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नैरेटिव फेक अथवा नकारात्मक दोनों हो सकते है

Om Lavaniya

by ओम लवानिया
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फ़ोटो के जरिए निष्पक्ष यानी कि न्यूट्रल लोगों का ब्रेन वाश कैसे किया जाता है। या कहे उनके दिमाग में नैरेटिव किस प्रकार सेट किया जाता है।

नैरेटिव फेक अथवा नकारात्मक दोनों हो सकते है

ब्रितानी टीवी सीरीज है ‘द क्राउन’। उसमें एक सीक्वेंस सेगमेंट है। ब्रितानी शाही परिवार की राजकुमारी मार्गरेट फोटोग्राफर एंथोनी आर्मस्ट्रांग को दिल दे बैठती है। एक दिन एंथोनी के स्टूडियो जाती है और उन्हें फ़ोटो क्लिक करने को कहती है। एंथोनी मार्गरेट को कहते है कि मैं असली मार्गरेट की तस्वीर क्लिक करूँगा। जो शाही ठाठ बाट, दिखावटी रीति-रिवाजों से कोसों दूर होगी। वह मार्गरेट जिसे कभी किसी ने देखा नहीं होगा।
एंथोनी मार्गरेट की ड्रेस को सोल्डर तक नीचे कर देते। और सोल्डर तक ऐसा पोज व एंगल लेते है। कि जो भी ब्रितानी नागरिक वह फ़ोटो को देखें। तो उसके दिमाग में यही विचार आए। मार्गरेट ने बिना कपड़े पहने फ़ोटो क्लिक करवाई है। ब्रितानी शाही परिवार में मान-मर्यादा, प्रतिष्ठा को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। अगले दिन सुबह ब्रिटेन के सभी अख़बारों में एंथोनी द्वारा क्लिक राजकुमारी मार्गरेट की फ़ोटो छपती है। तो पूरा शाही परिवार हैरान रह जाता है साथ ही ब्रितानी लोग।
queen एलिज़ाबेथ कहती है कि मार्गरेट ने ये कैसी तस्वीर खिंचवाई है बिना कपड़ों के। एंथोनी की क्लिक फ़ोटो ने ब्रितानी नागरिकों व शाही परिवार के मन में वही भाव पैदा किए। जैसी उनकी सोच रही थी। ख़ैर। जब कोई फर्जी ‘फेक’ व नकारात्मक नैरेटिव सेट करना होता है। तब ऐसे ही फ़ोटो क्लिक किए जाते है। ऐसे कैमरा एंगल से ‘पोज’ क्लिक किए जाते है। जो नैरेटिव को बूस्ट कर दे। बाकी काम फ़ोटो के इर्दगिर्द लिखा नजरिया कर देता है। जिन्हें देख व पढ़कर न्यूट्रल लोग माहौल का अंदाजा लगा ले। कि हालत क्या है और अपने दिमाग में एक राय बनाते चले जाते है।
मसलन- छोटे बच्चे के सिर के ऊपर जूते वाली तस्वीर तो लीजेंड है। उसे भी खूब काम में लिया गया। लेकिन इसका भी सच्चाई वाला पहलू सामने आ गया। शाहीन बाग, टैक्टर अभियान, दिल्ली दंगे, टैक्टर अभियान में तथाकथित किसानों पर लाठी चार्ज करने की तस्वीरें चलाई गई। कि बुजुर्गों पर लाठियां बरसाई गई। अभी चाइनीज वायरस संकट में ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ पेशेंट वाली तस्वीर आदि। खूब वायरल रही। इससे पहले अन्य जो भी मामले हुए। उनमें नैरेटिव सेट करने की कोशिश हुई
लेकिन ये नैरेटिव ज्यादा देर ज़िंदा न रहे। सच्चाई सामने आ गई।
