कोई छात्रों को कोस रहा है
कोई सरकार को,
कोई उत्तरप्रदेश व बिहारी लोगों की उद्यमहीनता को कोस रहा है,
कोई सरकारी नौकरी को अपना अधिकार और रोटी का एकमात्र रास्ता बता रहा है।
पर समस्या की जड़ में कोई नहीं जा रहा है।
प्रवृत्तियां एक दिन में नहीं बनतीं।
सैकड़ों हजारों साल लगते हैं।
जिस बिहार उत्तरप्रदेश ने सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक ग्रंथ, मौर्य व गुप्त जैसे साम्राज्य दिये वह इस कदर पिछड़ कैसे गया?
सोचिये क्यों आक्रांताओं के घोड़े पंजाब पार करते ही उत्तरप्रदेश, बिहार व बंगाल को पार कर धड़धड़ाते हुये देवाक (ढाका) तक पहुँच जाते थे?
फिर एक क्षण को 1857 में कुछ ओज जागा और फिर तुरत ही ऐसे हीनताबोध में डूबा कि आईएएस, राजनीति और सरकारी नौकरी ही सामाजिक प्रतिष्ठा का मानदंड बन गई। प्रगतिशील व कॉमरेड बनने की बीमारी ने उद्योग, वाणिज्य व इन्फ्रास्ट्रक्चर को पलीता लगा दिया और उत्तरप्रदेश व बिहार आर्थिक-सामाजिक पतन की गर्त में गिरते चले गए।
कोढ़ में खाज यह हुई कि ‘जातिवाद’ ने इस पूरे क्षेत्र की राजनीति को इतना दूषित कर दिया कि उसमें सिर्फ अव्यवस्था, गुंडागर्दी, बेरोजगारी व भ्रष्ट सत्ताधारी और बाहुबली ही उत्पन्न हो सकते थे। जमीन टुकड़े-टुकड़े होकर आधा एक बीघा बची है ऐसे में एक आम ऊपियन या बिहारी क्या करे?
अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उसके पास दो ही रास्ते हैं- सरकारी नौकरी या अपराध!
इसीलिये सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती क्योंकि वह डेढ़ करोड़ वैकेंसी तो नहीं निकाल सकती न?
आप बस इतना कर सकते हो कि सरकार बदल दें लेकिन दिल पर हाथ रखकर बताइये कि क्या अगली सरकार आप सभी को नौकरी दे पायेगी?
तो उपाय क्या है? उपाय उत्तरप्रदेश ने दिखाया है जो अराजकता में बिहार से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं था।
उपाय है सरकार द्वारा कानून व व्यवस्था को ठीक करना और आपको उसमें सहयोग देना।
उत्तरप्रदेश आज आर्थिक प्रगति की राह पर है तो इसका मूल कारण है कि वहां सबसे पहले योगी सरकार ने कानून व व्यवस्था को ठीक किया और आज वहाँ व्यापारी निवेश कर रहे हैं जिससे रोजगार के नित नए अवसर पैदा हो रहे हैं।
बिहार में नीतीश कुमार ने पहली बार जब सरकार चलाई तो ठीक होती कानून व्यवस्था ने आर्थिक बेहतरी की उम्मीद जगाई थी लेकिन वर्तमान में वह एक कुंठित व्यक्ति हैं और वह कुंठा में सरकार चला रहे हैं।
बिहार के लोग राजनैतिक रूप से सबसे ज्यादा सक्रिय माने जाते हैं लेकिन उनकी राजनैतिक समझ शायद ही जातिगत दलदल से बाहर अपने व आने वाली पीढ़ियों के हित अनहित पर विचार करती हो।
जब तक बिहार के युवाओं से कोई मोदी योगी नहीं निकलता है तब तक कोई राजनैतिक बदलाव नहीं आएगा और वह तब तक नहीं मिलेंगे जब तक युवाओं की सोच सरकारी नौकरी और उस प्रतिष्ठा से बढ़िया दहेज सहित ब्याह का जुगाड़ से आगे नहीं बढ़ेगी।
मैंने इस प्रवृत्ति को थर्ड क्लास ब्रेन एबिलिटी से लेकर फेसबुक के एक प्रख्यात युवा साहित्यकार तक में देखा है।
कभी मेरा भी सपना था आईएएस बनना, नहीं बन पाया जिसमें एक कारक इनके परीक्षा बोर्डों में व्याप्त भ्रष्टाचार व घोर जातिवाद था लेकिन मैंने सरकार को नहीं कोसा। अपनी क्षमता को तौला और प्राइवेट सैक्टर में जॉब ढूंढी।
इसलिये आपके पास सदैव दो रास्ते होते हैं
एक रेल की पटरियों को उखाड़ना
या
पटरियों को बिछाकर उनपर रेल दौड़ाना।
चुनाव आपका है कि आपकी मूल वृत्ति क्या है?
अगर आपकी मूल वृत्ति पटरी उखाड़ना है तो सरकारी नौकरी में पहुंचकर भी लोगों की जिंदगी को नर्क ही बनाओगे।
और सबसे आखिर में,
वो बोर्ड व सरकारी अधिकारी जिन पर आपका आक्रोश है वे मंगल ग्रह से आये हैं?

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