Home महिला लेखकAkansha Ojha शिवलिंग, का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप।

शिवलिंग, का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप।

Akansha Ojha

by Akansha Ojha
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शिवलिंग, का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप।
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।
शिव लिंग है लिंग शब्द का अर्थ होता है “ली ”, “अनुस्वार” और “ग ” इस प्रकार तिन अक्षर का य लिंग प्रति अक्षर का एक एक अर्थ है . “ली” का अर्थ लीयते लय जगत जिस में लय होता है “अनुस्वार ” का अर्थ है जगत का स्थित और “ग ” अर्थ गम्यते यानि जगत का उत्पति।
चन्द्रज्ञान अगम में इस लिंग का बहुत ही सुंदर वर्णन हुवा है
“जठरे लीयते सर्वं जगत स्थावरजंगमम।
पुन्रुत्पद्यते यस्माद तद्ब्रह्म लिंगसंज्ञकम।।
जिस के जठर में सर्व चराचरात्मक जगत सृष्टि के पूर्व लीन रहता है और जिसे जगत उत्पति होता है उसीको लिंग कहा जाता है। भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।
स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है | वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड जो गतिमान है का अक्ष/धुरी या axis ही लिंग है।
The whole universe rotates through a shaft called shiva lingam.
पुराणो में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग | शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है | हम जानते है की सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते है
जैसे: सूत्र के – डोरी/धागा गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि | उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है।
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ |
हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है| इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है | ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है |
Einstein का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है | e / c = m c {e=mc²}.
इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है . हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था |
हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं , आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व नीचे होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप , शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग, उर्जा का प्रतिरूप आदि ।
स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट यानी bigbang के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप आकाशगंगा के चीत्र में भी देख सकते है. जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिलकर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके ।
पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।
पुराणो में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग |
शिव लिंग बिन्दुनादात्मक है ओमकार प्रणव उसका (मंच) अधर अर्थात पीठिका है उस के ऊपर नाद ही लिंग आकार (बिंदु ) रूप धारण किया है इसतरह बिंदु-नादात्मक लिंग में सर्वदा शिव (ब्रह्म ) स्थिर (वास ) है
सुक्ष्मागम में य कहा गया है
” लकारो लय बुद्धिस्थो बिंदुना स्थितिरुच्यते |
गकारात स्रष्टिरित्युक्ता लिंगम स्रष्टि आधीकारणं ||
सृष्टि स्थिति लय का जो कारण है उसे ही लिंग कहा जाता है जगत स्रष्टि का संबंध में बिंदु उपादान कारण है बिंदु शक्ति है नाद शिव है बिन्दुनादात्मक ही शिव लिंग है
इसका बहुत ही सुंदर वर्णन चंद्र ज्ञानगम में कहा गया है
बिंदु नादात्मकं जगत स्थावरजङ्गमम्।
बिन्दुः शक्तिः शिवो नादः शिवशक्तात्मकं जगत। ।
बिंदु नादात्मकं लिंगं जगत्कारणमुच्छते ।
तस्माज्जन्मनिवृत्यर्थ शिवलिंगम् प्रपूज्येत् । ।
