Home राजनीति मेरा सरोकार सच से है , किसी पार्टी से नहीं

मेरा सरोकार सच से है , किसी पार्टी से नहीं

दयानंद पांडेय

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कोई ट्रिक , कोई पैतरा , कोई चश्मा , जिस के सरोकार में आते होंगे , आते होंगे । मेरे सरोकार में नहीं । मेरा सरोकार सच से है , किसी पार्टी से नहीं । दूसरे , अगर किसी का अपना कोई नजरिया है तो वह अपने पास ही रखे । पत्रकारिता या लेखन में नज़र और नज़रिया दोनों ही का ध्यान रखना पड़ता है । लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि खूंटे से बंध कर रहना होता है , बिकाऊ बन कर रहना पड़ता है । बल्कि इस के उलट सच को सच ही रखना पड़ता है । अगर बारिश हो रही है तो धूप कैसे लिख दिया जाए ? हां , पेड मीडिया और वैचारिकी और प्रतिबद्धता के हठ में लोग यह करते रहते हैं । लेकिन पत्रकारिता या किसी लेखक का काम यह नहीं है । सो कोई मित्र पत्रकारिता तो मुझे सिखाने की होशियारी किया मत करें । आप अपना लीगी या जातीय चश्मा घर में रख कर ही मेरी वाल पर आएं तो ख़ुशी होगी । यहां मौलानाओं की तजवीज या तावीज नहीं , सच की सूरत और सीरत चलती है । दर्पण है मेरी वाल । बारिश हो रही है तो बारिश , धूप खिली है तो धूप , बादल है कि चांदनी , सब सच-सच ! पत्रकारिता में हम ने कभी किसी की दलाली , भडुवई नहीं की है , न किसी खूंटे में बंध कर रहा हूं। इस लिए सच कहने और लिखने की ताब रखता हूं। हमारी नज़र में अभी सभी की सभी राजनीतिक पार्टियां सांप नाथ और नाग नाथ की ही हैसियत रखती हैं । लेकिन इस बिना पर हम किसी को अपनी तरफ से हराने या जिताने वाले होते कौन हैं ? यह तो जनता जनार्दन है , उस का ही यह काम है । हमें तो बस आंखिन देखी ही लिखना होता है । पेड नहीं , वैचारिकी या प्रतिबद्धता के खाने में लोट-पोट कर नहीं । आप अपना चश्मा संभालिये या अपनी जाति या वैचारिकी , या अपने इमाम , मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता । आप को पड़ता है , तो यह आप जानिए । फिर दुहरा रहा हूं , मेरा सरोकार सच से है , किसी पार्टी से नहीं । किसी को यह नहीं सूट करता तो मेरी बला से ! लेकिन किसी सूरत मैं दिन में अंधेरा नहीं बसा सकता , न ही रात में सूरज उगा सकता हूं। अलग बात है कि यह काम पेड मीडिया और वैचारिकी के खूंटे में बंधे लोग पूरी गुंडई और समूची बदसूरती से कर रहे हैं ।

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