?
मुझे ईश्वर के प्रति सदैव शंका रहती थी कि वह है या नहीं
मैंने एक दिव्य स्थान की परीक्षा ली जब मैंने उस ईश्वर को चैलेंज किया कि बिना तुम्हारी सहायता के मैं मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ जाऊंगी तब मुझे सीढियाँ दिखनी ही बन्द हो गयी।
कुछ अजीब सा अहसास हुआ।
मेरा अहंकार टूटा उससे कहीं अधिक मुझे इस बात की खुशी हुई कि चलो अब कोई शंका नहीं रह गयी।
जिसका साक्षात्कार हो गया उसके लिए ईश्वर है , जिसका नहीं हुआ उसके लिए ईश्वर नहीं है।
उदाका रामपुत्तम से जब सिद्धार्थ ध्यान शक्ति की शिक्षा ले रहे थे तब उनके गुरु ने पूछा क्या दिखा ..?
सिद्धार्थ बोले ; मुझे तो सब जड़ ही दिख रहा है सृष्टि में , कुछ भी चैतन्य नहीं है।
उदाका रामपुत्तम बोले क्योंकि तुम यही देखना चाहते हो इसलिए यही दिख रहा है, तुम्हारा सत्य जड़ सृष्टि की ही दिशा में मिलेगा औऱ वही हुआ भी।
बुद्ध ने सत्ता को नकार दिया जाहिर सी बात है जड़ की कौन सी सत्ता..!!!!
सोचिये बुद्ध को ज्ञान देने वाले अधिकतर शिक्षकों अलारकलाम को छोड़कर सभी ईश्वरवादी थे पर बुद्ध ने अपना सत्य अनीश्वरवाद में पाया।
अतः ईश्वर है या नहीं यह अनुभवजन्य सत्य है इसे आप ज्ञान से नहीं पा सकते । जिसे अनुभव हुआ उसके लिए है जिसे नहीं हुआ उसके लिए नहीं है।

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