11 मार्च 2022 को नज़दीकी सिनेमाघरों में द कश्मीर फाइल्स पहुँची थी, सभी की आंखें नम कर गई थी। आंसू रुकने का नाम न ले रहे थे। जब फाइल्स ने महादेव शिवलिंग वाला सीक्वेंस सामने रखा, फाइल्स के अहम किरदार पूर्व आईएएस ब्रह्मदत्त यानी मिथुन चक्रवर्ती पुष्कर पंडित के जर्जर घर में शिवलिंग को उठाकर अपने कोट से पोछते है आँखें बावली हो जाती है। लेखक-निर्देशक ने इस सीक्वेंस को मर्म के साथ लिखा व फ़िल्माया, आतताइयों या कहे आतंकियों के झंडे से न साफ करके अपने अंगवस्त्र से साफ करके शिवलिंग को पुनः स्थापित किया। अंदर तक झकझोर देने वाला दृश्य था। कि उस वक्त कैसे हालात रहे होंगे।
फाइल्स की तरह रियल में भी ऐसा ही स्क्रीन प्ले घटित हो रहा है। काशी में गणाध्यक्ष नंदी महाराज की तपस्या पूर्ण हुई। जब बाबा ज्ञानवापी में प्रकट हुए, औरंगजेब आताताई ने मंदिर पर कब्जा करके उसे अपने धर्म से जबरन जोड़ लिया था। रियल में कमोबेश ऐसा ही स्क्रीन प्ले सामने आया तो आंखें फिर नम हो गई। हालांकि अभी स्क्रीन प्ले अधूरा है, बाबा पूरे श्रद्धा भाव से अपने निवास पर लौटेंगे नहीं, तब तक अधूरा रहेगा।
रियल में ऐसी कई फाइल्स खुलना और पूरी होना बाकी है। वैसे मोदी-योगी जी सांकेतिक तौर पर बतला देते है कि आगे कौनसा सीक्वेंस फ़िल्माया जाएगा। पिछले दिनों मोदी-योगी जी श्रीकृष्ण की मूर्ति को थामे नजर आ रहे है। इससे पहले श्रीराम की मूर्ति ली थी।
गज़ब है वर्षों के लंबे इंतजार के बाद सनातनी नेतृत्व आया है। तिस पर लोकतांत्रिक व्यवस्था है, फिर भी घबराने लगे है। अरे भाई…तलवार की नोंक पर छीना था। कितना अत्याचार किया था, लौटाने की प्रक्रिया कितनी सरल व सुगम है। पूरी तरह कानून है, इतने साल आपके पक्ष ने मामला अटका रखा था। निष्पक्षता नहीं रखी, बेईमानी करके तारीख़ पर तारीख़ में उलझाकर रखा। अभी सिर्फ़ निष्पक्षता के साथ सुनवाई हो रही है, उसी में फट रही है डर है। आपके पास कोई ठोस सबूत नहीं है….क्योंकि….क्योंकि! ये सब आपका नहीं है, डकैतों द्वारा लुटा व कब्जाया हुआ है। वाक़ई आपका होता तो निडर रहते।
बिल्कुल इसी तरह कश्मीर घाटी के सच को 30 वर्षों तक छिपाए रखा। क्योंकि उसमें आपकी क्रूरता दफन थी। मानवता को शर्मसार किया था, इसलिए इतने सालों तक घाटी से सच बाहर नहीं आने दिया। जब सच बाहर आया और दुनिया घुमा तो सब भेद खुल गया। ऐसे होता है जब खुद का कुछ न हो। सब लुटा हो, कुछ वक्त तक आपके पास रह सकता है आखिर में जिसका है उसे लौटाना पड़ता है। वक्त जो है न, बड़ा निर्मोही है। बराबर मौके देता है। कुछ भूलता नहीं है। हिसाब बराबर करता है। तभी इसे कालचक्र कहते है।