जिस तरह से सब जगह घर दुकाने फ़ैक्टरी रोड इक्स्प्रेस वे बनते जा रहे हैं कुछ वर्षों में खेती क्या होगी और इंसान खाएगा क्या.. यह एक ऐसा भावुक स्टेट मेंट है जिससे हम सभी कहीं न कहीं agree करते हैं.
फ़ैक्ट्स के धरातल पर यह स्टेट्मेंट कहीं नहीं टिकता. पचास वर्ष पूर्व न शहर थे, न सड़कें. सब जगह खेती होती थी. दिल्ली तक में शहर के बीचों बीच खेती होती थी. लखनऊ जैसे शहरों में तो पूरी सम्भावना है कि आज आप जिस मकान / फ़्लैट में रहते हैं पचास वर्ष पूर्व दूर दूर तक खेती होती थी. तो उस युग में तो ज़बर्दस्त अनाज होना चाहिए था.
हक़ीक़त यह थी 1971 में भारत में गेहूं का उत्पादन 23000 हज़ार टन था जो आज लगभग पाँच गुना 107,000 हज़ार टन है. ज़्यादा नहीं पिछले दस वर्षों में ही 80,000 से बढ़ कर 107000 है. केवल गेहूं ही नहीं, उदाहरण के तौर पर दूध का प्रडक्शन 2010 में 116 मिलयन मेट्रिक टन था. अब लगभग दोगुना 210 मिलियन मेट्रिक टन है. सब्ज़ियाँ हों या अन्य कोई खाद्यान्न सबका उत्पादन अभूत पूर्व बढ़ा है.
आज की पीढ़ी भारत के वर्तमान इतिहास की सबसे अच्छे से भोजन कर रही पीढ़ी है. आज बेमौसम में जब टमाटर बढ़ने का आप रोना रोते हैं तो दादा जी से पूँछिए उनके समय साल में कितने महीने टमाटर मिल भी पाता था. आज साल भर सब कुछ उपलब्ध है निहसंदेह पैसा देना पड़ेगा.
और यह केवल टिप ओफ़ आइस बर्ग है. आप कहीं विकसित देश जाते हैं तो वहाँ भोजन सब्ज़ियाँ अन्न की उपलब्धता देख आँखे चौंधिया जाती है. भारत से कई गुना ज़्यादा. भारत में भी अभी कम से कम पाँच गुना का पोटेंटीयल है. अभी यहाँ प्रडक्शन में ही टॉप पर न पहुँचे इसके आगे संरक्षण है. हर चीज़ के कोल्ड स्टोर.
इस मामले में मैं विज्ञान और तकनीक पर पूरी तरह से भरोसा करता हूँ. जब पूरी तरह से नेचुरल थे सब खेती करते थे तब प्रचुर ज़मीन होते हुवे भी भुखमरी अकाल पड़ता था. आज कम जगह अधिक जनसंख्या और रोज़गार के ढेरों अन्य साधन होते हुवे भी प्रडक्शन कई गुना है.
विज्ञान और तकनीक ने यहाँ तक पहुँचाया है, आगे भी इससे कई गुना आगे तक ले जाएगी. आल रेडी दिख रहा है विकसित देश फ़ूड में वह माइल स्टोन अचीव कर चुके हैं. वह अब इससे भी आगे की सोंच रहे हैं.
विज्ञान और तकनीक ने पिछले सौ वर्षों में मनुष्य को वह सब दे दिया जो कभी अकल्पनीय था.