Home विषयइतिहास वाल्मीकि रामायण किष्किंधा काण्ड भाग 73
पूर्व दिशा की ओर जाने वाले वानरों को भेजने के बाद सुग्रीव ने दक्षिण दिशा की ओर जाने के लिए नील, जाम्बवान, सुहोत्र, गज, गवाक्ष, गवय, वृषभ, मैन्द, द्विविद, सुषेण, गन्धमादन, उल्कामुख और अनंग आदि श्रेष्ठ वानरों को तथा हनुमान जी को चुना। अंगद को उन सबका नेता बनाकर उनके साथ सीता की खोज करने का भार सौंपा गया।
उन वानरों से सुग्रीव ने कहा, “तुम लोग विंध्य पर्वत, नर्मदा नदी, गोदावरी, महानदी, कृष्णवेणी, वरदा आदि नदियों के तट पर तथा मेकल, उत्कल, दशार्ण, विदर्भ, ऋष्टिक, माहिषक, वंग, कलिंग, कौशिक आदि राज्यों में एवं आब्रवन्ती आदि नगरों में भी देखना। फिर आन्ध्र, पुण्ड्र, चोल, पाण्ड्य तथा केरल आदि में भी ढूँढना।”
“तत्पश्चात तुम लोग मलय पर्वत पर जाना। वहाँ चन्दन के सुन्दर वन हैं। उनमें भी तुम सीता की खोज करना। फिर स्वच्छ जल वाली कावेरी नदी को देखना और मलय पर्वत के शिखर पर अगस्त्य मुनि का दर्शन करके तुम लोग ताम्रपर्णी नदी को पार करना। उसके पश्चात समुद्र के तट पर जाना।”
“महर्षि अगस्त्य ने समुद्र के भीतर एक सुन्दर पर्वत को स्थापित किया है, जो महेन्द्रगिरि के नाम से विख्यात है। वह सुवर्णमय पर्वत समुद्र के भीतर गहराई तक घुसा हुआ है। उसी समुद्र के बीच में अंगारका नामक एक राक्षसी रहती है, जो छाया पकड़कर ही प्राणियों को खींचकर खा जाती है।”
“समुद्र के उस पार एक द्वीप है, जिसका विस्तार सौ योजन है। वहाँ मनुष्यों की पहुँच नहीं है। वही द्वीप उस दुरात्मा रावण का निवास-स्थान है। तुम्हें पूरा प्रयत्न करे, वहाँ अवश्य ही सीता की खोज करनी चाहिए। लंका के सभी संदिग्ध स्थानों में खोजने के बाद यदि तुम्हें विश्वास हो जाए कि सीता वहाँ नहीं है, तो फिर तुम लंका को पार करके आगे बढ़ जाना।”
“लंका से आगे बढ़ने पर सौ योजन विस्तृत समुद्र में एक पुष्पितक नाम का पर्वत है। तुम लोग उस पर्वत पर भी सीता को खोजना। उसे लांघकर आगे बढ़ने पर सूर्यवान नामक पर्वत मिलेगा, जो पुष्पितक से चौदह योजन दूर है। वहाँ जाने का मार्ग बड़ा दुर्गम है। उसके आगे तुम्हें वैद्युत नामक पर्वत मिलेगा, जहाँ सभी ऋतुओं में उत्तम फल-मूल प्राप्त होते हैं। उन्हें खाकर तुम लोग आगे बढ़ोगे, तब तुम्हें कुञ्जर नामक पर्वत दिखेगा, जिसके ऊपर विश्वकर्मा ने महर्षि अगस्त्य के लिए एक सुन्दर भवन बनाया है।”
“उसी पर्वत पर भोगवती नगरी है, जिसमें सर्पों का निवास है। उसकी सड़कें बहुत बड़ी और विस्तृत हैं। महाविषैले भयंकर सर्प उस नगरी में निवास करते हैं। महाभयंकर सर्पराज वासुकि भी वहीं निवास करते हैं। तुम्हें विशेष रूप से उस नगरी में सीता की खोज करनी चाहिए।”
“उसे पार करके आगे बढ़ने पर तुम्हें ऋषभ नामक पर्वत मिलेगा। वह पर्वत रत्नों से भरा हुआ है। वहाँ एक दिव्य चन्दन का वृक्ष है, जो अग्नि के समान प्रज्वलित होता रहता है। तुम लोग उसे कदापि स्पर्श मत करना क्योंकि अनेक गन्धर्व उसकी रक्षा में नियुक्त रहते हैं।”
