डार्विन ने जब विकासवाद का सिद्धान्त दिया था तो उसका मानना था कि ‘मानव व वानरों’ के बीच एक कड़ी अवश्य होनी चाहिये।
भारत में सुदूर हिमालय से दक्षिण भारत में प्रवासित वानर जाति का उल्लेख मिलता तो है परंतु उनके टोटम अर्थात संस्कृत भाषा में ‘किंपुरुष वर्ग’ के होने की संभावना अधिक है लेकिन जैसा कि सौम्यता श्रीवास्तव जी ने सुझाव दिया था कि संभवतः टोटम का कोई आदि पूर्वज ऐसा रहा हो जिसमें इस तरह के जीन रहे हों।
संभव है वानर जाति का ऐसा पूर्वज डार्विन की ‘मिसिंग लिंक’ के रूप में हो सकता है।
उसी तरह मध्यएशिया में उपस्थित जातियों की एक ‘पितृ कड़ी’ अवश्य होनी चाहिये, जिसकी पुरातात्विक खोज अभी तक नहीं हुई है। प्राचीन जातियों, उनके भूगोल तथा उनकी पौराणिक विवरणों से अद्भुत साम्य है कि पामीर क्षेत्र में कोई ‘अतिप्राचीन सभ्यता’ की खोज बाकी है जो विश्व की समस्त सभ्यताओं की ‘Axis Mundi’ थी।
#इंदु_से_सिंधु में मैंने सभ्यताओं के अक्ष को, इस ‘Axis Mundi’ को पामीर में पाया जिसे पुराणों में ‘सुमेरु’ कहा गया और इस सभ्यता को ‘देव सभ्यता’ जिन्होंने पूरे संसार में ‘सभ्यता व संस्कृति’ की ज्योति जलाई जिसके आधार पर आज हम गर्व से कहते हैं कि प्राचीन विश्व में देवता चाहे जितने थे लेकिन संस्कृति एक ही थी और वह थी हमारी ‘वैदिक संस्कृति’।
अपनी पुस्तक में मैंने प्राचीन विश्व की सभी सभ्यताओं सुमेर, मिस्र, यूनान, चीन, भारत आदि को इसी #मिसिंग_लिंक के माध्यम से जोड़ने का प्रयास उपलब्ध आर्कियोलॉजी व वैदिक, अवेस्ता, सुमेरियन व मितान्नी अभिलेखों के आधार पर किया।
आज इस ‘मिसिंग लिंक सिविलाइजेशन’ के इकलौते वारिस के रूप में केवल हम हिंदू बचे हैं।

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