यदि अपराधी समाज का आयडल बन रहे हैं। किसी अपराधी की हत्या पर समाज राहत की सांस ले रहा है तो यह सिर्फ भारतीय समाज के लिए नहीं बल्कि न्यायपालिका के लिए भी चिन्ता की बात होनी चाहिए।
जब न्याय देर से मिले और अपराधियों का मीडिया में महिमागान हो। उनकी कहानियों को ग्लैमराइज करके दिखाया जाए। वे खबरिया चैनलों पर अपराधी की तरह नहीं बल्कि राॅबिनहुड की तरह चमकाए जाएं तो पूछिए उस मां के दिल से जिसके जवान बेटे को उस अपराधी ने जवान होने से पहले ही मौत के घाट उतार दिया।
ऐसे अपराधियों के मामले कोर्ट में तीस साल, चालीस साल तक चलते रहते हैं और उनकी आपराधिक गतिविधियां एक दिन के लिए नहीं रूकती। एक हत्यारा जेल में रहते हुए दिल्ली के पांच सितारा होटल में बरामद हुआ था। एक हत्यारा जिसे मौत की सजा मिली थी। फिर उसकी सजा उम्र कैद की गई फिर उसके जेल से बाहर निकलने का रास्ता एक मुख्यमंत्री अपने प्रयासों से साफ कर रहे हैं।
यदि इस देश में न्याय का कोई मंदिर है तो अपराध का सारा तमाशा रोज उसके सामने ही हो रहा है। उसके बावजूद न्यायालय में जो मुख्य न्यायाधीश बैठते हैं। उन्हें नीन्द कैसे आती होगी? वे लोग न्याय को लंबित करके लंबी छुट्टियों पर कैसे जाते होंगे? जब इस देश में पुलिस, सैनिक, मंत्री, समाचार पत्रों को एक दिन की छुट्टी नहीं मिलती फिर न्यायालय में ताला क्यों लगता है? इस विषय पर न्यायालय से जुड़े लोगों को ही बहस खड़ी करनी चाहिए क्योंकि देर से मिला न्याय, ‘न्याय’ नहीं होता।
संभव है कि इसी वजह से समाज में न्यायालय से न्याय देने में हो रही देरी के बीच, कोई दूसरा छुटभैया अपराधी सामने से आकर ‘हत्या’ कर देता है तो कोर्ट में दशकों से धक्का खा रहे परिवारों को लगता है कि न्यायालय से ना सही, लेकिन उन्हें न्याय मिल गया।