“उसके आगे भयानक पितृलोक है, जहाँ तुम लोगों को नहीं जाना चाहिए। वह भूमि यमराज की राजधानी है तथा वहाँ गहन अन्धकार छाया रहता है। तुम्हें केवल वहीं तक जाना है। उसके बाद तुम वापस लौट आना। एक माह के भीतर लौटकर जो मुझसे कहेगा कि ‘मैंने सीता का दर्शन किया है’, वही मेरे लिए सबसे प्रिय होगा।”
इस प्रकार दक्षिण दिशा में जाने वाले वानरों को सुग्रीव ने सब-कुछ समझाया।
इसके बाद उसने अपनी पत्नी तारा के पिता सुषेण के नेतृत्व में वानरों का एक दल पश्चिम की ओर जाने के लिए चुना। उन लोगों से सुग्रीव ने कहा, “वानरों! सौराष्ट्र, बाल्हीक, चन्द्रचित्र, कुक्षिदेश आदि के जनपदों व नगरों में जाकर सीता की खोज करो। वहाँ की सब नदियों, वनों और पर्वतों में भी सीता को ढूँढो। पश्चिम दिशा में अधिकांशतः मरुभूमि है, अत्यंत ऊँची और ठण्डी शिलाएँ हैं तथा पर्वतों से घिरे हुए बहुत-से दुर्गम प्रदेश हैं। उन सबमें सीता की खोज करते हुए तुम पश्चिम सागर तक जाना और वहाँ के प्रत्येक स्थान का निरीक्षण करना।”
“समुद्र का जल तिमि नामक मत्स्यों व बड़े-बड़े ग्राहों से भरा हुआ है। समुद्र तट पर केवड़े, तमाल और नारियल के वनों में भली-भाँति विचरण करके सीता को ढूँढना। मोरवीपत्तन (मोरबी), जटापुर, अवन्ती, अंगलेपापुरी आदि में भी सीता की खोज करना।”
“सिन्धु नद और सागर के संगम पर सोमगिरि नामक विशाल पर्वत है। उसकी रमणीय चोटियों पर सिंह नामक विकराल पक्षी रहते हैं, जो तिमि नाम वाले विशाल मत्स्यों और हाथियों को भी अपने घोसलों में उठा लाते हैं। इच्छानुसार रूप धारण कर सकने वालों को शीघ्रता से वहाँ का निरीक्षण करके आगे बढ़ जाना चाहिए।”
“वहाँ से आगे समुद्र के बीच में पारियात्र पर्वत का शिखर दिखाई देगा, जिसका विस्तार सौ योजन है। तुम वहाँ भी जाकर सीता की खोज करना। उस पर्वत पर भयंकर गन्धर्व निवास करते हैं। कोई वानर उनके निकट न जाए और न उस पर्वत से कोई फल ले क्योंकि वे बलवान गन्धर्व वहाँ के फलों की रक्षा करते हैं। पारियात्र पर्वत के पास ही समुद्र में वज्र नामक एक और पर्वत है, जिसकी लंबाई और चौड़ाई बराबर है। उसका घेरा सौ योजन का है। उस पर्वत पर अनेक गुफाएँ हैं, उनमें तुम सीता की खोज अवश्य करना।”
“समुद्र के चौथे भाग में चक्रवान पर्वत है। वहीं विश्वकर्मा ने सहस्त्रार चक्र (सुदर्शन चक्र) का निर्माण किया था। वहीं से भगवान विष्णु पञ्चजन तथा हयग्रीव नामक दानवों का वध करके पांचजन्य शंख तथा सुदर्शन चक्र लाए थे। उस चक्रवान पर्वत के शिखरों में भी सीता को ढूँढना।”
“उससे आगे समुद्र की अथाह जलराशि में वराह नामक पर्वत है, जिसका विस्तार चौंसठ योजन है। वहीं प्राग्ज्योतिष नामक नगर है, जिसमें नरक नामक दुष्टात्मा दानव निवास करता है। उस पर्वत पर तथा वहाँ की गुफाओं में सीता को खोजना।”
