कम्युनिकेशन एक दो तरफा प्रक्रिया है. बच्चों से कम्युनिकेशन करते हुए उनकी बातें सुनें. जानें कि वे क्या जानते हैं, क्या नहीं जानते. उनकी क्या दुविधाएं हैं, क्या भ्रम हैं. उनको क्या मालूम है जो हमें नहीं मालूम. उनके लिए क्या महत्व की बात है. एकतरफा प्रवचन किसी काम का नहीं है.
आपसे अनुरोध है, चर्चा को सार्थक बनाएं कि अगली पीढ़ी से धर्म और राष्ट्र के प्रश्न पर कैसे सफल संवाद स्थापित किया जा सके. आपके अनुभव क्या कहते हैं, आपको कौन से विंदु महत्वपूर्ण लगते हैं, कृपया इस चर्चा में कंट्रीब्यूट करें.
बच्चों को बातें रिस्पेक्ट से सुनें. उनके ओपिनियंस आपको आज बचकाने लग सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने उस उम्र के ओपिनियन्स से तुलना कर के देखें… आज के बच्चे हम उस उम्र में जितना सोच पाते थे उससे अधिक वेल इनफॉर्म्ड हैं. “तुम्हें कुछ नहीं पता” वाले मोड में क्लास ना लें. आप उन्हें जितना जज कर रहे हैं, वे भी आपको उतना ही जज कर रहे होते हैं. और हमारी गरज है कि हम उन्हें अपना प्वाइंट ऑफ व्यू समझा सकें, उन्हे कोई गरज नहीं पड़ी…आप समझें या ना समझें वे आपको इग्नोर करके अपनी राह चल पड़ेंगे… अच्छी या बुरी, पर चल पड़ेंगे…
और जहां तक विद्रोही होने या बात नहीं मानने की बात है, उस उम्र में हम सब विद्रोही थे. यह अपेक्षित ही नहीं, आवश्यक भी है. सभ्यता का इवोल्यूशन इसी पर निर्भर है. यह मानव प्रकृति की डिजाइन है…इससे लड़कर हम नहीं जीत सकते. हमारा काम इसे दिशा देना भर है. नए विचार और विद्रोही प्रवृति तो हवाएं हैं, हमें पाल को हैंडल करने आना चाहिए. हवाओं को रोकने का कोई उपाय नहीं है. बच्चे आपसे आज सहमत नहीं हैं तो ऑफेंड ना हों, संवाद बनाए रखें. और इस संवाद के लिए आवश्यक है कि बच्चे के प्वाइंट ऑफ व्यू के लिए रिस्पेक्ट दिखाएं.
और एक मिनट के लिए देखिए…आपके दादाजी या पिताजी के समय से आज का समय कितना बदला है.. तो आगे नहीं बदलेगा इसकी अपेक्षा कितनी व्यवहारिक है? हमारे युवावस्था के समय से दस वर्ष पहले लड़कियों और लड़कों का बात करना भी एक असंभव घटना थी. हमारे समय तक में लव मैरिज भी विद्रोह था. आज हम इसपर आ गए हैं कि प्लीज एक दूसरे को पसन्द करते हो तो शादी तो कर लो…हम चाहें या न चाहें, आगे भी बहुत कुछ बदलेगा.
हम दुनिया का अकेला सभ्य समाज होंगे जहां इसपर बहस होती है कि अपने बच्चों से संवाद करना चाहिए या नहीं करना चाहिए. और संवाद करना चाहिए या अनुशासन रखना चाहिए इसपर बहस होती है, जैसे कि संवाद और अनुशासन एक दूसरे से परस्पर विरोधी विषय हों.
आप परिवार में एक सांस्कृतिक अनुशासन रखना चाहते हैं.. रखेंगे कैसे? कोड़े बरसाकर? या जमीन में गाड़ के पत्थर मार कर? उस अनुशासन को बनाने और बनाकर रखने के लिए भी तो संवाद ही चाहिए ना.