क्योंकि इन दिनों सोशल मीडिया का दौर है। फेक व नकारात्मक नैरेटिव की ज़िंदगी बहुत मामूली है। उसकी एक्सपायरी जल्द सामने आ जाती है। लेकिन सोचने वाली बात है कि जब सोशल मीडिया न था। तब हमें अख़बारों में छपी तस्वीरों और तथाकथित नजरिये पर विश्वास करना पड़ता था। उस तस्वीर के पीछे सच क्या रहा। सब दबा रह जाता। कभी सामने नहीं आता। उदाहरण- 2004 में अटल सरकार को प्याज की कीमतों में पटक दिया था।
अब सवाल उठता है कि भाजपा आईटी सेल भी फेक फ़ोटो नैरेटिव सेट करता है। भाजपा आईटी सेल के मुखिया कई बार पकड़े गए है। भाजपा और राष्ट्रवादियों ने फेक नैरेटिव को बढ़ावा दिया है। तो भैया ऐसा है कि भाजपा और राष्ट्रवादी लोग जैसे को तैसा करने उतरे है। देश में छिड़े विचारों के युद्ध में सब जायज है। क्योंकि इन फेक व नकारात्मक नैरेटिव की शुरुआत किसने की? इसका जबाब तलाशना चाहिए। उत्तर में लिबरल गैंग ही निकलेगा। क्योंकि इनका प्रचार-प्रसार जबरदस्त रहा है। फ़ोटो के एंगल और पोज से खूब आर्टिकल लिखे गए। कश्मीर में आतंकियों को मासूम बताया गया। भटके हुए नौजवान बतलाए गए।
जब सोशल मीडिया का पीक टाइम आया। तब इनके फेक और नकारात्मक फोटोनीति चरमरा गई। क्योंकि अब इन्हें ईंट का जबाब पत्थर में मिलने लगा। कोई नैरेटिव धरातल पर उतरता। उससे पहले दम तोड़ जाता। नैरेटिव का बेस रखने में मैग्सगे से मान्यता प्राप्त छेनू कुमार माहिर है। इस प्रकार बेस बनाते है। कि न्यूट्रल लोग छेनू को निष्पक्ष समझने लगते है। लेकिन बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है। कि उनके बनाए बेस पर विपक्ष का कोई नैरेटिव सफलतापूर्वक लैंड नहीं कर पाया है या कहे कर पाता। क्रेश हो जाता है।
न्यूट्रल लोगों को खूब अंधेरे में रखा गया। बेबकूफ बनाया। सिर्फ़ फ़ोटो के कैमरा एंगल और पोज से पूरा नैरेटिव खड़े किए गए। जैसे- भूरी काकी से कोई भी मीडिया सवाल-जबाब करता बरामद न हुआ। हैरी ने हिम्मत दिखाई। तो उसे हवालात की हवा खिलाई गई। चाइनीज वायरस की दूसरी वेब के माहौल में मीडिया द्वारा खूब नकारात्मकता फैलाई गई। अस्पतालों और श्मशान से वही फ़ोटो क्लिक किए गए। जिससे लोगों में पैनिक क्रिएट हो और मन में नकारात्मक भाव आए। टाइम मैगज़ीन, इंडिया टुडे मैगज़ीन ने अपने कवर पेज पर सिर्फ़ जलती चिताओं के फ़ोटो को जगह दी है। लिबरल गैंग ने उन फ़ोटो को खूब शेयर किया…..केप्शन भी दिए।
मानो चाइनीज वायरस से मौते सिर्फ भारत में हुई है। बाकी देशों में कुछ फर्क ही नहीं पड़ा। देश की निष्पक्ष स्थिति बतानी चाहिए। हर फ़ोटो जनता के बीच रखना चाहिए। जिससे लोगों के बीच पैनिक क्रिएट न हो। लेकिन यहाँ ऐसा नहीं होगा। पिछले कुछ सालों से एकतरफा नकारात्मक और फेक नैरेटिव को ही जगह दी जा रही है और ज़ोरों से दी जा रही है। पश्चिम बंगाल में निर्दोषों की हत्याएं हो रही है। कानून व्यवस्था लचर हो चली है। राज्यपाल को रस्ता नहीं दिया जा रहा है। इस मुद्दे पर सब चुप है। लेकिन इजराइल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर चूड़ियां तोड़ रुदाली हो रही है।

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