यह लड़का महारुद्रशिव के उन प्रिय गणों का रक्तवंशज है जिन्हें प्राचीन काल में ऋग्वेद अथर्ववेद आदि में ‘पिशाच’ और वर्तमान में ‘पिशाई’ कहा जाता है।
कभी ये कश्मीर से लेकर लघमान तक फैले थे लेकिन आज अफगानिस्तान में एक कोने में सिमट गये।
औरों की कौन कहे, जिनके लिए उन्होंने खून बहाया आज वही कृतघ्न जन्मनाजातिवादी हिंदू उन्हें गाली दे रहे हैं। अपने ही इन बांधवों को जो कभी महादेव के प्रिय गण हुआ करते थे, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें मुझसे, मेरी कृति से घृणा है क्योंकि वे उनके जन्मनाजातिवादी सिद्धांतो के विरोधी हैं।
जब तुम यहाँ कौन जाति किससे ऊँची है, किससे कितना नीची और विदेश जाने से धर्म चला जाता है, जैसी बकैतियाँ पेल रहे थे, तब साक्षात महारुद्र शिव द्वारा सभ्यता में दीक्षित व प्रशिक्षित उनके ये पिशाच गण, अरबी और बाद में तुर्क मुस्लिम आक्रांताओं से जूझ रहे थे।
आखिरी सांस तक ये लड़े और जब मुख में गोमांस रखकर इन्हें मुस्लिम बना दिया गया तो धूर्ततापूर्वक उन्हें ही पतित म्लेच्छ घोषित कर दिया जो तुम्हारे दरवाजे की रक्षा कर रहे थे।
इन जातिवादी धूर्तों के कारण ही ऋग्वैदिक हिंदू पठान, मुस्लिम पठानों में बदल गए वरना आज तालिबानी अफगानिस्तान आज हिंदू अफगानिस्तान होता और स्वर्णगैरिक सूर्यध्वज हिंदुकुश पर्वत पर लहरा रहा होता।
किसी के छूने मात्र से अपवित्र हो जाने वाले सड़े गले धर्मगुरुओं की जगह हमें महर्षि अगस्त्य जैसे धर्मगुरू चाहिए जो आतताइयों को पचाकर डकार भी न लें।
हिंदुत्व का शोक कि इन महायोद्धाओं को, शिव के प्रिय गणों का , भारत के द्वाररक्षकों का नामस्मरण कर कृतज्ञता व्यक्त करने पर उन्हें गालियां दी जा रही हैं।
मैं कामना करता हूँ कि शिव के इन प्रिय रुद्रगणों की पुनः घरवापसी हो और तालिबानी अफगानिस्तान पुनः हिंदू अफगानिस्तान बने।
जिन्हें यह असंभव लगता है वे समर्थन न दे सकते हों तो अपना मुँह बंद रखें और इनके हिंदू पूर्वजों को कम से कम गाली न दें जिन्होंने महादेव की आन की रक्षा अंतिम सांस तक की।