Home चलचित्र The Kerala Story – Filmy Review

बंजर रेगिस्तान में दफन हरे-भरे केरला की स्टोरी! शालिनी उन्नीकृष्णन, गीतांजलि और निमाह मैथ्यूज की कहानियों को द कश्मीर फाइल्स में लगाना चाहिए। क्योंकि ये फ़िल्म नहीं बल्कि दस्तावेज है, इनका मकसद और मंजिल एक ही है

लेखक तिकड़ी सूर्यपाल सिंह, सुदीप्तो सेन, विपुल अमृतलाल शाह ने मिलकर केरल के भीतर दबी, उन कहानियों को एकजुट किया है जिससे लोग अनजान थे। शालिनी, गीतांजलि के परिवार व निमाह मैथ्यूज की आपबीती के इर्दगिर्द प्लॉट बिल्ड किया गया और किरदार खड़े किए। उन क़िरदारों से लव-जईहाद और काफिराना मुद्दे को एड्रेस करने की कोशिश हुई है।

आखिर कन्वर्ट करके असल टारगेट क्या है।
किस प्रकार मोहरे बिछाकर जाल फ़ेंकर मासूम लकड़ियों को फंसाया जाता है। खिलखिलाते चेहरों पर दर्द व आंसू उतार दिए। इस पूरे मिशन की थीम में अंत मौत ही है। इसे छोटे स्तर पर देखें तो सूटकेस और बड़े लेवल पर आतंकी शालिनी उन्नीकृष्णन जेल में कैद है
विपुल शाह की कहानी उन सभी लव परियों के वक्तव्य को करारा तमाचा मारती है कि ‘अरे, न..न..न..मेरा वाला ऐसा नहीं है…ब्ला…ब्ला’
स्क्रिप्ट व स्क्रीन प्ले के नजरिये से लेखन टीम इमोशन क्रिएट करने में नाकाम रही है, क्योंकि लीड क़िरदारों से कनेक्टिविटी प्रॉपर न थी। कभी कनेक्ट करती, तो कभी टूट जाती। फ्लो बना नहीं पाए है। क्योंकि जितना दर्द शालिनी सहती है और निमाह बतलाती है। तब 70एमएम पर उबरकर सामने न आता है। कुछ सीक्वेंस है जिनकी कनवेसिंग ग्रिप रहती है और कुछ इमोशन देते है। जब स्क्रीन पर माता-पिता की बेबसी झलकती है। यक़ीनन सेंसर में 10 वीडियो कटे है, उनसे कहानी के मर्म पर असर पड़ा हो।
डायलॉग भी ठीक है। बस, लिपिस्टक वाला जोरदार लगा।
बीजीएम में सुनिधि चौहान का पागल परिंदे बेहतरीन लगता है। इसके अलावा बैक ग्राउंड स्कोर ओके है।
निर्माता-निर्देशक ने अपने किरदारों को कलाकार बेहतर दिए है खासकर शालिनी, गीतांजलि और निमाह…
शामिलि उन्नीकृष्णन! अहा, अदा शर्मा की डायलॉग डिलवरी परफेक्ट, चेहरे के हाव-भाव में मासूमियत, बागी ने अच्छा बैलेंस रखा है। नर्सिंग कॉलेज में एंट्री लेने वाली मासूम शालिनी और फिर सीरिया की फातिमा…बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन लाजबाव रहा है। जो हर उन लड़कियों का नेतृत्व करने को उतारू दिखता है। फरेबी लव की खातिर घर-परिवार को झटके में छोड़ देती है।
गीतांजलि! अभिनेत्री सिद्धि इडनानी ने कॉमरेड गीतू को दर्शकों के सामने रखा है। लेफ्टि सिस्टम में गीतू को कोई बचाने आगे न आया…बल्कि निमाह मैथ्यूज की एफआईआर तक न लिखी गई। सिल्वर स्क्रीन पर योगिता बिहानी ने निमाह की कहानी सुनाई है।
सुदीप्तो सेन ने हिम्मत के साथ ऐसे मुद्दे को चुना है, जिसकी चीखें केरल से सीरिया तक अवश्य सुनाई दी। लेकिन देश के अन्य राज्यों या कहे केरल की लेफ्टि सरकार तक न पहुँच पाई। अगर वाक़ई पहुचीं होती तो कुछ कार्यवाही होती…निर्देशन के स्तर पर सेन साहब उतना माहौल सिनेमाई फॉर्मेट में जुटाने में पिछड़ गए, जितना दर्द क़िरदारों की जुबां पर था। इसे ज्यादा बेहतर मर्मस्पर्शी परिवेश में परोसा जा सकता था।
सिनेमाई परिपेक्ष्य में देखूं, तो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन 2008 में आतंकियों से दो-दो हाथ करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। इधर, शालिनी उन्नीकृष्णन लव-जईहाद की सीढ़ियों पर चढ़कर आतंकवादियों की भेंट चढ़ गई।
जब फिल्म का ट्रेलर सार्वजनिक हुआ था न, तब विपक्षी खेमे में हलचल हुई और इसे वन लाइन में प्रोपगेंडा व झूठा बतला दिया। कोई इनाम रखकर सबूत माँगे रहा, निर्माता ने फ़िल्म के आखिर में 32000 हजार के सोर्स का खुलासा किया है। आरटीआई का जिक्र भी किया है।
सोचनीय, सच को जबसे वुडलैंड के जूते मिले है न, अब कोई भी झूठ बाहर निकलने का प्रयास न करता है। अगर निकला तो वुडलैंड का तगड़ा प्रहार होगा…बेखौफ सच दुनिया के चक्कर लगा रहा है।
सभी ने इन तीनों लड़कियों को सुनना चाहिए, उन माता-पिताओं को जो अपनी बेटियों को मार्डन सोच में छोड़ कर बेफ़िक्र है। इस कहानी से उनकी बेफिक्री छूमंतर हो जानी है और समय समय पर अपनी बेटियों को झांकते रहना चाहिए…ताकि कल उठकर यह न कहे,”मॉम डैड मेरा वाला बिल्कुल भी ऐसा-वैसा नहीं है बहुत केयरिंग है और बहुत ख्याल रहता है”
उन पापा की परियों को भी खासतौर पर देखनी चाहिए, जिनके ख्वाब में हसीन लव भरे सीक्वेंस चलते रहते है।
क्लाइमैक्स बहुत बड़ी सीख देता है जब पुलिस अधिकारी कहते है कि,”हम कोई कार्यवाही कैसे करें, निजी, इंटरनल मामला है” ये बात 100 टका खरी है। पुलिस छोड़ दो, मेट्रो में आँटी ने कुछ कह दिया था, उसे आई एम 18 प्लस का चूरन थमा गई।
ट्रैप है तो हमें ही समझना होगा…आंख-कान खोलकर रहना पड़ेगा। तभी शालिनी, गीतांजलि और निमाह को मिले रास्ते बंद होंगे।
अबे प्रोपगेंडा व झूठा कहने वालों, पहले उन परिवारों की शिनाख्त तो कर लेते, जिनके हरे भरे आंगन से बेटियां रेतीले रेगिस्तान में खो गई, उनके घर उजड़ गए… बड़ी आसानी से कह दिया। जिनके ऊपर बीतती है न, वे ही असल दर्द को समझते है। ख़ैर।

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