Home हमारे लेखकनितिन त्रिपाठी दुनिया का सबसे मुश्किल बिज़नस है कार बनाना

दुनिया का सबसे मुश्किल बिज़नस है कार बनाना

by Nitin Tripathi
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दुनिया का सबसे मुश्किल बिज़नस है कार बनाना. इस क्षेत्र में बस गिनी चुनी कम्पनियाँ हैं जो दसकों से यह कार्य कर रही हैं और पूरी दुनिया में उन्ही की गाड़ियाँ चलती हैं. बेसिकली यह ख़ानदानी बिज़नस है. अत्यधिक पैसा लगता है, धैर्य चाहिए, और दसकों लगते हैं अगर सफल भी हुवे. भारत में भी भारतीय कम्पनियों में बस टाटा / महिंद्रा ही कार निर्माण के क्षेत्र में हैं, यहाँ तक कि अम्बानी / अदानी तक इस क्षेत्र की ओर आँख उठा कर नहीं देखते. यह क्षेत्र सबसे कन्वेनशनल बिज़नस है. इसमें नए प्रयोग न्यून तम होते हैं.
वर्ष दो हज़ार के आस पास अमेरिका में जब एक नए नए उद्योग पति ईलान मस्क ने घोषणा की कि वह कार बनाएँगे, तो सामान्य लोग खूब हंसे. ऊपर से उन्होंने कहा कि उनकी कार केवल और केवल बैटरी से ही चलेगी तो लोगों को लगा कि इसका दिमाग़ ख़राब है. अगर यह सम्भव होता तो इससे लाख गुना पैसे / अनुभव वाले टोयोटा / जेनरल मोटर आदि यह कर रहे होते. दूसरे अगर यह सम्भव भी हो जाए तो भी कार के लिए अथाह बड़े प्लांट चाहिए, सैकड़ों सर्विस सेंटर चाहिए, शो रूम चाहिए और इस सबके बावजूद सबसे मुख्य दुनिया की सारी कार कंपनिया पेट्रोल इस लिए इश्तेमाल करती हैं क्योंकि हर पचास मीटर पर पेट्रोल पम्प हैं, सारी कम्पनियों की गाड़ियाँ उन्हीं पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल भरती हैं. आप नया ईंधन ले भी आए, गाड़ी बना भी ली तो कस्टमर रीचार्ज कहाँ करेगा.
ग़नीमत यह थी कि वह अमेरिका था – लैंड ओफ़ ऑपर्टूनिटी. वहाँ आप कोई भी नया idea ले आएँ आपको कुछ न कुछ लोग मिल जाएँगे जो आपके idea को सपोर्ट करेंगे, उस पर पैसे भी लगा देंगे. ईलान मस्क ने प्रोटो टाइप भर बनाया कि हज़ारों लोगों ने कार की पेमेंट जमा कर दी. ईलान मस्क को विजनरी यूँ ही हवा में नहीं बोलते, उसने कर दिखाया. बैटरी और पार्ट्स की मैन्युफ़ैक्चरिंग चाइना में आउट्सॉर्स की, गाड़ी बनी. उसे बेंचा सीधे ऑनलाइन. इलेक्ट्रिक गाड़ी है तो सर्विस सेंटर की ज़रूरत नहीं. और पूरे देश अमेरिका में अपना नेट्वर्कबनाया चार्जिंग स्टेशन का. टेस्ला चल निकली, ईलान मस्क विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति बने और आज लगभग सभी कम्पनियाँ EV बना रही हैं.
भारत की कार इंडस्ट्री बहुत बहुत बहुत छोटी है. आज भी भारत जैसे देश में कुल कार अमेरिका की दस प्रतिशत हैं. यहाँ अभी भी नई खोज नहीं होती बल्कि विदेशों की टेक्नॉलजी के मॉडल बिकते हैं. नितिन गड़करी ने हाइड्रोजन सेल फ़्यूअल संचालित कार की वकालत की, खुद उस पर चल कर आए – ऐसा नहीं है कि बच्चों का खेल है. अकस्मात् दुनिया ev छोड़ हाइड्रोजन फ़्यूअल पर आ जाएगी. ev पर ऑल्रेडी इतना निवेश हो चुका है, ev का बाज़ार इतना बड़ा है कि भारत जैसे देश की ढेरों सालों की कमाई इसमें समा जाए.
यह महत्व पूर्ण इस लिए है कि इस समय की भारत सरकार एक विजन रखती है. वह चालीस साल बाद का देख रही है. वह ईंधन में एक विकल्प दे रही है – ऐसा विकल्प जो दुनिया के सारे देश भारत से ख़रीदेंगे. जो पास्ट में हो गया, बदला नहीं जा सकता, वर्तमान में हम पास्ट के निर्णयों को भुगत रहे हैं. पर सरकार कम से कम एक आत्म निर्भर भारत का विकल्प दे रही है. असफल भी हो जाए तो भी यह तय है कि इरादे अच्छे हैं तो इस क्षेत्र में सरकार की मेहनत कही न कहीं रंग लाएगी ही.

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