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पेटीकोट का जवाब कफ़न

अजित सिंह

by Ajit Singh
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Aug 2016 की बात है ।
अचानक एक वामपंथी फ़र्ज़ी Id प्रकट हुई ।
नाम था दोपदी सिंघार ……उंसकी एक कविता ” मैंने नहीं उतारा पेटीकोट “
बड़ी चर्चा हुई उसकी नक्सली कविता की ।
नक्सली औरत कह रही है कि 4 दिन थाने में बैठा के रखा मुझे फिर भी नहीं उतारा मैंने पेटीकोट ……..
हमने पढ़ी तो बाई गोट की कसम अपनी तो J सुलग गईं ।
पर मैं कवि तो हूँ नही । कविता नहीं लिख पाता ।
या यूँ कहें कि कभी try नहीं की । पर उंस नक्सली दोपदी सिंघार कवि बना के ही छोड़ा ।
शब्दों पे मत जाइयेगा , भाव पढियेगा ।
***
मैंने नहीं उतारा कफ़न
जब वापस लाये उसे , तो एक बक्से में बंद था ।
मैं जोर से चिल्लाई …….
अरे खोलो ये बक्सा , उसका दम घुट जाएगा ।
उन्होंने खोल दिया बक्सा
तिरंगे में लिपटा था ।
मैंने कहा , एक बार शक्ल तो दिखा दो …….
IED ब्लास्ट में बलिदान हुआ है
बलिदानियों की अंतड़ियां निकल के छितरा जाती हैं
चेहरे पे सिर्फ हड्डियां दीखती हैं ,
और मांस के लोथड़े
बलिदानियों के चेहरे नहीं दिखाए जाते उनकी विधवाओं को …..
वो सिर्फ उस तिरंगे में लिपटे हुए पति को
सिर्फ छू भर लिया करती हैं …….
एक आखिरी बार …….
मैंने नहीं उतारा वो कफ़न
बस छू भर लिया था आखिरी बार ।
***
नक्सली दोपदी सिंघार की कविताओं पे वाह वाह करने वालों , उन CRPF वालों की बेवाओं को भी याद कर लेना जो नक्सली हिंसा में शहीद हुए ।

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