तो, नरेश टिकैत ने सपा को समर्थन दे ही दिया है। लखीमपुर की हिंसा में जो कथित किसान था और जिसकी वजह से कुछ भाजपा समर्थक और एक पत्रकार की भी मौत हो गयी, उसके साथ अखिलेश ने मंच शेयर कर ही लिया। सपा अध्यक्ष ने जिस तरह ‘जैन टीवी’ के पत्रकार का मजाक बनाया और बाकी बिरादरी के लोग देखते रहे, दांते निपोड़ते रहे, वह साफ तौर पर बताता है कि राजनीति में अब खांचे इतने साफ हो गए हैं, पक्ष इतने खुले तौर पर चुन लिए गए हैं कि उससे कोई नहीं बच सकता है।
यूपी के इस चुनाव में कई अजीब बातें हो रही हैं। हौलनाक भी। यहां तक कि जिन बातों को लिखते हुए मेरे हाथ की-वर्ड पर हिचक रहे हैं, वह खुले मैदान में है। बलात्कारी सेंगर की बेटी उसके समर्थन में खुले तौर पर उतर आयी है और यह दहलाने वाली बात है। वहीं, कांग्रेस ने बलात्कार-पीड़िता की मां को टिकट देकर न जाने कौन सी परंपरा चलायी है, जख्म को छीलकर नमक भरने की यह कला कांग्रेस की पुश्तैनी और एकाधिकार वाली परंपरा है।
उन्नाव की पीड़िता का वीडियो-ऑडियो जवाब में सामने आ गया है। इसके पहले उनकी मां भी वीडियो के जरिए अपनी बात कह चुकी हैं। यह कितनी सशक्तीकरण की परंपरा है या किसी के जख्मों को कुरेदना, यह हिसाब तवारीख पर ही छोड़ देना चाहिए, पर है तो यह थोड़ा सा अलग, इसमें संदेह नहीं।
लखीमपुर की हिंसा में जो पत्रकार मारा गया, उसके भाई को भी कांग्रेस ने टिकट दिया है। इसके अलावा पंचायत चुनाव के दौरान जिस महिला की साड़ी खींची गयी, उसे भी। कांग्रेस को पता है कि वह यूपी में आइसीयू में है। उससे उबरने के लिए प्रियंका वाड्रा जो भी उपाय कर सकती हैं, कर रही हैं।
चुनाव की अभी शुरुआत ही है। अभी कर्दम-लीला तो बस शुरू ही हुई है। आशंका तो इस बात की है कि जैसे-जैसे चुनाव जोर पकड़ेगा, यूपी का यह चुनाव अपनी गंदगी, गालियों और बदतमीजी के लिए भी याद रखा जाएगा। हरेक पक्ष ने न्यूनतम नैतिकता को भी उतार फेंका है, कपड़ों की धज्जी तक से भी परहेज बरत दिया गया है-
”वृथा है पूछना, था दोष किसका ?
खुला पहले गरल का कोष किसका ?
जहर अब तो सभी का खुल रहा है ,
हलाहल से हलाहल धुल रहा है…..”