जब ब्रिटिश इंग्लिश, अमेरिकन इंग्लिश और इंडियन इंग्लिश हो सकता है तो फिर देशज भारतीय पसमांदा इस्लाम क्यों नही हो सकता है।
जब हम एक विदेशी भाषा का भारतीय संस्करण ला सकते हैं तो एक विदेशी मजहब का भारतीय संस्करण क्यों नही ला सकते हैं ताकि हम विविध धर्मों वाले अपने प्यारे देश में सहिष्णुता के साथ जीवन यापन कर सकें
ऐसा भारतीय इस्लाम जिसमें खलीफा(मुस्लिमो का नेतृत्व करने) के लिए किसी नस्ल विशेष की बाध्यता नहीं होगी, कुफु के नाम पर ऊंच नीच की मान्यता नहीं होगी, सभी अनुयायीयों को बराबरी का दर्जा प्राप्त होगा नस्लवाद और जातिवाद की कोई जगह नहीं होगी, सारे दुनिया के लोग शासित होने के लिए पैदा हुए हैं और मुसलमान शासक पैदा हुआ है एवम् पूर्वजों द्वारा तलवार से विजित भूमि पर अधिकार जैसी आस्था का कोई स्थान नहीं होगा, सर तन से जुदा जैसे ईशनिंदा के कानून की मान्यता नहीं होगी, किसी विशेष आलिम (उलेमा, मल्ला, मौलाना) और किसी विशेष मसलक के मानने की अनिवार्यता ना हो,
उर्दू बोलने समझने की बाध्यता नहीं होगी पसमांदा के क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान होगा, पसमांदा के क्षेत्र विशेष की भारतीय सभ्यता संस्कृति का पालन करना गर्व की बात होगी, जहां सिंदूर, साड़ी, धोती आदि क्षेत्रीय देशज परिधान गैर इस्लामी नहीं समझे जायेंगे, क्षेत्र विशेष के भारतीय त्योहारों में शामिल होना सम्मानित कर्म माना जायेगा, गाय के गोबर के उपलो पर बने बाटी/लिट्टी को गंदा नही समझा जायेगा, भारत माता की जय और वंदे मातरम का उद्घोष वर्जित नही होगा।