एक मित्र हैं, उनके बेटे का फ्लिपकार्ट कंपनी मे सिलेक्शन हुआ। उनके मुझसे प्रश्न थे कितनी बड़ी कंपनी है? कितना टर्न ओवर है? सालाना कितना फायदा बनाती है। घाटे मे है तो घाटे में क्यों है? उन्हें समझाया कि अभी नई कंपनी है इस लिए गोदाम, मार्केटिंग आदि मे पैसा खर्च हो रहा है इस लिए घाटे मे है। दो तीन सालों मे जब सिस्टम सेट हो जाएगा फायदे मे या जाएगी, कोई दिक्कत की बात नहीं है। अच्छी कंपनी है। पर वह कंविन्स नहीं हुवे, अंततः उन्होंने tcs मे भेजा क्योंकि कंपनी लंबे समय से चल रही है, फायदे मे है, कंपनी का भविष्य उज्ज्वल है।
प्रायः ऐसे ही हम सभी भारतीय सोंचते हैं।
यदि किसी को बताया जाए एक ऐसी कंपनी है जो हर साल हजारों करोड़ के घाटे मे है। ऐसा दसकों से चला आ रहा है। कंपनी के मालिक ने भी उम्मीद छोड़ दी है कि यह कभी प्रॉफिटेबल होगी तो शायद ही कोई ऐसी डूबती कंपनी को join करने की सोचें भी।
पर यदि यह कंपनी सरकारी कम्पनी है तो फिर अलग ही बात है।
भारतीय रेल जो साल दर साल हजारों करोड़ के घाटे में है, सरकार ने भी समपर्पण कर दिया है कि रेलवे का कुछ नहीं हो सकता, उस रेलवे मे पैंतीस हजार नौकरियों के लिए एक करोड़ से ज्यादा लोग आवेदन करते हैं। तीन चार साल की चयन प्रक्रिया मे जिंदगी के पाँच छः साल गँवाने वाले जिन बच्चों का सिलेक्शन होगा वह हजारों मे एक होंगे। वह यदि इन पाँच सालों मे केवल दो साल टेक्नॉलजी साइड मे कुछ भी सीख लें, पायथन प्रोग्रामिंग सीख लें, पाँच सालों मे जब तक रेलवे का लेटर आएगा, तनख्वाह उनकी इससे ज्यादा ही होगी। दस वर्षों मे तनख्वाह रेलवे से दुगुनी और रिटायर मेंट में चार गुणी तनख्वाह होगी। लगभग सभी प्राइवेट कंपनियां परेशान हैं, वह आरंभिक लेवल पर पचास हजार और तीन चार साल के अनुभव के बाद एक लाख देने को तैयार हैं, पर उन्हें लोग नहीं मिल रहे हैं। वहीं चालीस पचास हजार महीने की तनख्वाह के लिए रेलवे मे करोड़ों आवेदन होते हैं, लोग पूरी जिंदगी तैयारी करते हैं, लाखों कोचिंग मे खर्च करते हैं।
लेकिन रेलवे या सरकारी नौकरी मे तनख्वाह के लिए जाता कौन है? इन नौकरियों मे यह सोंच कर कि वह कम्पनी की उन्नति के लिए कार्य करेगा, मेहनत / लगन / ईमानदारी से कार्य कर अपनी कम्पनी को प्रॉफिटेबल बनाएगा, अगर सरकार फायदा न बना पाएगी तो नौकरी खतरे मे है – इस उद्देश्य से कितने लोग इन नौकरियों मे जाते हैं?
भारत वर्ष मे सरकार द्वारा संचालित व्यवसाय केवल अर्थ व्यवस्था के लिए ही नासूर नहीं हैं, बल्कि देश की नई पीढ़ी के लिए भी नासूर हैं। करोड़ों लोग अपना जीवन वेस्ट करते हैं तैयारी करते हुवे कि एक दिन सिलेक्शन हो जाएगा, नौकरी लग जाएगी और फिर हमें कुछ नहीं करना होगा, सेफ सेक्योर लाइफ। जिनका सिलेक्शन नहीं होता, उनके तो पाँच दस साल वेस्ट हुवे, पर जिन प्रतिभा शाली लोगों का सिलेक्शन हो भी जाता है, उनकी तो लाइफ वेस्ट होती है – हाँ तनख्वाह मिलती रहती है।
सरकार द्वारा संचालित व्यवसाय देश और देश वासियों के लिए कोढ़ हैं। Government has no business to be in business.