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वृंदावन! इस धरा पर एक ऐसा क्षेत्र जिसके कण-कण में रचा बसा है वियोग श्रृंगार।
चित्तौड़ की बावरी मीरा हो या पागल पठान रसखान,
गुजरात के हठीले कृष्णदास हों या नेत्रविहीन सूरदास,
हर किसी का लक्ष्य वृंदावन ही होता था।
स्वामी हरिदास और उनके वैष्णव परंपरा के विष्णुपद गायक शिष्यों के चरणों में बैठना तानसेन अपना सौभाग्य मानते रहे और क्यों न हो, पत्थरों को भी पिघलाने वाली बाँसुरी की धुन जिनकी आत्माओं को तड़पाती हो उनके प्यासे ह्रदय से निकले संगीत की गहराई को एक क्या, लाख तानसेन भी नहीं पा सकते थे।
वृंदावन का कण-कण कृष्ण को पुकारता है पर बालकृष्ण के नटराज रूप के साक्षी बने द्वादशादित्य टीले के भाग्य ही अनोखे थे।
कालिय के फन पर चपल चरणों के जिस नृत्य को देख महादेव भी अपना समाधिसुख छोड़ आनंदनृत्य में झूम उठे थे, वहाँ उनकी स्मृति में बना यह मंदिर- मदनमोहन मंदिर।
पर चिर वियोग की इस भूमि पर कान्हा क्यों कर टिकते!
माध्यम बना अभिनव कालयवन- पापी औरंगजेब।
लेकिन श्रीनाथ जी की तरह मदनमोहनजी के श्रीविग्रह को उनके भक्तों ने सुरक्षित निकाल लिया।
वैसे भी वे तो ठहरे रणछोड़।
पर वे द्वापर की तरह ही लौटकर न आ सके अपने घर और करौली में जयपुर से ब्याहकर आई कछवाहा राजकुमारी की प्रेमपगी भक्ति के बंधनों में बंधे करौली के ही होकर रह गये।
श्रीयुत नंदकुमार बोस ने भले ही नवीन मंदिर बनाकर श्रीराधा मदनमोहन जी के श्रीविग्रह का एक प्रतिरूप वहाँ पधरा दिया हो और उड़ीसा से श्री प्रतापरुद्र के शिष्य द्वारा भेजी राधिका जी और ललिताजी भी आ विराजी हों लेकिन खंडित पुराना मंदिर आज भी आहत प्रेमी सा खड़ा है जिसके विरह की पीड़ा किसी भग्नह्रदय को ही समझ आ सकती है।
वर्षों पहले जब इसके पार्श्व से होकर गुजरा था तब इसके खंडित शिखर को छूकर आती उदित सूर्य की किरणों की छुअन ने उस शाश्वत बिछोह की पीड़ा को जगाया था।
संभवतः लीलापुरुषोत्तम के आदेश पर मंदिर को छूकर आने वाली सूर्यरश्मियाँ जातिस्मरता का अनुभव कराने ही आई थीं, मोहनिद्रा से जगाने हेतु।
बाह्य जगत अदृश्य हो चुका था और वह भग्न मंदिर अपनी मूक भाषा में संवाद कर रहा था।
दो आहत बिछड़े प्रेमी आमने सामने थे।
यह मंदिर मेरी आस्थाओं का भग्न प्रतिरूप है।
वह भी उदास है बिल्कुल मेरी तरह,
वह भी व्याकुल है अपनी खोई आत्मा की प्रतीक्षा में,
वह भी बाट जोह रहा है मिट जाने से पहले पूर्ण हो जाने की।
सांझ आ पहुँची है और तुम अभी तक नहीं आये कान्ह!

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