इजरायल पर लगातार हमले होते रहने चाहिए जिससे यहूदी कौम यह जान सके कि निरंतर शांति की कीमत क्या हो सकती है।
वे भारत को देख सकते हैं।
भारत ने चंद्रगुप्त विक्रमादित्य से लेकर कुमारगुप्त तक लगभग अस्सी साल पूर्ण अपराधविहीन व दंडविहीन समाज व अपार समृद्धियुक्त शांतिमय जीवन का आनंद उठाया।
परिणाम क्या हुआ?
लोग लड़ना ही भूल गए और भूल गए कि दुनियाँ में बहुत से ऐसे लोग, ऐसी कौमें हैं जो एक झटके में सब कुछ छीन सकते हैं।
लाल व श्वेत हूणों ने उत्तरी भारत को साठ वर्ष उत्पीड़ित किया।
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हमने छठवीं शताब्दी में फिर समृद्धियुक्त शांति का आनंद उठाया।
अरबों ने पचास वर्षों तक रौंदा।
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मिहिरभोज ने अगले सौ वर्षों के लिए शांति व समृद्धता की नींव रखी।
अब तुर्क आ धमके।
इसके बाद शायद ईश्वर भी उकता गया हिंदुओं से और उसने भी हजार वर्ष की काली रात हिंदुओं की पीढ़ी के नाम लिख दी।
विशेषज्ञों के अनुसार इन हजार वर्षों में लगभग सात करोड़ हिंदू काट डाले गए और साथ में गये-
अफगानिस्तान,
पूरा उत्तरपश्चिम,
औरपूर्वी बंगाल।
दूसरी ओर यहूदी हैं।
उनके साठ लाख लोग मरे और उन्होंने सर्वाइवल का पाठ पढ़ लिया।
उन्होंने मुट्ठी भर जमीन हासिल की और फैलते चले गए।
पर अब लगता है यहूदियों को भी ये सब रास नहीं आ रहा।
वैश्विक स्तर पर यहूदी दो समूहों में बंट गए हैं।
एक ओर इजरायली यहूदी,
दूसरी ओर बैंकर यहूदी।
लगता है शेष विश्व के युवाओं की तरह इजरायल के बुजुर्ग ‘बैंकर यहूदियों’ से प्रभावित हो रहे हैं और वहाँ भी लिबरल्स, फेमनिस्ट व सेक्यूलर थोक के भाव पैदा हो रहे हैं।
इजरायल की धार कमजोर हो रही है।
ये धमाके इजरायल के यहूदियों की नई पीढ़ी को जगाते रहेंगे, इसलिये इजरायल में धमाके जरूरी हैं।
और भारत के हिंदू?
हा… हा…. हा…
भारत के कुछ बुड्ढे और कुछ नवयुवा हिंदू तो यह कह रहे हैं कि 2014 से कोई बम वम नहीं फूटे पब्लिक में तो जिंदगी में बोरियत सी आ गई है।
चलो कुछ तूफानी करते हैं।
चलो कुछ बम फुड़वाते हैं।
चलो मोदिया को हटाते हैं।