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यशोधरा_के_बुद्ध

मधुलिका शची

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आर्य चलिए हम आपको आज संगीत सुनाते हैं!
आप जानते हैं आर्य हमे वीणा से सुरों को निकालने का ज्ञान हमारे आभ ने दिया था !
यशोधरा सिद्धार्थ को अपने मे ही खोया हुआ सा देखकर बड़ी चंचलता से बोली ..
नही यशो..
आज मन नही है मेरा ..
सिद्धार्थ यशोधरा की तरफ बिना देखे बोले ।
मन नही है !!!
आर्य ,क्या आप मुझसे रूष्ट हैं ?
नही यशो !!!
मैं भला तुमसे कैसे रुष्ट हो सकता हूँ !
तुम तो मेरी प्राण प्रिया हो ..
बिना यशो के सिद्धार्थ का कोई अस्तित्व नही है..
जिस दिन यशोधरा से सिद्धार्थ दूर हो जाएगा उस दिन सिद्धार्थ सिद्धार्थ नही रह जायेगा प्राण प्रिये !!
यशोधरा सिद्धार्थ के पास बैठ जाती है और उनके कंधे पर सिर रखकर दुखी मन से कहती है ,
आर्य मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जिसे आप जैसा जीवन साथी मिला है लेकिन कितनी दुर्भाग्यशाली हूँ जो अपने पति के मन की बात नही जान पाती.. !!!
अपने पति को सुखी न रख पाने के कारण ये संसार मेरी निंदा करेगा !
(सिद्धार्थ के कंधे पर अपना सिर रखे हुए यशोधरा सुबकने लगती है तो सिद्धार्थ यशोधरा की तरफ प्रेम से देखते हैं और यशोधरा के सुंदर चेहरे को अपने दोनों हाथों में भरते हुए कहते हैं;
हे प्रिये , तुम अपने मन पर यह बोझ मत रखो कि तुम मुझे सुखी नही रख पा रही हो ,
प्रिये ..! मेरे हृदय में जो पीड़ा जन्म ले रही है उसे सोचकर मैं चिंतित हूँ कि क्या मैं तुम्हें ,पिता श्री, माता श्री को सुखी रख पाऊँगा !!
(ऐसा कहने के बाद सिद्धार्थ यशोधरा की गोद में अपना सिर रखकर धरती पर ही लेट गए। यशोधरा उनके बालों को सहलाते हुए बोली ;
आर्य आप ऐसा व्यर्थ ही सोचते हैं ,
आप केवल जीवन का आनंद लीजिये..
पिता श्री और माता श्री सब आप से खुश हैं..
आर्य एक बात कहूँ ?
सिद्धार्थ धीरे से “हूँ ” कहकर हामी भरते हैं ।
आर्य आपके केश बहुत सुंदर हैं !
इन्हें कभी मत त्यागना और अगर जब कभी भी त्यागने का विचार आये तो इन्हें मुझे दे देना !!
ठीक हैं न !!!
सिद्धार्थ मुस्कुराते हुए उठ खड़े होते हैं और प्रेम से यशोधरा के गालों की ठुड्डी पकड़कर हिलाते हुए कहते हैं तुम अभी भी बच्ची ही हो बच्चियों जैसा व्यवहार करती हो !!!
(यशोधरा खिलखिलाकर हँसने लगती हैं
सिद्धार्थ का हाथ पकड़कर उनको संगीत कक्ष में लेकर जाती है ।)
सिद्धार्थ थोड़ी देर के लिए चन्ना के कहे शब्दों को भूल जाते हैं और प्रेम भावना के वशीभूत होकर यशोधरा को निहारने लगते हैं।
कुछ क्षण के लिए ऐसा लगने लगा था कि जैसे असित मुनि की भविष्यवाणी झूँठी हो जाएगी ।
सिद्धार्थ तो भोगी बन रहा है यह क्या वैरागी बनेगा !!
मारा (काम) अपनी सहस्त्रभुजाओं से जैसे सिद्धार्थ को जकड़ लेगा ।
यशोधरा मन्द मन्द मुस्कुराते हुए लाजवंती के जैसी दृष्टि से सिद्धार्थ को निहारते हुए वीणा बजा रही थी और सिद्धार्थ उसमें डूबते चले जा रहे थे ..
युग ने प्रकृति से प्रश्न किया तो अब क्या !!
क्या संसार को उसका बुद्ध नही मिलेगा !
क्या युग बिना युगपुरुष के इस बार अनाथ ही रहेगा ?
