2 March 1757 मथुरा
हर अफ़ग़ानी सैनिक ने अपने घोड़े पे पीछे दस ख़ाली घोड़े बांधे और ऊँट रेल के माफ़िक़ शहर में घुसे। शाम को जब ये सब अपने अपने घोड़े की ट्रेन के साथ लौटे तो हर घोड़े पर बंदी बनायी हुई स्त्री और बच्चे बच्चियाँ थी। हर बंदी के गले में नर मुंड़ो की माला था। घोड़ों की जीने लूट के माल से भरी हुई थी।
अगले दिन सुबह एक वज़ीर ने अपने रजिस्टर में मुंड गिन कर हर सैनिक का नाम दर्ज किया ताकि उन्हें पाँच रुपए प्रति मुंड अदा किए जा सके। उसके बाद इन मुंडो को भालों में पिरो कर हर मुख्य मार्ग के किनारे सजाया गया। मथुरा की गली सड़क शवों से भरी थी किंतु किसी शव का सर उनके तन पर ना था। पंडे पुजारी बैरागी के मुंड गौमुंड से बांधे गए। दो दो हज़ार बच्चों के झुंड बना बना कर दिल्ली से काबुल रवाना किए गए।
ब्रज इतिहास आगे भी जारी है….