Home राजनीति 1999 में कांधार अपहरण कांड
1999 में कांधार अपहरण कांड के समय भारत में एक समूह था मीडिया का, अपहृत नागरिकों के परिवारी जनों का और विपक्ष का जो माँग कर रहे थे देश को कोई भी क़ीमत चुकानी पड़े, कितने भी सिपाही शहीद करने पड़ें, कितने भी बेगुनाहों की भविष्य के आतंकी हमले में हत्या हो, कितने भी आतंकी रिहा करने पड़ें, किसी भी क़ीमत पर हमारे रिश्तेदारों को छुड़ा लिया जाए.
पर वहीं दूसरी ओर ऐसे भी वीडियो आए कि रिहाई के पश्चात अपहृत नागरिक रोते हुवे वीडियो में आए कि उन्हें ऐसी रिहाई नहीं चाहिए. एक से पूँछा गया तो उसने अपना चेहरा ढक लिया कि उसको छुड़ाने के लिए दुर्दांत आतंकी छोड़ने पड़े. कुछ लोग ऐसे थे जो वापस आते ही ज़मीन की मिट्टी चूम प्रणाम कर रहे थे. तो वहीं कुछ ऐसे भी थे जो अभी भी खुश ना थे, दस कमियाँ निकाल रहे थे कि कैसे उन्हें अपहरण काल में चिली चिकन नहीं खिलाया गया, सरकार थोड़ा शीघ्र आतंकी रिहा कर देती तो उन्हें गंदे टायलेट में टायलेट न जाना पड़ता.
सभी तरह के लोग होते हैं समाज में, यह दिखाता है कि उन्हें कैसे संस्कार मिले हैं.
यूक्रेन से रेस्क्यू कर आ रहे बच्चों के वीडियो वाइरल हो रहे हैं. एक वीडियो में कुछ बच्चे भारत और उसके रेस्क्यू मिसन का मज़ाक़ उड़ाते दिख रहे हैं. यह कहलाती है कृतघ्नता. ऐसे हर वीडियो को देख दिल करता है कि इनके माँ बाप को दस दस जूते मारे जाएँ कि क्या संस्कार दिए. वहीं ऐसे भी वीडियो वाइरल हो रहे हैं जिसमें रेस्क्यूड बच्चे भारत माता की जय, भारतीय रेस्क्यू टीम की दलेरी को नमन करते नज़र आ रहे हैं.
संसार में सभी तरह के लोग हैं, निर्भर करता है कि उन्हें संस्कार कैसे मिले हैं. जिनके घर वालों ने देश बेंच अंधी कमाई की, उनके बच्चे भी चूँकि पढ़ उसी काले धन से रहे हैं तो उनके संस्कार भी वैसे ही होंगे. वहीं कुछ अच्छे लोग भी हैं.

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