Home हमारे लेखकसुमंत विद्वन्स अक्षय की जुबा केसरी
वैसे यह तरीका भी बढ़िया है कि पहले विज्ञापन कर लिया और पैसे ले लिए। फिर जनभावना के सम्मान की बात कहकर उत्पाद से अलग होने की घोषणा कर दी। लेकिन विज्ञापन अपनी तय अवधि तक चलता रहेगा, ताकि खुद को या उस कंपनी का कोई नुकसान न हो।
अब कमाई की राशि अपनी ही पसंद की या अपनी ही आपस वाली किसी संस्था या एनजीओ को दान दे दी जाएगी। उस संस्था का भी लाभ हो जाएगा।
फिर उस दान के नाम पर शायद आयकर में भी कुछ छूट मिल जाएगी।
न विज्ञापन वापस होगा, न कंपनी का कोई नुकसान होगा। अपनी किसी आपसी संस्था को चंदा भी जाएगा, स्वयं को आयकर में छूट भी मिल जाएगी और इमेज सुधर जाएगी तो अगली फिल्म को भी शायद कुछ फायदा हो जाए। इधर सोशल मीडिया पर लोगों का यह भ्रम भी बना रहेगा कि उन्होंने घर पर बैठे बैठे ही बॉलीवुड अभिनेता को झुका दिया।
अभिनेता को अगर लगता है कि वह उत्पाद अच्छा नहीं है तो उसका विज्ञापन करना ही नहीं चाहिए था। अगर भरोसा है कि उत्पाद में कोई बुराई नहीं है तो विरोध के बावजूद उसके साथ खड़ा रहना चाहिए था।
आम लोगों को भी अपनी खोखली नैतिकता अपनी जेब में रखनी चाहिए। अगर आपको लगता है कि सिगरेट, शराब या गुटखा जैसी चीजें बहुत बुरी हैं, तो अपने जो दोस्त या रिश्तेदार इन चीजों के आदी हैं, उनका बहिष्कार करें। उनसे अपने संबंध खत्म करें। अपने जीवन में नैतिकता को परे रखकर हर काम केवल अपना फायदा नुकसान देखकर करने वाले लोग अपने अलावा हर किसी को उपदेश बताते हैं तो वे बहुत खोखले लगते हैं।
यदि आपको परिवर्तन की आवश्यकता महसूस होती है तो कृपया स्वयं से शुरुआत करें। सादर!

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