नेहरूवादी बीमार सेकुलरों, लिबिर-लिबिर लिबरलों और बेहद-बेहद बीमार हिंदुओं जैसे स्वरा, रवीश, जोशी और कापड़ियों को ये समझ लेना चाहिए कि मामला अब यहीं नहीं रुकनेवाला है।
हां, इनके दुस्साहस, बेशर्मी, थेथरई और निर्लज्जता की मैं दाद देता हूं कि इनमें से एक अब भी पीएम मोदी के नाम मन की बात करती है, जिसमें केवल और केवल हिंदू-विरोधी बातें करती है, तो कोई रणबीर-आलिया की पार्टी (मैरेज सेरेमनी) के बहाने तीन बीघे का पोस्ट लिख कर अपनी बीमारी उजागर करता है।
नेताओं की तो बात ही क्या…। पाड़ा क्या बोलता है, खुद समझता है। उसके चमचे क्या बोलते हैं, खुदा भी नहीं समझते।
खैर, ब्रो..। कहना ये है कि तीन तलाक के रास्ते, काले तंबू (नकाब, हिजाब आदि) से होते हुए रास्ते पर नमाज, लाउडस्पीकर पर अजान से होते हुए जल्द ही यूनिफॉर्म सिविल कोड तक पहुंचेगा।
इंशाल्लाह, हम भी देखेंगे।
आप जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती शोभायात्रा पर पत्थरों का जिक्र नहीं करेंगे तो कानपुर में सड़कों पर हनुमान चालीसा होगी ही। एटा की दरगाह में हनुमान निकलेंगे तो पूजा होगी ही। और, बाइ द वे, भारत की कौन सी मस्जिद ऐसी होगी, जो मंदिरों पर तामीर नहीं की गयी है? एकाध अपवाद मिलें तो मिलें, वरना हर गली-कूचे में मंदिरों को तोड़कर या थोड़ा बहुत बिगाड़कर बस ऊपर से गुंबद रख दिया गया है।
लिबिर-लिबर सेकुलर झबड़े बोलते हैं कि देश सिविल वॉर की राह पर है। सचमुच, ये क्यूटनेस देखकर मैं लहालोट हो जाता हूं। 1947 से लगातार झूठ, लगातार थेथरई के बाद आज तुम लोगों की ही देन है कि कई जगहों से प्रतिकार की खबरें आ रही हैं, वरना हिंदू तो बेचारा 1200 ईस्वी से मार खाता ही आ रहा है।
आज हनुमान-जयंती है। आज भी दिल्ली में दंगे हुए। रामनवमी थी। तब सात राज्यों में हिंदुओं की शोभायात्रा पर हमले हुए। तुम पूरी बेशर्मी और हुज्जत से एकाध फोटो ले आकर गंगा-जमनी तहजीब की दुहाई देते हो। तुम पतन के निचले छोर पर खड़े होकर सारी घटनाओं को झूठ बताते हो।
बजरंगबली सब देख रहे हैं।
इंशाल्लाह, हम भी देखेंगे।