Home विषयसाहित्य लेख लोग हिंदुत्व के खांचे से बाहर निकल कर बहुत दूर निकल गए

लोग हिंदुत्व के खांचे से बाहर निकल कर बहुत दूर निकल गए

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सच तो यह है कि लोग हिंदुत्व के खांचे से बाहर निकल कर बहुत दूर निकल गए थे । मंडल , कमंडल की राजनीति से भी दूर । ख़ास कर युवा । लेकिन सामाजिक न्याय के अंतरद्वंद्व , दलित और यादव के बीच वर्चस्व की जंग , फिर सेक्यूलरिज्म की एकपक्षीय तिकड़म के चलते लोग हिंदुत्व पर फिर लौट आए । कहीं ज़्यादा उभार के साथ । हिंदुत्व के इस प्रचंड उभार में जातियों का उभार और दंश दोनों टूट गया । फिर इस सेक्यूलरिज्म की तिकड़म में भी तिहरे तलाक़ पर घनघोर चुप्पी । तिस पर बी पी एल के लोगों में उज्ज्वला योजना के तहत बिना भेद-भाव किए गैस के वितरण ने इस उभार को और चटक कर दिया । पहले मोदी के प्रति बेहिसाब नफ़रत अब योगी के प्रति वही नफ़रत । मत पसंद कीजिए इन को , ख़ूब कंडम कीजिए । लेकिन जनादेश को तो कम से कम समझने की कोशिश कीजिए । हवाई फायर में कुछ नहीं रखा । मंज़र भोपाली का एक शेर है :

 

उम्र भर तो कोई भी जंग लड़ नहीं सकता
तुम भी टूट जाओगे तजुर्बा हमारा है
दोस्तों ज़मीन पर कुछ कीजिए । जनता से जुड़िए । उस की बात , भावना और संवेदना को समझिए । फिर उसे बदलिए । लफ्फाजी और नफ़रत से समाज नहीं बदलता । कबीर की तरह बात करना सीखिए । सही को सही , ग़लत को ग़लत कहने की तमीज विकसित कीजिए । सनक , ज़िद , एकतरफा बात करने की ऐंठ और सरोकारहीनता से छुट्टी लीजिए । हर किसी असहमत को संघी , भाजपाई और सांप्रदायिक होने का सर्टिफिकेट देना बंद कीजिए । बिगड़ी बात को फिर से बनाने की सोचिए । दुनिया अब भी बहुत खूबसूरत है । बुद्ध कहते हैं कि कुछ भी स्थाई नहीं होता । हर चीज़ गुज़र जाती है , बदल जाती है । समय भी । पहले ख़ुद को बदलिए दोस्तों , वरना कारवां गुज़र जाएगा , आप सिर्फ़ गुबार देखते रह जाएंगे।

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