थीसिस (निबंध)

अजित सिंह

by Ajit Singh
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एक जंगल में दोपहर के वक्त एक खोह के बाहर एक खरगोश जल्दी-जल्दी अपने टाइपराइटर से कुछ टाइप कर रहा था। तभी वहां एक लोमड़ी आई उसने खरगोश से पूछा,
लोमड़ी:- “तुम क्या कर रहे हो?”
खरगोश:- “मैं थीसिस लिख रहा हूँ।”
लोमड़ी:- “अच्छा! किस बारे में लिख रहे हो?”
खरगोश:- “विषय हैं — खरगोश किस तरह लोमड़ी को मार के खा जाता हैं?”
लोमड़ी:- “क्या बकवास हैं यह? कोई मूर्ख भी बता देगा कि, खरगोश कभी लोमड़ी को मार कर खा नहीं सकता।”
खरगोश:- “आओ मैं तुम्हें प्रत्यक्ष दिखाता हूँ।”
ये कह कर खरगोश लोमड़ी के साथ खोह में घुस जाता हैं। और कुछ मिनट बाद लोमड़ी की हड्डियाँ लेकर वापस आता हैं। और दोबारा से टाइपिंग में व्यस्त हो जाता हैं। थोड़ी देर बाद वहां एक भेड़िया घूमता-घामता आता हैं। वो खरगोश से पूछता हैं,
भेड़िया:- “क्या कर रहे हो इतने ध्यान से?”
खरगोश:- थीसिस लिख रहा हूँ।
भेड़िया – “(हाहाह) किस बारे में जरा बताओ तो?”
खरगोश:- “विषय हैं – एक खरगोश किस तरह एक भेड़िये को खा गया।”
भेड़िया:- “(गुस्से में ..) मूर्ख ये कभी हो नहीं सकता।”
खरगोश:- अच्छा !! आओ सबूत देता हूँ।”
और यह कह कर खरगोश भेड़िये को उस खोह में ले गया … थोड़ी देर बाद खरगोश भेड़िये की हड्डी लेकर बाहर आ गया और फिर टाइपिंग में लग गया। उसी वक्त एक भालू वहां से गुजरा उसने पूछा…
भालू:- “ये हड्डियाँ कैसी पड़ी हैं?”
खरगोश:- “एक खरगोश ने इन्हें मार दिया।”
भालू हंसा … और बोला
भालू:- “मजाक अच्छा करते हो .. अब बताओ ये क्या लिख रहे हो?”
खरगोश:- “थीसिस लिख रहा हूँ, की एक खरगोश ने एक भालू को कैसे मार के खा लिया।”
भालू:- “क्या कह रहे हो? ये कभी भी नहीं हो सकता?”
खरगोश:- “चलो दिखाता हूँ।”
और खरगोश भालू को खोह में ले गया …..
जहां एक शेर बैठा था ……
इसीलिए ये मायने नहीं रखता कि आपकी थीसिस कितनी बकवास हैं, या बेबुनियाद हैं……… मायने रखता हैं… आपका गाइड कितना ताकतवर हैं।
और यही आजकल हो रहा हैं…… योगी आदित्यनाथ को खरगोश समझने की भूल करने वाले ये नहीं जानते की खोह (गुफा) में एक शेर बैठा हैं….जिसका नाम है
दरिंदर मोदी ।
साभार
मूल लेखक अज्ञात ।

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