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दिल्ली दंगों में क्रूरता से

आर ए एम देव

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दिल्ली दंगों में क्रूरता से मारे गए दिलबर नेगी की हत्या का जिनपर आरोप है उनमें से एक मोहम्मद ताहिर के वकील हैं सलमान खुर्शीद। बड़े वकील हैं, जिसका अर्थ यह भी है कि वे सस्ते में नहीं लड़ते। यह मोहम्मद ताहिर, अन्य आरोपी आम आदमी पार्टी के ताहिर हुसैन से अलग है, सामान्य व्यक्ति है। ताहिर हुसैन मालदार व्यति है, मोहम्मद ताहिर नहीं।
हो सकता है सलमान खुर्शीद यह केस नि:शुल्क लड़ रहे हों, मुझे पता नहीं तो इसपर टिप्पणी नहीं करनी। लेकिन बात यह है कि केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके और बार बार सेक्युलरिज्म की हिंदुओं को याद दिलानेवाले यह साहब अगर ये केस नि:शुल्क लड़ रहे हों तो उनके motives कितने सेक्युलर हैं ? और अगर अपनी पूरी फीस ले रहे हों तो यह फीस दे कौन रहा है ?
सांप्रदायिकता के इतने खुले खेल पर हमेशा हिंदुओं को ही सांप्रदायिक कहनेवाले लोकतंत्र के दो स्तम्भ, मौन हैं। अब यह सवाल पूछने को भी मन नहीं होता कि क्यों मौन हैं । वा मियों की इकोसिस्टम पर काफी जानकारी सार्वजनिक है, पूछना भी क्या ?
पंजाब में एक पूर्व डीजीपी ने खुद को कौम का सिपाही बताया। वास्तव में तो इसके करिअर की जांच होनी चाहिए कि इस कौम के सिपाही ने कहाँ कहाँ अपनी वर्दी का उपयोग कर के कौम को फतह दिलाई है। लेकिन यह नहीं होगा क्योंकि ऐसे काम अकेले नहीं होते और जिनको भी इस्तेमाल किया होगा वे भी दूध से धुले नहीं होंगे और उनके राज इसको पता होंगे तो जांच होगी तो भी कुछ भी पता नहीं चलेगा। सो, कुछ नहीं होगा, just chill !
अपने पदों का सम्मान हो यह मांग करनेवाले, सम्मान यथावत रहे इसलिए पदसिद्ध अधिकारों का भी निर्ममता से उपयोग करनेवाले अक्सर quotes द्वारा अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन करते हैं। एक संस्कृत सुभाषित यहाँ याद आता है। स्कूल में सिखाया गया था, इसे कृपया विद्वत्ता का प्रदर्शन न समझें।
बस, लागू है इसलिए याद आया, इतना ही।
“गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थिताः ।
प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते ॥”
गुणों से ही उत्तमता आती है, उच्च आसन से नहीं।
प्रासाद के शिखर पर बैठने से क्या कौवा गरुड कहलाएगा ?
सम्मान आचरण से अपनेआप मिलता है । आज भी।

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