*नाटो ने इराक पर हमला नहीं किया*
भारत में बहुत लोगों को यह पता ही नहीं कि नाटो क्या है, यह किस तरह का मेकेनिज्म है, कैसे काम करता है। मनगढ़ंत व फर्जी नैरेटिव सेट किए रहते हैं। एक उदाहरण इराक का लेते हैं, भारत में अपवाद प्रतिशत को छोड़ सभी लोगों को लगता है कि इराक पर हमला नाटो ने किया था। जबकि नाटो का मेकेनिज्म ही ऐसा नहीं है कि नाटो इराक पर हमला करता, दूर-दूर तक प्रश्न ही नहीं है।
आइए बात करते हैं इराक पर किए गए उन युद्धों की, जिनको नाटो द्वारा किए गए हमले माने जाते हैं। इराक युद्ध की दो गाथाएं हैं। पहली गाथा इराक द्वारा 1990 में पूरे कुवैत व सऊदी अरब के एक इलाके पर पर कब्जा करने की। दूसरी गाथा 2003 वाली जब अमेरिका इत्यादि देश इराक पर हमला करके सद्दाम हुसैन को पकड़ते हैं। इन दोनों गाथाओं में नाटो का रोल देखते हैं।
—————
**पहली गाथा ~ 1990—91 का युद्ध**
—————
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पूरे कुवैत व सऊदी अरब के कुछ इलाकों को स्वतंत्र कराने के इस सैन्य आपरेशन में सऊदी अरब, इजिप्ट, सीरिया, मोरक्को, कुवैत, ओमान, बहरीन, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बांग्लादेश, नीगर, सेनेगल, अर्जेंटीना, दक्षिण कोरिया, चेकोस्लोवाकिया, फिलीपींस, हांडुरस, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान इत्यादि देश शामिल थे। यह नाटो का सैन्य-ऑपरेशन नहीं था।
———
सद्दाम हुसैन ने इरान से युद्ध के लिए अपनी सामरिक क्षमता में काफी बढ़ोत्तरी की थी। रूस के सहयोग से सद्दाम हुसैन के पास इतनी सामरिक क्षमता हो चुकी थी कि सद्दाम हुसैन को लगने लगा था कि वे किसी को भी आंखे दिखा सकते हैं। रूस के सहयोग से मिसाइलें भी खूब कर लीं थीं। लेकिन सामरिक क्षमता बढ़ाने के लिए पैसे लगते हैं, सद्दाम हुसैन ने सऊदी अरब व कुवैत जैसे देशों से खूब लोन ले रखा था। अकेले कुवैत से ही लगभग सवा लाख करोड़ रुपए का लोन ले रखा था। सद्दाम हुसैन ने कुवैत से कहा कि इराक का लोन माफ कर दे, कुवैत ने मना कर दिया।
2 अगस्त 1990 को इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया, और महज दो दिनों में ही पूरे कुवैत पर कब्जा कर लिया। यह कब्जा लगभग सात (7) महीने तक चला। इन सात महीनों में संयुक्त राष्ट्र संघ व दुनिया के तमाम देश कहते रहे कि इराक कुवैत को स्वतंत्र कर दे, लेकिन इराक नहीं माना। ऊपर से इराक धमकी देता रहा कि हम दुनिया के किसी भी देश से लड़ने में सक्षम हैं।
जब महीनों की बातचीत वाले प्रयासों से इराक नहीं माना तब संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनिया के अनेक देशों के सहयोग से एक सैन्य-संघ बनाया और कुवैत को इराक से स्वतंत्र कराने के लिए सैन्य-कार्यवाही करने का निर्णय लिया।
1990 का आपरेशन संयुक्त राष्ट्र संघ का था न कि नाटो का। इराक ने कुवैत पर पूरा कब्जा कर रखा था, वहां अपनी सरकार स्थापित कर दी थी। कुवैत की कुल जनसंख्या की आधी से अधिक जनसंख्या कुवैत छोड़कर दूसरे देशों में शरणार्थी बन गई थी। इराक ने सऊदी अरब के एक-दो इलाकों में भी कुछ समय के लिए कब्जा कर लिया था। इराक ने इजरायल को प्रोवोक करने के लिए इजरायल पर एक दो नहीं लगभग 100 के आसपास मिसाइलें दागीं थीं।
