सच तो यह है कि लोग हिंदुत्व के खांचे से बाहर निकल कर बहुत दूर निकल गए थे । मंडल , कमंडल की राजनीति से भी दूर । ख़ास कर युवा । लेकिन सामाजिक न्याय के अंतरद्वंद्व , दलित और यादव के बीच वर्चस्व की जंग , फिर सेक्यूलरिज्म की एकपक्षीय तिकड़म के चलते लोग हिंदुत्व पर फिर लौट आए । कहीं ज़्यादा उभार के साथ । हिंदुत्व के इस प्रचंड उभार में जातियों का उभार और दंश दोनों टूट गया । फिर इस सेक्यूलरिज्म की तिकड़म में भी तिहरे तलाक़ पर घनघोर चुप्पी । तिस पर बी पी एल के लोगों में उज्ज्वला योजना के तहत बिना भेद-भाव किए गैस के वितरण ने इस उभार को और चटक कर दिया । पहले मोदी के प्रति बेहिसाब नफ़रत अब योगी के प्रति वही नफ़रत । मत पसंद कीजिए इन को , ख़ूब कंडम कीजिए । लेकिन जनादेश को तो कम से कम समझने की कोशिश कीजिए । हवाई फायर में कुछ नहीं रखा । मंज़र भोपाली का एक शेर है :