महावीर स्वामी अपने शिष्य गोशालक के साथ एक गांव के पास से गुजर रहे थे। रास्ते मे एक पौधे को देखते हुए गोशालक, महावीर स्वामी से कहता है कि ‘क्या सोचते हैं आप, इसमें फूल लगेंगे या नहीं लगेंगे? यह पौधा बचेगा या नहीं बचेगा?’
महावीर स्वामी आंख बंद करके उसी पौधे के पास खड़े हो जाते हैं।
गोशालक लगभग टोकते हुए कहता है कि ‘आंख बंद करने से क्या होगा? आप कृपया जवाब दीजिये।’
आंख खोल कर महावीर स्वामी कहते हैं कि, ‘यह पौधा फूल तक पहुंचेगा।
‘
गोशालक उनके सामने ही पौधे को उखाड़ कर फेंक देता है और खिलखिला कर हंसता है। महावीर स्वामी के लिए अब कहने को क्या बचा ! दोनों आगे बढ़ जाते हैं।
वे दोनों अपने आश्रम में पहुंचे, बड़ी भयंकर वर्षा हुई। सात दिन तक मूसलाधार पानी पड़ता रहा। सात दिन तक निकल नहीं सके। फिर जब वापस लौटने लगे तो महावीर स्वामी ने उसी जगह जा कर देखा तो वह पौधा खड़ा था। शायद उखड़े हुए पौधे की जड़ें वापस गीली जमीन को पकड़ गईं होंगी तभी, वह पौधा खड़ा हो गया।
गोशालक आश्चर्य में था।
अब महावीर स्वामी बोले, ‘मैं आंख बंद करके इसकी पोटेंशिएलिटी ही देख रहा था, इसकी भीतर की स्थिति क्या है? कहीं यह मरने को उत्सुक तो नहीं है! अगर ये मरने को तैयार है तो ये तुम्हारा सहारा लेकर मर जाएगा और अगर ये जीने को तैयार है तो तुम जैसे कितने ही लोग इसको आ कर उखाड़ के फेंक दोगे, ये फिर भी खड़ा हो जाएगा।
अपने बच्चों को ये कहानी जरूर सुनाइये – कोई भी आपको तब तक न ही हरा सकता है, न रुला सकता है, न डरा सकता और न ही मार सकता है जब तक आप खुद से इसके लिए तैयार न हों।