क्या कोई ऐसा इंसान न पैदा हुआ होगा, जो दिन में बस एक निवाला खाता हो पर उसके दिमाग़ के आगे कम्प्यूटर भी फेल हो. हो सकता है हुआ हो. पर ऐसा इंसान लम्बे समय जीवित न रह पाएगा. पर्याप्त भोजन नहीं मिलने के कारण अल्पायु में ही वह मर जाएगा. बच्चे पैदा न कर पाएगा. उसकी जींस भविष्य की पीढ़ियों में नहीं जाएगी. और समय के साथ इस तरह के मनुष्य बिल्कुल नहीं आएँगे.
यही बेसिक जेनेटिक थ्योरी है. अगर आप अपने जींस अगली पीढ़ी में ट्रान्स्फ़र कर सकते हैं तभी आपके गुण / अवगुण आगे बढ़ेंगे.तो जेनेटिक विज्ञान के अनुसार होमो सेक्शूऐलिटी बिल्कुल नेचुरल नहीं है. ज़ाहिर सी बात है हो सकता है कभी कोई होमों सेक्शूअल व्यक्ति पैदा हुआ हो. पर चूँकि वह होमों सेक्शूअल है तो अपने जींस वह आने वाली पीढ़ी में ट्रान्स्फ़र नहीं कर पाएगा और समय के साथ होमो सेक्शूअल लोग होना बंद हो जाएँगे.
पर पर पर बीते बीस वर्षों में LGBT वाले वॉक संगठनों ने होमों सेक्शूऐलिटी को ऐसा कूल बना दिया कि अकस्मात् समाज में गे प्राइड परेड, रेंबो कलर्स आदि सम्मान की दृष्टि से देखे जाने लगे. वह लोग भी जो पैदायशी होमों नहीं हैं उन्हें भी लगने लगा कि वह होमों सेक्शूअल है.
LGBTQ मूवमेंट ह्यूमानिटी के लिए सबसे बड़ा क्राइसिस है.