हामिद जी केवल उस चिमटे का पता नहीं दे रहे जिसमें वे जकड़े हैं, वे यह भी बता रहे हैं कि उन्हें चर्चा में रहने की कैसी गंदी लत लग चुकी है और इसके लिए वे किस हद तक गिर सकते हैं।
देश तो खैर, कभी उनकी चिंता का विषय रहा ही नहीं। वास्तव में तो उनके लिए केवल गजवा का विषय है। उन्हें खुद अपनी इज्जत की भी कोई चिंता नहीं है। दो कौड़ी के फिल्मी भड़वे की तरह ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’ को ही उन्होंने अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया है।
बहरहाल, अपनी गलती पर वे पछताएं जिन्होंने उन्हें भारत के सर्वोच्च पद का नायब बना दिया। अब यह भी एक अलग बात है कि उन्होंने तो कभी गलती से भी गलती को गलती नहीं माना। चाहे वो ख़िलाफ़त के नाम पर मालाबार नरसंहार हो, चाहे विभाजन के नाम पर करोड़ों हिंदुओं-सिखों-ईसाइयों की अपनी घरबार से बेदखली-नरसंहार और दुष्कर्म हो, चाहे चितपावनों का नरसंहार, चाहे 84 का नरसंहार या फिर सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा उत्प्रेरक अधिनियम। फिर वे इसे ही अपनी गलती कैसे मान लेंगे!!!
आखिर उनके लिए तो भारत केवल सत्ता पर कब्जे का विषय ही रहा है न!