फैशन के नाम पर ऊटपटांगत्व और नंगई हमारे समय का एक स्वीकृत तथ्य बन चुका है। बहुत लोग केवल एक ही तरफ की नंगई देखते हैं। स्त्रियों की। पुरुषों की या तो वे देख नहीं रहे या देखने के बावजूद उससे आँख फेर ले रहे हैं।
अभी हाल ही में फेसबुक से लेकर व्हाट्सएप तक और कई अन्य सोशल मीडिया एप्स पर एक फोटो वायरल हुआ था। एक महोदय साड़ी ब्लाउज पहने और लेडीज पर्स लिए ऐसे तैयार खड़े थे गोया दफ्तर जाने के लिए कोई भद्र महिला खड़ी हो। विडंबना यह कि दाढ़ी मूँछ भी थी जनाब की। उन्होंने उसे सफाचट नहीं कराया था।
खैर, छोड़िए। आजकल के लड़कों को देखिए। बीच में एक फैशन आया था कमर से सरकती हुई जींस का। पहले उससे केवल अंडरवियर का ब्रांडनेम दिखता था। बाद में अंडरवियर शायद गायब हो गया। जाहिर है, अब और बहुत कुछ दिखने लगा।
लड़कियों के फैशन के तो कहने ही क्या! बीच-बीच में अमानवीय दुर्घटनाएँ घट जाने पर कोई कोई बक देता है कि अधनंगापन इसका कारण है तो लोग “लड़के हैं, गलती हो जाती है” जैसे महान सूत्रवाक्य भी भूल जाते हैं और उसी बेचारे पर पिल पड़ते हैं। गोया लड़कियों के ड्रेस सेंस पर सवाल उठाना ही ऐसी घटनाओं का एकमात्र कारण है।
अगर इस प्रवृत्ति के मूल में जाएँ और नंगई के मनोविज्ञान का अध्ययन करें तो मेरे खयाल से मुख्य नहीं तो भी बहुत प्रबल कारण के रूप में एक बात उभरेगी। हीन भावना। सच्चाई यह है कि अपने परिवेश में हर व्यक्ति महत्व पाना चाहता है। कम या ज्यादा। कुछ लोगों को जो मिलता है, उसमें वे संतुष्ट रहते हैं। अपनी उतनी ही पात्रता या नियति मानकर। कुछ लोग और अधिक पाने के लिए ईमानदारी से प्रयत्न करते हैं। कुछ लोग छल बल का भी प्रयोग करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो यह जानते हैं कि इस सबमें से वे कुछ भी करने लायक नहीं हैं। तब वे अपने लुक में यह सब गड़बड़ करते हैं।
उन्हें अपनी औकात पता है। वे जानते हैं कि उनके टॉप फ्लोर में लबालब देसी खाद भरी है लेकिन ऐसी देसी खाद जिससे कुछ उपजने वाला नहीं है। वह खाद केवल प्रदूषण और मानव समाज के लिए घातक संक्रमण पैदा करने वाली है। कोई सृजन करने वाली नहीं। इनमें स्त्रियां भी शामिल हैं और पुरुष भी।
इन्हें ही दुनिया को अपने अस्तित्व का एहसास कराने के लिए नीचे उतरना पड़ता है। यह नीचे उतरने की प्रक्रिया जब एक बार शुरू हो जाती है तो पैंट की तरह अंडरवियर का ब्रांड दिखाने भर से संतुष्ट नहीं होती। वह उसी पैंट की तरह और नीचे उतरती है, और और नीचे, और और और नीचे से भी नीचे…. नीचाई की उस पराकाष्ठा को प्राप्त करके भी वह संतुष्ट नहीं होती जिसके आगे कोई और नीचाई नहीं होती।
दुख यह है कि यह नीचाई की पराकाष्ठा को भी पार करने की यह होड़ कोरोना भी ज्यादा संक्रामक होती जा रही है। कहीं ऐसा न हो कि पूरी की पूरी मनुष्यता को एक बार फिर से कवारेंटाइन होना पड़े नंगई की इस बीमारी से बचने के लिए।