आप एक सभ्य समाज में उतना ही सामाजिक अनुशासन रख सकते हैं जितना समाज में सामान्य स्वीकृति हो. अगर समाज की स्वीकृति का दायरा बदल रहा है तो अनुशासन का दायरा भी बदलेगा. अगर उस बदलाव को आप नियंत्रित करना चाहते हैं तो आपको अपने मानकों और आदर्शों की स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए प्रयास करना होगा. और इसी प्रयास का नाम संवाद या कम्युनिकेशन है. आपको अगली पीढ़ी को बताना होगा कि क्यों आपके सुझाए हुए मानक उनके हित में हैं. उसके लिए आपको यह भी समझना होगा कि नई पीढ़ी अपने हितों को कैसे परिभाषित करती है.
हमारी पूरी एक्सटेंडेड फैमिली में हमारा अपना परिवार बाकी रिश्तेदारों से अलग था. मेरे पिताजी के लिए समाज के मानकों से अधिक हम बच्चे महत्वपूर्ण थे. हमारे परिवार में पूरे कुटुंब का पहला लव मैरिज हुआ, और पहला इंटरकास्ट मैरिज भी हुआ. हालांकि पिताजी से कम्युनिकेशन आइडियल नहीं था, लेकिन फिर भी काफी खुलापन था जो बाकी परिवार में नहीं था. आज अगली पीढ़ी में भी हमारे बीच वही खुला वातावरण है और अगली पीढ़ी की बच्चियां भी बिल्कुल स्पष्ट हैं कि क्या करना उचित है और क्या अनुचित है. उन्हे पता है कि अपनी पसंद का लड़का चलेगा लेकिन मलेच्छ नहीं चलेगा. और यह बाउंड्रीज उन्होंने स्वयं समझी हैं और स्वीकार की हैं.
वहीं हमारे कुटुंब के ऐसे भी परिवार हैं जहां भरपूर अनुशासन है. जहां कोई चूं नहीं करता, कोई पत्ता नहीं हिलता. लेकिन अगली पीढ़ी की महिलाएं जो उसी अनुशासन में पली बढ़ीं, उनका माइंड बिल्कुल बदल चुका है. वहां माएं अपनी बेटियों के बारे में बोलती हैं कि वह जिससे चाहे शादी कर ले… किसी भी जाति क्या किसी भी रिलीजन, किसी भी रेस में.. लड़के से करना हो तो लड़के से करे और लड़की से करना हो तो लड़की से… क्योंकि आप कितना भी सोचें कि आपने उनके माइंड को कंट्रोल में रखा है, लेकिन उसपर इतने तरफ से इनपुट आ रहे हैं कि आप सबको नहीं कंट्रोल कर सकते. अगर आपने उन्हें उससे निबटना नहीं सिखाया, उनके प्रश्नों के उत्तर नहीं दिया तो आप उन्हें हमेशा इंसुलेट करके नहीं रख सकते. एक पीढ़ी के लिए जबरन रोक भी लेंगे, अगली पीढ़ी की माएं उन्हें खुद बाहर धकेल देंगी. जब ईरान इसे नहीं रोक पा रहा है तो आप कैसे रोक लेंगे?
हर परिवर्तन का एक समय होता है. जब वह आ जाता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता. आप उसपर सर पीट सकते हैं या छाती पीट सकते हैं, पर रोक नहीं सकते. इसलिए पहचानिए कि उनमें से कौन से परिवर्तन अपरिहार्य हैं, कौन से बिल्कुल अवांछित हैं, कौन से हानिकारक तो हैं पर उन्हें कम से कम हानिकारक कैसे बनाया जाए. बेस्ट ट्रेड-ऑफ क्या है. इसे चेंज मैनेजमेंट कहते हैं. दूसरे शब्दों में कहें कि जिन परिवर्तनों को आना ही है, बेहतर है कि उन्हें दरवाजा खोल कर भीतर बुलाया जाए और इज्जत से कुर्सी पर बिठाया जाए.. वरना वे दरवाजा तोड़कर अंदर आ जायेंगे और उनके साथ अनेक अवांछित परिवर्तन भी आयेंगे जो आपको बिल्कुल नहीं चाहिए.
दुनिया आपकी नहीं है. दुनिया अगली पीढ़ियों की है. वह कैसी होगी इसे वे ही निर्धारित करेंगे. उन्हे समय से इसका भागीदार बनाएं… थोड़ी इज्जत बची रहेगी.

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