1962 में रूस के हाथों मिली हार में कहीं न कहीं भारत ये समझ चुका था कि देश को सुरक्षित रखने के लिए एटॉमिक पावर होना बहुत जरूरी है. चीन से मिली हार के बाद देश संभाला भी नहीं था कि जवाहरलाल के रूप में हमें अपने प्रधानमंत्री को खोना पड़ा. जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद देश को संभालने की जिम्मेदारी लाल बहादुर शास्त्री के कंधों पर आ गई. अहिंसा के पुजारी के तौर पर जाने जाने वाले शास्त्री को एक लंबी बहस के बाद देश को एटॉमिक पावर बनाने की राह पर कदम बढ़ाने ही पड़े.
27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ और अक्टूबर 1964 में चीन ने अपना पहला परमाणु परीक्षण कर दिया. दुश्मन देश के इस कदम के बाद भारत में भी परमाणु बम बनाने की बहस तेज हो गई. जानेमाने परमाणु वैज्ञानिक डॉ होमी जहांगीर भाभा परमाणु बम बनाए जाने का समर्थन करने वालों में सबसे बड़ा नाम थे.