इराकी सेन जब कुवैत से हारकर वापस जा रही थी तब कुवैत के सैकड़ों तेल के कुओं में आग लगा दी थी। इराक ने कुवैत में जो किया उसके कुवैती लोगों के जीवन व स्वास्थ्य पर प्रभाव अब तक चल रहे हैं। सैन्य ऑपरेशन में सद्दाम हुसैन को इराक का मुखिया बने रहने दिया गया था। यह माना गया था कि सद्दाम हुसैन अपनी करनी से सबक लेंगे।
—————
**दूसरी गाथा ~ 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हमला**
—————
1991 में जब सद्दाम हुसैन को कुवैत पर अपना कब्जा छोड़ना पड़ा तो सद्दाम हुसैन जिनको लगता था कि उनकी सैन्य क्षमता बहुत अधिक है, अपनी असली औकात मालूम पड़ गई थी दुनिया की बहुत कम है। इसलिए कुछ वर्ष तो शांत रहे लेकिन फिर कुछ न कुछ करने की ओर बढ़े। इराक के अंदर ऐसे ग्रुप थे जो सद्दाम हुसैन को हटाना चाहते थे, सद्दाम हुसैन को तानाशाही करते लंबा समय हो चुका था। इस लेख में हम 2003 पर किए गए हमलों के कारणों में नहीं जाएंगे, अलग-अलग धाराओं के अपने-अपने नैरेटिव्स हैं। हम केवल नाटो की बात करेंगे।
मार्च सन 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हमला शुरू हुआ, तीन हफ्तों से भी कम समय में इराक जो एक ताकतवर सैन्य ताकत था, पूरी तरह से हार गया। सद्दाम हुसैन गद्दी छोड़कर भाग गए और जान बचाने के लिए यहां वहां चोरी से छिपने लगे, लेकिन दिसंबर 2003 में सद्दाम हुसैन पकड़े जाते हैं, दिसंबर 2006 में सद्दाम हुसैन को मृ्त्युदंड दिया जाता है।
———
इस युद्ध में नाटो नहीं था। नाटो के कनाडा, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि देशों ने भागीदारी करने से मना कर दिया था। फ्रांस व जर्मनी ने तो बाकायदा विरोध किया, और यहां तक कहा कि यदि ऐसा प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ में आता है तो प्रस्ताव के विरोध में वीटो करेंगे। कनाडा ने कहा कि जब तक संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव नहीं पारित होता, कनाडा इस कार्यवाही का साथ नहीं देगा। अमेरिका ने प्रस्ताव पेश ही नहीं किया।
———
जिन लोगों को पता नहीं है वे जान लें कि चाहे 1991 रहा हो या 2003, इराक से जुड़े युद्धों में नाटो ने सैन्य आपरेशन नहीं किया था। 1991 का सैन्य आपरेशन संयुक्त राष्ट्र संघ का था, यहां तक कि चीन व रूस ने भी प्रस्ताव पर वीटो नहीं लगाया था जबकि चाहते तो लगा सकते थे।
2003 में अमेरिका द्वारा किया गया इराक पर हमला नाटो का नहीं था, न ही नाटो का सपोर्ट था। नाटो का निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता है, यदि एक भी सदस्य नहीं कहता है तो प्रस्ताव रद्द। नाटो ने आजतक किसी भी देश पर हमला नहीं किया है, क्योंकि नाटो का मेकेनिज्म ही ऐसा है कि नाटो आक्रामक संस्था नहीं है, डिफेंसिव संस्था है।
———
तथ्य, तथ्य होते हैं। हमारी आपकी पसंद या पूर्वाग्रह या बकलोली भरी चर्चा में जबरिया जीतने हारने की सड़कछाप मानसिकता के आधार पर तथ्य बदल नहीं जाते हैं।
_
विवेक उमराव
.
previous post