लेकिन तभी यशोधरा के वीणा की तान बदल गई
ऐसा लग रहा था हवाओं ने वीणा बजाकर सिद्धार्थ को जगाने का उत्तरदायित्व ले लिया हो ।
जिस वीणा से अभी तक बुद्ध को मीठे संगीत की लहरी सुनाई दे रही थी ,,अब उसी वीणा से सिद्धार्थ को जीवों की चीख सुनाई देने लगी ।
मानवों के रोने की, पीड़ा में कराहने की आवाज़ सुनाई देने लगी ।
इस चीत्कार ने सिद्धार्थ के हृदय के कम्पन को तीव्र कर दिया ,उनके मन मस्तिष्क को झिझोड़कर रख दिया
सिद्धार्थ चीखते हुए बोले ;
मैं आ रहा हूँ !
मैं आ रहा हूँ !
मेरे प्रिय जनों तुम चिंतित ना हो
मैं आ रहा हूँ ..!
सिद्धार्थ का यह अप्रत्याशित व्यवहार देखकर यशोधरा भयभीत हो उठी और दौड़ते हुए आयी और सिद्धार्थ के चेहरे को अपने हाथों में लेकर रोते हुए बोली ;
आर्य, चेतना में वापस आईये
क्या हुआ है आर्य आपको
आर्य बताईये न !
आप चीखे क्यों ?
यशो ! यशो !
वो .. वो..मुझे बुला रहें हैं
वो मुझे पुकार रहें हैं यशो ,
मुझे जाना होगा ,
मेरे जन मुझे पुकार रहें हैं !!
सभी जन बहुत पीड़ा में हैं
(सिद्धार्थ हकलाते हुए बोल रहे थे । यशोधरा चारों तरफ देखते हुए बोली;
कौन पुकार रहे हैं आपको स्वामी..?
वहां कोई नही है !!!..
आपके अपने तो हम हैं !
आप हमारी सुने स्वामी ,वो सब आपका भ्रम है “
एकायक सिद्धार्थ शान्त हो जाते हैं और कक्ष से बाहर निकल जाते हैं।
यशोधरा धरती पर बैठी सेज पर अपना सिर रखकर सुबकने लगी । उसे लगने लगा था कि उसका प्रेम सिद्धार्थ को मोहपाश में बांध नही पा रहा है । …
संध्या के बाद सिद्धार्थ पुनः वापस कक्ष में आये तो यशोधरा को थोड़ी देर तक निहारते रहे ।
यशोधरा ने पूँछा अब कैसा है आपका चित्त ?
सिद्धार्थ ने हां में सिर हिलाया ।
मगर कुछ बोले नही ..
थोड़ी देर बाद यशोधरा , सिद्धार्थ और राहुल सभी सो गये
तभी सिद्धार्थ के कानों में एक आवाज़ आई,
उठो जागो पुत्र !
कब तक निंद्रा में रहोगे ..?
अब तुम्हारे जाग्रत होने का समय आ गया है !
सिद्धार्थ की एकायक नींद खुल गयी और वो बोल पड़े
कौन ! !!
कौन है !
यशोधरा भी चौंक कर जाग गयी और बोली कि क्या हुआ स्वामी ?
यशो ,अभी जैसे किसी ने मुझसे कहा कि उठो ,जागो अब तुम्हारे जागने का समय आ गया है।
यशोधरा शांत भाव से बोली ; कुछ नही स्वामी आपने स्वप्न देखा होगा !!
सिद्धार्थ के मन में यह बात घर गयी थी कि सन्यास ही सभी दुखों का उत्तर है,
हां मुझे सन्यास लेना चाहिए
हाँ अब यही एकमात्र उपाय है ।
लेकिन यशो का क्या !
राहुल का क्या !
सिद्धार्थ का अंतर्मन बोल पड़ा ; नही… नही.. अब नही रुकूँगा अब मुझे चलना होगा ,
यशोधरा जब निंद्रा में चली गयी तब चुपके से सिद्धार्थ उठे लेकिन जैसे ही कक्ष के द्वार को पार करने की कोशिश किये वैसे ही उनके अंतर्मन ने उनको झटका दिया ..
अरे सिद्धार्थ यह क्या !
क्या तुम्हारी मति फिर गयी है जो तुम अपने जीते जी अपने पुत्र को अनाथ और पत्नी को विधवा बनाने चले हो ?
