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मैं अक्सर कहता हूँ कि सरकार का सिर्फ एक ही काम है

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मैं अक्सर कहता हूँ कि सरकार का सिर्फ एक ही काम है : जनता की जान, स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा – अपराधियों और बाहरी शत्रुओं से. बाकी सबकुछ जनता स्वयं कर लेगी. तब लोग अक्सर पूछते हैं कि गरीब, असहाय और अशक्त व्यक्ति क्या करेगा? उसकी मदद करना, उसकी बेसिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी सरकार का काम है.
Wafah Faraaz जी ने बंगलूरू में एक गौशाला का जिक्र किया था, जिसमें गौमाता और गौवंश की रक्षा की जाती है, उन्हें पौष्टिक आहार दिया जाता है. वहाँ रखे रवा के लड्डू और हरी घास आप गौमाता को खिला सकते हैं, बिना किसी शुल्क के. हर रोज हरी घास की गाड़ी आती है जिसका दैनिक व्यय साठ हज़ार रूपये होता है. किसी से कोई डोनेशन नहीं माँगा जाता और कोई सरकारी सहायता भी स्वीकार नहीं की जाती है. लोग स्वेच्छा से दान करते हैं, और बाकी सारा खर्च कुछ व्यापारी परिवार दशकों से उठा रहे हैं.
यह धर्म का काम है. और धर्म का काम जनता ही करती है. सरकारों के भरोसे धर्म का काम नहीं छोड़ा जा सकता. अशक्त और असहायों की सहायता करना धर्म का काम है. यह समाज को करना चाहिए, सरकार को नहीं. एक ऐसे समाज में जहाँ सरकारें यह नहीं करेंगी वहाँ समाज करेगा. बल्कि सदियों से हिन्दू समाज का धनिक वर्ग धर्मांश देता रहा था. हिन्दू मंदिरों में गरीबों के लिए भोजन की व्यवस्था रही है. पर यह तभी सम्भव है जब सरकार हमसे जबरदस्ती बेहिसाब टैक्स लेकर रेडिस्ट्रिब्यूशन ऑफ वेल्थ के नाम पर, गरीबों को बाँटने के नाम पर बंदरबाँट ना करे. जनता धर्मार्थ दान करेगी, पर तब जब समाज सम्पन्न हो, और समाज में नैतिकता और धर्म-भाव हो.
जब सरकार वेलफेयर के नाम पर 50% टैक्स लेगी (जैसा इंग्लैंड में लेती है) तब कोई कहाँ से धर्मार्थ दान करेगा? और जब समाज की व्यापक प्रवृति सरकार से मुफ्त में लेने की होगी तो नैतिकता कहाँ बचेगी और धर्मबोध कहाँ बचेगा?
जब सरकार चैरिटी या वेलफेयर करती है तो कैसे करती है? यही गौशाला अगर सरकार चलाती तो जो घास रोज साठ हजार में आती है उसका रोज छः लाख का बिल कटता फिर भी गौमाता भूखे मरती. और मैनेजर नरपत भाई की जगह अनवर भाई होते और बछड़े कसाई के यहाँ पहुँच जाते.
और अगर एक व्यक्ति समाज से सहायता लेता वह कृतज्ञ होकर लेता. पर वही व्यक्ति जब सरकार से वेलफेयर लेता है तो हक़ या एंटाइटलमेंट समझ के लेता है. जहाँ सरकारी बाँटने की मशीनरी बाँटने वाले को भ्रष्ट बनने का अवसर देती है, वहीं लेने वाले को भी कृतघ्न और भ्रष्ट बनाती है.

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