स्वरा भास्कर जैसी प्रगतिशील अदाकारा भी आखिरकार संघी सांप्रदायिक मनुवादियों के बहकावे में आ ही गई। आखिरकार उन्होंने आफताब पूनावाला जैसे रहमदिल नेक आशिक को राक्षस बता डाला।
क्या करिएगा! ये समय ही इतना खराब है कि मीडिया और बाजार तो छोड़िए, इंसानी दिमाग़ तक पूरी तरह उनके कब्जे में हो गया है। इंसान ने अब खुद अपने दिमाग़ से काम लेना छोड़ दिया है। आखिर कितने दिन कोई आदमी अपने दिमाग़ से काम ले पाएगा, जब दिन रात उसके ऊपर मीडिया के जरिये फासीवादी विचारों की बम्बार्डिंग होती रहेगी?
आखिर क्या किया है आफताब जी ने। कुल मिलाकर एक काफिर दलित लड़की के 35 टुकड़े ही तो किए हैं! वह भी एक ऐसी लड़की के जो उनकी माशूका थी। क्या अपनी पांचवीं माशूका पर एक बेरोजगार अल्पसंख्यक नौजवान का इतना भी हक़ नहीं है। यह ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था क्या जाने एक आशिक के दिल का दर्द!