सिद्धार्थ के पांव ठिठक गए ,
सिद्धार्थ ने मुड़कर सोते हुए यशोधरा और राहुल के मुख को देखा तो मन ही मन अति तीव्र पीड़ा से रो पड़े ।
कक्ष में ही काले शरीर को धारण किये हुए मारा उपस्थित था.. वह सिद्धार्थ के मोह को देखकर मुस्कुराने लगा ऐसा लगा प्रकृति फिर युग को उसका युगपुरुष नही दे पाएगी …!!
मगर सिद्धार्थ शीघ्र ही अंतर्द्वंद से बाहर निकल गए और जैसे ही कक्ष से बाहर निकलने लगे वैसे ही एक आवाज़ आई;
ठहर जा !
कहाँ जा रहा है मूर्ख तुझे पता भी है विधाता ने तेरे भाग्य में सातों द्वीप नवों खंड का राज लिखा है..!!
तुझे विधाता ने चक्रवर्ती सम्राट बनने का अवसर दिया है और तू उन सबको त्यागकर सन्यासी बनने चला है !!!!
सिद्धार्थ ने उससे पूँछा ; तुम कौन हो ?
उसने उत्तर दिया ; मैं मारा हूँ और मैं पूरे संसार को अपने वश में रखता हूँ लेकिन तू अगर मेरे वश से बाहर गया तो सब कुछ खो देगा।
सिद्धार्थ बोले ; क्या खो दूँगा ?
क्या है मेरे पास जो उसे खो दूँगा ?
मारा क्रोध में बोला ; मुर्ख तू अपना वैभव , अपना परिवार खो देगा और क्या !!
सिद्धार्थ मारा की बात को अनसुना करते हुए आगे बढ़ गए, महल के बाहर चन्ना रथ लेकर प्रतीक्षा कर रहा था ,
चन्ना शीघ्र चलो इससे पहले की लोग जाग जाएं..!
चौथा पहर बीतने वाला ही था
चिड़ियों ने चहकना शुरू कर दिया था
यशोधरा स्वप्न देख रही थी जिसमे सिद्धार्थ बादलों के पीछे छिपते चले जा रहे थे। उन्हें दूर जाता देख यशोधरा चीख रही थी ,
आर्य लौट आईये स्वामी ..!
लौट आईये आर्य..!
यशोधरा की नींद टूट जाती है और वह शयनकक्ष में सिद्धार्थ को ना पाकर चिंतित हो जाती है।
पूरा महल छान लेने के बाद यशोधरा को विश्वास हो गया कि सिद्धार्थ अब उसे त्याग चुके हैं !
यशोधरा धरती पर गिर पड़ती है और जोर जोर दहाड़ें मारकर रोने लगती हैं।
आर्य ….. आर्य ….आर्य
आपने मेरे साथ छल किया आर्य ;
आप मुझे सोता हुआ छोड़कर कैसे जा सकते हैं आर्य ..
मेरे प्रेम में क्या कमी रह गयी जो मैं आपको रोक न सकी…
यशोधरा के सुंदर मुख से अश्रुओं का झरना बह रहा था ।
प्रजापति गौतमी यशोधरा का सिर अपनी गोद मे रखकर कहती हैं;
चिंता मत कर पुत्री ,
सिद्धार्थ यही कहीं होगा
अभी आ जायेगा !
ऐसे कैसे वो हम सब को छोड़कर जा सकता है ।
नही माँ अब वो नही आएंगे उन्होंने गृहस्थ्य का त्याग कर दिया है माँ ..!
अब वो नही आएंगे..!
(यशोधरा सुबकते हुए बोल रही थी कि तभी महाराज शुद्धोधन गहरी पीड़ा में बोल उठे ;
नही आएगा वो ..!
सिद्धार्थ अब नही आएगा गौतमी ..!
छलिया था वो !
, हमसे छल करने आया था
वो हमारा कभी था ही नही गौतमी..
तुम्हे याद है गौतमी ..!!
असित मुनि ने क्या कहा था ?
चाहे लाख प्रयत्न कर लो बनेगा तो यह सन्यासी ही ..!
आज भी उनकी भविष्यवाणी मेरे कानों में गूंज रही है ,
मैं रात्रि में सो नही पाता था इस डर से कि कब सिद्धार्थ रात्रि में हम सबको सोता देखकर चला न जाये .
लेकिन कल न जाने क्या हुआ कि निंद्रा ने मुझे जकड़ लिया और मेरे कुल का दीपक हम सबको छोड़कर चला गया …!
गौतमी .. हमने पराई चीज़ को अपना मानकर अपने प्रेमपाश में बांधने की कोशिश की ।
हमारा तो वह था ही नही ..!
