सलमान रुश्दी की अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खड़े होने का मन करता है…पर इसमें जो सबसे बड़ी बाधा है वह यह कि वे सलमान रुश्दी हैं. उनके और खुमैनी के बीच में क्या प्यार मोहब्बत था वह उनके आपस का मामला है.
एक वोक लिबरल है तो दूसरा अमन का फरिश्ता है. रुश्दी के खिलाफ फतवा 14 फरवरी को जारी हुआ था और तब से हर साल ईरान उनके नाम से एक वेलेंटाइन डे कार्ड भेजता रहा है जो उन्हें याद दिलाता है कि उनकी गुस्ताखी न माफ की गई है न भुलाई गई है.
जब सैटेनिक वर्सेज कॉन्ट्रोवर्सी हुई तो उनकी ऑस्ट्रेलियन भूतपूर्व पत्नी ने रुश्दी के बारे में कहा था कि वह कायर है. उसने यह स्टंट पैसे कमाने के लिए किया है और अब वह जान बचाने के लिए कुछ भी करेगा. उसके बाद रुश्दी ने क्या क्या न किया.
.माफी मांगी, छुपते फिरे…मौलवी को बुलवा कर फिर से कलमा पढ़ा, प्रॉफेट की तारीफ की. लेकिन कुछ न हुआ. प्याज भी खाए, जूते भी पड़े और फिर हर्जाना भी दिया.
. यह 34 साल उन्होंने छुपते छुपाते काट लिए. इस दौरान उन्हें कम से कम 340 दफा यह ख्याल जरूर आया होगा कि काश उन्होंने यह स्टंट दुर्गा, काली, सीता, राम कृष्ण के नाम पर किया होता.
कॉन्ट्रोवर्सी होती, किताब बिकती (पढ़ता तो कोई खैर फिर भी नहीं), दुनिया भर के लिब्रांडू जिनके मुंह में आज दही जमा पड़ा है, उनकी अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खड़े भी होते… नोबेल ओबेल भी मिल जाता जो आज इस फतवे के मारे रुका पड़ा है. और हम और आप क्या करते…अधिक से अधिक बॉयकॉट कर लेते और इंटोलेरेंट गिन लिए जाते.