मायावती के साथ गठबंधन को ले कर अखिलेश यादव ही नहीं तमाम मोदी विरोधी भी बल्लियों उछल गए हैं । 50 से अधिक सीटें भी मिलने का दम भर रहे हैं । यानी कि उत्तर प्रदेश में 25-25 सीटें दोनों को मिलती बता रहे हैं । मायावती ने भी इसी दम पर प्रधान मंत्री बनने का सपना जोड़ लिया है । गुड है । पर दिमाग से दरिद्र लोग मायावती का छत्तीसगढ़ में अजित जोगी से हुए गठबंधन का हश्र भी भूल चले हैं ।
मायावती-जोगी गठबंधन औधे मुंह गिरा । यह भी कि मध्य प्रदेश में सिर्फ एक विधायक के बूते मायावती सरकार को जिस तरह ब्लैकमेल कर रही हैं , उन की इस ब्लैकमेलिंग की पुरानी कला पर भी लोग चुप हैं । सच तो यह है कि अखिलेश यादव बीते विधानसभा चुनाव में जिस तरह कांग्रेस से समझौता कर , एकमुश्त सौ से अधिक सीटें दे कर राजनीतिक चूक कर बैठे थे , उसी चूक के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए वह लोकसभा चुनाव में मायावती से समझौते के गटर में डूब गए हैं ।
इतना ही नहीं अपनी ही 38 सीटों में से ही उन्हें अजित सिंह , ओमप्रकाश राजभर , अनुप्रिया पटेल आदि को भी एडजस्ट करने का दबाव है सो अलग । सरकारी घर से टोटी , टाइल चुरा कर ले जाना , अवैध खनन से बेहिसाब कमाई और यादववाद की राजनीति आदि-इत्यादि के कालिख से रंगे अखिलेश सचमुच बहुत मुश्किल में हैं । लेकिन मायावती अब उन के गले घंटी भी बांध चुकी हैं और अपना पट्टा भी । अखिलेश उन की ब्लैकमेलिंग के फंदे में घिर चुके हैं । हाथ और हाथी के भ्रम में घिरे अखिलेश की मति मारी गई है ।