भारत में चुनाव विकास के मुद्दे पर न लड़े जाते हैं न जीते जाते हैं. भारत के इतिहास में पहली बार अटल जी के रूप में किसी प्रधान मंत्री ने इंफ़्रा स्ट्रक्चर के क्षेत्र में ऐतिहासिक कार्य किया, हाइवे चौड़े कर दिए, गाँव गाँव तक सड़कें पहुँचा दीं. गलती बस इतनी मात्र हुई कि चुनाव शाइनिंग इंडिया मुद्दे पर लड़ा.
नई भाजपा समझदार हो गई है.
ज़मीन पर घूमते हुवे जो दिखा – योगी जी के पक्ष में तीन बातें हैं. भाजपा समर्थक जब प्रचार करने जा रहे हैं तो जनता स्वयं बोल रही है:
१) क़ानून व्यवस्था सुधार दी.
२) अखिलेश सरकार आएगी तो फ़िर से मुल्लों का आतंक हो जाएगा
३) श्रमिक निधि, मुफ़्त राशन, किसान सम्मान निधि
बाक़ी जो कट्टर वोटर हैं उनके पास तो लिस्ट होती है गिनाने की. वोट माँगने जा रहे कार्यकर्ताओं को अपनी ओर से कुछ विशेष नहीं करना पड़ रहा है.
अखिलेश के समर्थकों की पूरी कैम्पेन झुँझलाहट पर आधारित है – उनके समर्थक ग्राउंड पर जाकर प्रचार कर रहे हैं – १) राम मंदिर से पेट थोड़े ही भरता है
२) हमारी सरकार आते ही सारे भाजपेयों को जेल में डाल देंगे ३) योगी / मोदी पर व्यक्तिगत वहत्सप छाप कटाक्ष. मोदी जी के सूट से लेकर संत चिलम पीते हैं जैसी अनर्गल बातें – इन बातों से कभी वोट बढ़ते नहीं हैं, जिन्हें देना है वह देंगे ही पर फ़ेंस सिटर में एक भी ऐसा नहीं है जो इन बातों से खुश होता हो. उल्टे जिनका थोड़ा मन बन भी रहा होता है, वह पलट जाते हैं.
अखिलेश काग़ज़ी समीकरण चाहे जितने बना लें, ज़मीन पर वह चुनाव हार चुके हैं और जैसे जैसे चुनाव बढ़ेगा, वह और पीछे होते जाएँगे. अकड़ / बंदूक़ के ज़ोर से चुनाव जीतने के दिन लद गए.