ऐसा कहकर महाराज शुद्धोधन फफक के रो पड़े और बोले;
विधाता ने हमारे भाग में संतान सुख लिखा ही नही था ।
इतने वर्षों बाद हमे पुत्र की प्राप्ति हुई भी तो वह सन्यासी बन गया ..
हे विधाता तूने किस जन्म का मुझसे बैर लिया है ..!!!
यशोधरा के अश्रु सूख चुके थे मगर हृदय की पीड़ा उतनी ही बढ़ रही थी उधर राहुल भूँखा था।
माँ के दूध के लिए तडप रहा था । यशोधरा ने जैसे ही राहुल की तरफ देखा उसे लगा सिद्धार्थ वहां बैठे हों , वह उठी और राहुल को गोद मे उठाकर सीने से लगाकर उसका माथा चूमते हुए रोने लगी।
चन्ना सुनो !
हां राजकुमार कहें ,
अब तुम जाओ लेकिन जाते जाते मेरे इन केशों को लेते जाओ और इन्हें यशोधरा को दे देना क्योंकि उसे मेरे केश बहुत ही प्रिय हैं।
सिद्धार्थ अपने केशों को सौंपने के बाद आगे की ओर चल देते हैं। आचार्य आलार कलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा लेते हैं लेकिन आचार्य उन्हें मुक्ति का मार्ग नही बता पाते तो वह ऋषि उदाका राम पुत्तम से ध्यान योग की शिक्षा लेते हैं । मुक्ति पर प्रश्न पूंछने पर ऋषिवर कहते हैं कि इस मार्ग पर हर मनुष्य को अकेले चलना पड़ता है।
तदुपरांत सिद्धार्थ स्वयं ही मुक्ति का मार्ग खोजने के लिए उरुवेला के जंगल को अपने ध्यान का स्थान चुनते हैं।
सिद्धार्थ अन्न का पूरी तरह से त्याग कर चुके थे जिससे उनका शरीर एकदम कमजोर पड़ चुका था ।
और एकदिन नदी का जल ग्रहण करने जा रहे थे कि भूमि पर गिर पड़े। उन्हें भूमि पर गिरता देख एक सुजाता नाम की स्त्री दौड़ती हुई आयी और उनके मुख पर जल छिड़कते हुए बोली ,
शिव.. शिव..शिव .. आप कौन हैं ?
और आप अपनी यह अवस्था क्यों कर बैठे हैं ?
मुक्ति .. मुक्ति .. मुक्ति ढूंढ रहा हूँ देवी
मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहा हूँ ( सिद्धार्थ हाँफते हुए बोले
सुजाता आश्चर्य से बोली;
हे शिव , मुक्ति का मार्ग …!
सन्यासी जब यह शरीर ही नही रहेगा
प्राण ही नही बचेगा तो मुक्ति का मार्ग आप कैसे खोजोगे !!!
साधन को त्यागकर कैसी साधना सन्यासी …!!!!!!
लो पहले यह खीर खाओ और ऊर्जा को प्राप्त करके तब साधना करो …
न जाने कैसा तेज था उस स्त्री की वाणी में कि सिद्धार्थ को खीर का एक चम्मच खाना ही पड़ा ।
उसके बाद सुजाता बोली ; देखो सन्यासी एक पहर का भोजन तो तुम्हे करना ही पड़ेगा समझे कि नहीं हाँ !!
और मैं रोज पहुंचा जाया करूँगी ।
सिद्धार्थ को यह बात समझ मे आ चुकी थी कि शरीर का त्याग कर देने से मुक्ति का मार्ग नही मिलता क्योंकि अगर ऐसा होता तो आत्महत्या से सरल मार्ग कुछ नही हो सकता।
देह को जीवित रखकर ही देह से मुक्ति का मार्ग खोजा जा सकता है।
एक दिन जब सुजाता खीर लेकर आई तो सिद्धार्थ ने सुजाता से उसका सोने का कटोरा मांग लिया और उसे नदी में बहाते हुए कहा कि अगर यह कटोरा धारा के विपरीत दिशा में बहेगा तो मानूँगा की आज मुझे बुद्धत्व की प्राप्ति हो जाएगी..!!