सारा जगत बिदु नादात्मक है य हां पर बिंदु शक्ति है और नाद शिव है इस तरह जगत शिव और शक्ति से समावित है। बिंदु नादात्मक यह लिंग ही सारे जगत का कारण है। इस लिए सदा शिवलिंग पूजे नमः शिवाय मंत्र जप से नमः शिवाय” मंत्र भगवान शिव की महिमा एवं उनके स्वरुप को दर्शाता है। नमः शब्द प्रथम उच्चारण करके तदा नंतर शिवाय शब्द का प्रयोग करे य दोनो पद संयुक्त स्वरुप हि पंचाक्षर महामंत्र हुवा है। इस में नमः शब्द जीवात्मक अथवा (तवं ) पद वाचक है शिव शब्द परमात्मा क अर्थार्त ( तत) पद क वाचक है ‘अय’ शब्द इस दोनो का अभेद बोधक है जीव शिव एकत्व का बोधक है य मंत्र इस मंत्र कि नरंतर जाप से जीव – शिव क सामरस्य स्वाभाविक सिद्धहोता है
शिवलिंग के महात्म्यका वर्णन करते हुए शास्त्रों ने कहा है कि जो मनुष्य किसी तीर्थ की मृत्तिका से शिवलिंग बना कर उनका विधि- विधान के साथ पूजा करता है, वह शिवस्वरूप हो जाता है।
जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा होती है, वह तीर्थ न होने पर भी तीर्थ बन जाता है। जिस स्थान पर सर्वदा शिवलिंग का पूजन होता है, उस स्थान पर मृत्यु होने पर मनुष्य शिवलोक जाता है। शिव शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसका बाह्य और अंतकरण शुद्ध हो जाता है।
दो अक्षरों का मंत्र शिव परब्रह्मस्वरूप एवं तारक है। इससे अलग दूसरा कोई तारक ब्रह्म नहीं है।
तारकंब्रह्म परमंशिव इत्यक्षरद्वयम्।
नैतस्मादपरंकिंचित् तारकंब्रह्म सर्वथा॥
शिवलिंग भगवान् के निर्गुण-निराकाररूप का प्रतीक है। भगवान् का वह रूप जिसका कोई आकार नहीं जिसमे कोई गुण ( सात्विक,राजसिक और तामसिक ) नहीं है , जो पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतीक है और जो शून्य- अवस्था का प्रतीक है। ध्यान में योगी जिस शांत शून्य भाव को प्राप्त करते हैं, जो इश्वर के शांत और परम- आनंद स्वरुप का प्रतीक है उसे ही शिवलिंग कहते हैं।
शिवलिंग में दूध अथवा जल की धारा चढ़ाने से अपने आप मन शांत हो जाता है ये हम सबका अनुभव है, और इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। जो सच्चे ब्राह्मण हैं वो इस बात को जानते हैं कि शिवलिंग पर जल या दूध चढाते समय “ॐ नमः शिवाय ” बोलने की अपेक्षा केवल “ॐ ॐ ” बोलना उत्तम है.
शिव अभिषेक करते समय उसमे भगवान् शंकर के सगुण-साकार रूप का ध्यान भी किया जा सकता है, किया जाता भी है. भक्त की भावना के अनुसार सबको छूट है इसी कारण आपने देखा होगा कि बाकी मंदिरों में मूर्ति का स्पर्श वर्जित होता है पर शिवलिंग का हर कोई स्पर्श कर सकता है मासिक धर्म वाली स्त्रियाँ पूरे महीने स्पर्श नहीं कर सकतीं लेकिन मासिक धर्म खत्म होने के बाद शुद्ध हो के कर सकती है।.
शिवलिंग को भगवान्शं कर का निर्गुण प्रतीक माना जाता है और भगवान् के सगुण रूप का वास कैलाश पर्वत पर माना गया है.
कैलाश में भगवान् को जल मिल जाए , हमारा चढ़ाया हुआ दूध उनको वहां मिल जाए , उसके लिए शिवलिंग के चारों तरफ “जल – घेरी ” बनाई जाती है। जल- घेरी की दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तरफ होनी चाहिए जिससे हमारा चढ़ाया हुआ दूध या जल सीधा उन तक पहुँच जाए। और इसी कारण जल- घेरी को कभी लांघते नहीं हैं और शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही करते हैं। सावन में जल लगातार भगवान् को चढ़ता रहे इसी कारण शिवलिंग के ऊपर जल से भरा हुआ कलश लटकाया जाता है.
जलघेरी पर कभी दिया नहीं जलाते और शिवलिंग या तुलसी या किसी भी मूर्ती को दिए की आंच नहीं लगनी चाहिये. दिया थोडा सा दूर जलाना होता है। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ नारियल कभी फोड़ा नहीं जाता उसे विसर्जित कर दिया जाता है। शिवलिंग भगवान् शंकर का प्रतीक होने के कारण उसे तुलसी के नीचे नहीं रखा जाता , तुलसी के नीचे शालिग्राम, भगवान् विष्णु का निर्गुण रूप रखा जाता है. हालांकि शिवलिंग में मंजरी, तुलसी के फूल चढ़ाए जाते हैं।
नाथों के नाथ विश्वनाथ जिन्होंने चराचर जगत को नथ रखा है, जिनके हर हर नित्य स्मरण मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते। जो काशीपुराधिपति आनंद से मोक्ष की यात्रा का मार्ग प्रशस्त करते हैं, मैं अति भाग्यशाली हूं जो महादेव ने मुझे काशीस्वरूप अपने मोक्षधाम में जन्म दिया।
नमः पार्वतीपतयेः हर हर महादेव 🙏

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