Home विषयसाहित्य लेख एक पुरानी और प्रचलित कथा
एक बार एक पंडित जी पूजा-पाठ करके.. मंदिर के बाहर सड़क के किनारे, आम के पेड़ के नीचे बैठे थे। तभी पेड़ पर एक चिड़िया लगातार बोल रही थी। अचानक, पंडित जी का ध्यान उस चिड़िया के स्वर पर गया और मुग्ध होकर बोले। अद्भुत है मेरे प्रभु की लीला! अब चिड़िया भी प्रभु का नाम ले रही है। सामने बैठे एक जजमान ने पूछा “पंडित जी क्या बोल रही है यह चिड़िया!!”
पंडित जी विस्मय और क्रोध भाव से चिढ़कर बोले “एक अबोध चिड़िया तक प्रभु का नाम जपने लगी और एक तुम हो कि तुम्हारे कान तक प्रभु की आवाज नहीं पहुंच पा रही… धिक्कार है तुम पर! ध्यान से सुन अधर्मी ! चिरैया बोल रही है “राम सीता दशरथ”
जजमान ने फिर से ध्यान लगाया और चीखकर सिर्फ इतना बोल पाया “अद्भुत! अद्भुत!! अद्भुत!!! जय सियाराम की …जय हो अपने पंडित जी की ।।
संयोग से उसी रास्ते एक मौलवी जी गुजर रहे थे। पंडित जी ने जोर और जोश के साथ मौलवी जी को बुलाया और कहा “ए मौलवी देखो हमारे प्रभु की लीला अब तो चिड़िया भी ‘राम, सीता दशरथ’ बोलने लगी।”
मौलवी साहब चौंककर पूछे- “कहां बोल रही है।”
पंडित जी- “ध्यान से सुनो! ऊपर बैठी चिड़िया क्या बोल रही है।”
मौलवी साहब ने ध्यान लगाया और सांस छोड़कर बोले- “पंडित जी मैंने तीन बार बड़ी तल्लीनता के साथ सुना लेकिन मुझे सिर्फ एक ही आवाज आयी-
पंडित जी- “क्या”
मौलवी साहब- ” ख़ुदा तेरी रहमत”
अब पंडित जी हत्थे से उखड़ गए. और फिर दोनों में हरतुज होने लगा। तभी एक पहलवान वहां से गुजर रहा था। उसने देखा कि पंडित जी और मौलवी आपस से झगड़े पड़े हैं…तो वो बीच-बचाव में आया और उनके झगड़े की वजह पूछा।
पंडित जी जोश में बोले – “ए पहलवान इ बताओ इ चिरैया ‘सीता राम दशरथ’ बोल रही है या ‘खुदा तेरी रहमत’..”
पहलवान बड़े ध्यान से उस ध्वनि पर कान टिकाकर बोला- “पंडित जी! इ चिरैया न तो ‘सीता राम दशरथ’ बोल रही है न ‘खुदा तेरी रहमत’ यह बोल रही है ‘दंड, मुगदर कसरत’
अब पंडित जी और मौलवी साहब दोनों लोग आपे से बाहर! दोनों एक स्वर में बोले ‘इ पहलवान का दिमाग पूरा का पूरा घुटने में चला गया है इसकी बात का क्या!! परे हटो अपना मुगदर लेकर”
तभी संयोग से एक ‘मुसलमान सब्जी वाला’ वहीं से गुजर रहा था। इस बार मौलवी ने उसको बुलाया और पूछा – “तुम्हें खुदा की कसम… झूठ न बोलना. बताओ!! पेड़ पर बैठ़ी चिड़िया साफ साफ यह नहीं बोल रही कि ‘खुदा तेरी रहमत’..”
बीच में पंडित जी बोल पड़े -” रहमान तुम ख़ुदा की कसम खा रहे हो इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारे कान में सिर्फ ‘राम सीता दशरथ’ की धुन ही सुनाई ‌देगी”
अब सब्जी वाले ने कुल तीन मिनट ध्यान लगाया और हाथ जोड़कर बोला- “सुनाई तो साफ-साफ दिया लेकिन कहने की हिम्मत नहीं है इसलिए मुझको माफ़ कीजिए…” तभी पहलवान बीच में बोला डरने की कोई बात नहीं मैं बीच में हूं जो तुमने सुना बताओ कोई कुछ नहीं कहेगा.. पंडित जी और मौलवी साहब ने भी पहलवान की दहाड़ में हां में हां मिलायी।
सब्जी वाला- ” मौलवी साहब खुदा झूठ न बुलवाये मुझे लगा कि आज यह चिड़िया ही मेरा सब्जी बेच रही हो.”
मौलवी साहब- “चिड़िया सब्जी बेच रही है!!! अब इसका क्या मतलब??”
सब्जी वाला- “मौलवी साहब! कोई बहरा भी सुन लेगा कि चिड़िया बोल रही है ‘आलू प्याज़ अदरक’ गुस्ताखी माफ़ लेकिन चिड़िया यही बोल रही है।
सच! चुनाव में मतदाता बिल्कुल उस चिड़िया की तरह है। वो वही बोलता है…जैसा हमारा नेता सुनना चाहता हैं इसलिए सबको यही लगता है कि हमारी ही बात हो रही है और हम ही तीन सौ के पार हैं।
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हांलांकि कहानी वहीं खत्म नहीं हुई। कहानी का परिवर्धित अंक जो अभी प्रकाशित हुआ वो भी आपके सामने-
पंडित जी अड़ गये… उन्होंने कहा- “अब ऐसा नहीं होगा अब गांव में चुनाव होगा लेकिन जो भी आयेगा उसको इन चार बातों में सिर्फ एक को ही चुनना होगा कि चिड़िया ‘राम सीता दशरथ’ बोल रही है, ‘खुदा तेरी रहमत’ बोल रही है, ‘दंड मुग़दर कसरत’ बोल रही है या ‘आलू प्याज़ अदरक”
गांव में शांतिपूर्ण चुनाव हुआ। सबने पूरी बात सुनी और सबने अपना मत और राय व्यक्त किया.
हांलांकि कुछ लोगों ने दबी जुबान में यह भी कहा-
बढ़ रही है नफरत”
कुछ लोगों ने कहा-
‘नही रही अब दहशत’
कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने बोला-
‘नहीं तनिक भी सहमत’
खैर! सत्तर प्रतिशत के कान ने सिर्फ यह सुना- “राम, सीता दशरथ”

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