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Perils of technology

Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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बस तीस पैंतीस वर्ष पूर्व मोबाइल क्या लैंड लाइन भी अल्ट्रा लक्शरी था. उस जमाने में तो खैर तीन वक्त का अच्छा खाना ही लक्शरी था अधिसंख्य जनता के लिए. पर उस जमाने में सारे कार्य बग़ैर खिट पिट हो जाते थे. विद्यालय में हाफ़ डे लेना है, पिता जी ने ऐप्लिकेशन लिख दी, वह टीचर को दे दी, हाफ़ टाइम में बसता उठाया आ गए घर. पूरा भारत घूम लिए, मित्रों रिश्तेदारों से मिल लिए, बग़ैर गूगल मैप बग़ैर मोबाइल अनजान शहरों में पहुँच अनजान रिश्तेदारों के घर पहुँच जाते, कुछ भी आड न था. एकदम नोर्मल बग़ैर सरदर्दी के.

फ़िर आया मोबाइल. जिसका उद्देश्य बताते हैं कम्यूनिकेशन सिस्टम सुधारने के लिए हुआ.

बेटी को हाफ़ डे दिलाना था कुछ कार्य था. ऐप्लिकेशन लिख दी. हाफ़ टाइम मैं खुद लेने पहुँच गया छुट्टी है मेरी आज. अब टीचर पहले मोबाइल पर कन्फ़र्म करेगी कि मैं लेने आया हूँ कि नहीं. मेरा दूसरा नम्बर रेजिस्टर है तो वो मिलेगा नहीं. फ़िर मैं पत्नी को करूँगा पत्नी admin को करेगी वह बोलेगी कि मैं स्कूल के अंदर आ जाऊँ. अब स्कूल में PTM है प्राइमरी की तो एक किमी दूर तक कार ही कार. जाम. ऊपर से मैं तो पिक करने आया हूँ तो कच्छा बनियान में आ गया था. फ़िर मैं admin को फ़ोन करूँगा कि अंदर नहीं आ सकता, फ़िर वो टीचर को फ़ोन करेगी फ़िर टीचर वाइफ़ को फ़िर वाइफ़ मुझे. मैं बेटी को लगाऊँ पर स्कूल उसे फ़ोन ले जाना अलाउड नहीं. इस सबके बीच मेरा फ़ोन डिस्चार्ज.

बेटी को हाफ़ डे दिलाना था कुछ कार्य था. ऐप्लिकेशन लिख दी. हाफ़ टाइम मैं खुद लेने पहुँच गया छुट्टी है मेरी आज. अब टीचर पहले मोबाइल पर कन्फ़र्म करेगी कि मैं लेने आया हूँ कि नहीं. मेरा दूसरा नम्बर रेजिस्टर है तो वो मिलेगा नहीं. फ़िर मैं पत्नी को करूँगा पत्नी admin को करेगी वह बोलेगी कि मैं स्कूल के अंदर आ जाऊँ. अब स्कूल में PTM है प्राइमरी की तो एक किमी दूर तक कार ही कार. जाम. ऊपर से मैं तो पिक करने आया हूँ तो कच्छा बनियान में आ गया था. फ़िर मैं admin को फ़ोन करूँगा कि अंदर नहीं आ सकता, फ़िर वो टीचर को फ़ोन करेगी फ़िर टीचर वाइफ़ को फ़िर वाइफ़ मुझे. मैं बेटी को लगाऊँ पर स्कूल उसे फ़ोन ले जाना अलाउड नहीं. इस सबके बीच मेरा फ़ोन डिस्चार्ज.

अब फ़ोन स्विच ओफ़. तो सब मुझे काल कर रहे हैं कि क्या हुआ अकस्मात् फ़ोन बंद. फ़ोन कार चार्ज में लगाओ जैसे ही ऑन हो एकदम से रिंग बजेगी और फ़िर बैटरी डेड. स्कूल के गेट से तब तक बाहर नहीं निकलने को मिलेगा जब तक पैरेंट या ड्राइवर वहाँ न पहुँचे. फ़िर ऑफ़िस जाकर दस मिनट फ़ोन चार्ज. फ़िर सबसे बात हुई. फ़िर वापस स्कूल. आधा किमी दूर गाड़ी पार्क कर सभी सजे धजे पैरेंट के बीच कच्छा बनियाइन पहने स्कूल के गेट पर. बेटी को लिया और घर वापसी.

जो कार्य बग़ैर मोबाइल और बग़ैर कार के एक मिनट में होता था, वह होने में डेढ़ घंटे, खूब सारी बातें और ढेर सारी सरदर्दी. जिस किसी ने मोबाइल बनाया था और बोला था कि यह कम्यूनिकेशन बेटर करेगा, मैं डंडा लेकर उसका इंतज़ार कर रहा हूँ.

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