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चुनाव का माहौल समझना हो तो …

by Nitin Tripathi
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चुनाव का माहौल समझना हो तो वहाँ ज़मीन पर उतरना पड़ता है. मीडिया अपने नज़रिए से दिखाता है – अच्छा होगा तो नूट्रल दिखाने की कोशिश करेगा – थोड़ी इस पक्ष की थोड़ी उस पक्ष की, रवीश जैसा होगा तो जैसा चश्मा लगा रहा है वैसा दिखाने की कोशिश करेगा.

 

कल अवध क्षेत्र में मतदान था. UP चुनाव का चौथा चरण था. मेरा घर, ऑफ़िस, गाँव सब अवध क्षेत्र की विभिन्न विधान सभाओं में है. इसके अतिरिक्त इष्ट मित्र, नाते रिश्तेदार, परिचित बड़ा दायरा है.
कल ऐसा चुनाव था कि लोग खुद वोट डालने गए. ऐसे ऐसे लोग जिन्हें पिछले चुनाव तक धक्के मार मार घर से निकलवाते थे और वो चौराहे से सिगरेट पीकर वापस आ जाते थे वह भी उत्साह से बहुत पोसिटिव हो वोट डाल कर आए. सामान्य जनता (90%) को ये तक नहीं पता होता कि प्रत्याशी कौन है. हमारे कैंट क्षेत्र में ब्रजेश पाठक जैसे क़द्दावर नेता खड़े हैं, एक परिचित ने फ़ेसबूक पर उनकी फ़ोटो मेरे साथ देखी थी, वोट डालने के बाद मुझसे पूँछ रहा था कि वह इससे पहले क्या करते थे? मैंने पूँछा जब ये नहीं पता है कि प्रत्याशी कौन है तो उसका कहना था उसके प्रत्याशी नरेंद्र मोदी हैं.
निहसंदेह नेता बिरादरी अपना क़यास, अपना गुणा भाग, अपने चश्मे से गणित लगा कमरे में बैठ जिता हरा रही थी लेकिन बूथों पर बिल्कुल वाइब्रेंट माहौल था भगवा का. मैंने स्वयं उम्मीद नहीं की थी कि इतनी ज़बर्दस्त लहर है ग्राउंड पर आम जनता में.
सीटों का एस्टीमेट देना बचकाना होगा, पर जो दिखा वह यही कि फ़ेस फ़ोर में इससे तगड़ी लहर 2017 भी नहीं थी.

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