कटोरा धारा की विपरीत दिशा में बहने लगा जिसे देखकर सिद्धार्थ ने कहा ; अब मैं ध्यान से तब तक नही उठूंगा जबतक की मुझे बुद्धत्व की प्राप्ति नही हो जाएगी ।
सिद्धार्थ को ध्यान से उठाने के लिए मारा ने सारे प्रयत्न कर लिए मगर सिद्धार्थ नही उठे । सिद्धार्थ ने धरती पर अपने हाथ रखकर उसे अपनी सुचिता का साक्षी होने को कहा और आखिर वह घड़ी आ ही गयी जब बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हो गयी।
बुद्ध पूरी सृष्टि से जुड़ गए थे , पूरी सृष्टि में बुद्ध और बुद्ध में पूरी सृष्टि दिखाई पड़ रही थी दोनों ही एकाकार हो चुके थे । ध्यान से उठने के बाद बुद्ध ने सुजाता के पूंछने पर बताया कि यह ब्रम्हांड नारंगी के फल जैसे है जिसमे कई द्वार हैं।
सालों बाद बुद्ध कपिलवस्तु पहुंचे ।
बुद्ध के आने का समाचार सुनकर यशोधरा उनके पास गई और बोली ;
कौन आया है ?
मेरा पति या एक छलिया !!
बुद्ध ने शांत स्वर में कहा देवी तुम किसे खोज रही हो ?
यशोधरा : अपने पति को जिससे मुझे पूछना है कि जो मनुष्य अपनी व्याहता को सोते हुए छोड़कर चला जाय उसे क्या कहा जाय ..!!
छलिया ठग या कायर ..!
बुद्ध मुस्कुराए और बोले देवी यहां तो तुम्हारा पति नही है
यहां तो सिर्फ एक सन्यासी है ।
यशोधरा कड़े स्वर में बोली ; हाँ दिख रहा है मेरा पति यहां नही है लेकिन मैं देख रही हूँ मेरे पति की देह को एक सन्यासी ने अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए अपहत कर लिया है ..
बुद्ध बोले जो तुम्हे छोड़कर गया था वो सिद्धार्थ था लेकिन जो लौट कर आया है वह बुद्ध है ,
देवी ..! सन्यासी किसी के प्रश्न का उत्तर देने को बाध्य नही होते ।
वो अपनी इच्छा से ही विचरण, आचरण, संचरण , संवाद करते हैं..!
तो ठीक है मेरे पति की देह ही लौटा दो ..!!
यशोधरा क्रोध में बोले जा रही थी बुद्ध समझ चुके थे कि उसके क्रोध को तोड़ना ही पड़ेगा ।
इसलिए बुद्ध कोमल स्वर में पुकार कर बोले …यशो ..!
उतना सुनते ही यशोधरा की आंखों से अश्रु की धारा बहने लगी और जोर जोर से रोते हुए यशोधरा बोली ;
स्वामी आप मेरा त्याग कैसे कर सकते हैं..!
आपने एक पल भी नही सोचा कि आपके विरह में मैं कैसे जीवित रहूंगी !!!
यशो सुनो उठो अपने अश्रु पोंछ लो
और मेरी ओर देखो ..
यशोधरा जैसे ही बुद्ध का मुख देखती हैं उन्हें बुद्ध के मुख पर महातेज दिखता है जिसे देखकर यशोधरा शांत हो जाती हैं और एकटक देखती ही रहती हैं।
बुद्ध कहते हैं; यशो यह संसार दुखों से भरा हुआ है
हर मनुष्य दुख के कारण को न जानकर दुखी है , पीड़ा में है और मैं उसी की खोज में गया था ।
मैंने कारण को जान लिया है और अब उसे सारे संसार को देना चाहता हूँ।
यशो यदि रुई तेल से मोह कर ले तो वह जलकर संसार को प्रकाश नही दे सकता ।
मैं वही “दीपक “हूँ यशो और तुम “तेल ” हो तथा शरीर वह रुई है ।
मैं अगर आज ” प्रकाश” बना हूँ तो तुम्हारे त्याग के ही कारण अन्यथा जीवन मरण के चक्र में मैं और तुम भटकते रहते ।
हे यशो मोक्ष पर तुम्हारा अधिकार मेरे समान ही है ।
अतः मोह को त्याग दो ।
अगर संसार को बुद्ध मिला है तो उसका श्रेय तुम्हे भी जाता है।
दीपांकर बुद्ध तुम्हारी रक्षा करें ।
ऐसा कहकर बुद्ध उठकर चल दिये।
पता नही ऐसा कौन सा दिव्य ज्ञान वह सन्यासी दे गए थे कि वर्षों की सारी उलहनाओं को यशोधरा भूल चुकी थी ।
शायद यशोधरा ने भी बुद्धत्व को प्राप्त कर लिया था ।
सिद्धार्थ इतिहास में कहीं खो चुका था क्योंकि अब सिद्धार्थ प्रकाश का देवता बनकर बुद्ध के रूप में संसार को प्रकाशित कर रहा था।

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