“वराह पर्वत को लांघने पर तुम्हें मेघगिरि नामक पर्वत मिलेगा, जिसमें लगभग दस हजार झरने हैं। उसके चारों ओर हाथी, सूअर, सिंह और बाघ विचरते हैं। उसी पर्वत पर देवताओं ने इन्द्र का अभिषेक किया था। वहाँ से आगे बढ़ने पर तुम्हें सूर्य की कान्ति से सोने जैसे चमकने वाले साठ हजार पर्वत दिखाई देंगे, जिनके मध्यभाग में मेरु पर्वत है। उसके शिखर पर विश्वकर्मा का बनाया हुआ एक दिव्य भवन है, जो अनेक प्रासादों से भरा हुआ है। वहाँ महात्मा वरुण निवास करते हैं।”
“मेरु और अस्ताचल के बीच एक ताड़ का स्वर्णमय वृक्ष है, जो बहुत ऊँचा है। उसकी दस बड़ी शाखाएँ हैं और उसके नीचे की वेदी भी बड़ी अद्भुत है। उसके आस-पास भी सब स्थानों पर तुम सीता की खोज करना। मेरु पर्वत पर महर्षि मेरुसावर्णि रहते हैं। उन्हें प्रणाम करके तुम सीता का पता उनसे भी पूछना।”
“पश्चिम दिशा में वानर इतनी ही दूर तक जा सकते हैं। उसके आगे सूर्य का प्रकार नहीं है, अतः मुझे वहाँ के आगे की भूमि के बारे में कोई जानकारी नहीं है। वहाँ तक जाकर तुम सीता का पता लगाओ और एक माह के भीतर ही यहाँ लौट आना।”
इसके बाद सुग्रीव ने शतबलि नामक एक वीर वानर से कहा, “तुम अपने साथ बहुत-से पराक्रमी वानरों को लेकर उत्तर दिशा की ओर जाओ। उत्तर में म्लेच्छ, पुलिन्द, शूरसेन, प्रस्थल, इन्द्रप्रस्थ, हस्तिनापुर, कुरुक्षेत्र, मद्र, कंबोज, दरद, यवन, शकों के देश आदि में सीता की खोज करो। इसके बाद हिमालय पर्वत पर ढूँढो।”
“वहाँ से आगे बढ़कर तुम लोग काल नामक पर्वत पर जाना, जिसके भीतर सोने की खदाने हैं। वहाँ से आगे तुम्हें सुदर्शन पर्वत और फिर देवसख नामक पहाड़ मिलेगा। उन सबके वनों, निर्झरों और गुफाओं में तुम सीता की खोज करना।”
“वहाँ से आगे बढ़ने पर एक सुनसान मैदान मिलेगा, जो सौ योजन तक फैला हुआ है। वहाँ नदी, पर्वत, वृक्ष या जीव-जंतु कुछ भी नहीं हैं। रोंगटे खड़े कर देने वाले उस दुर्गम क्षेत्र को पार करने पर तुम्हें श्वेत वर्ण वाला कैलास पर्वत मिलेगा। वहीं विश्वकर्मा का बनाया हुआ कुबेर का रमणीय स्थान है, जो बादलों के समान सफेद दिखाई देता है। उसके पास ही एक बड़ा सरोवर है, जिसमें प्रचुर मात्रा में कमल पाए जाते हैं।”
“उसके आगे तुम क्रौञ्चगिरि पर जाकर सीता को ढूँढना, जहाँ पर्वत के विदीर्ण हो जाने से एक गुफा बन गई है। वहाँ से आगे जाने पर तुम्हें मानस नामक शिखर मिलेगा, जो बिल्कुल सुनसान है। वहाँ पक्षी तक नहीं जाते हैं। उसके आगे बढ़ने पर तुम लोग मैनाक पर्वत पर पहुँचोगे, जहाँ मयदानव का घर है। तुम लोग वहाँ भी हर ओर सीता को खोजना। वहाँ एक सिद्धाश्रम है, जिसके पास ही वैखानस नामक एक प्रसिद्ध सरोवर है।”
“उसके आगे जाने पर तुम्हें सूना आकाश दिखाई देगा। उसमें सूर्य, चन्द्र या तारों के दर्शन नहीं होंगे। न वहाँ मेघों की घटा दिखाई देगी और न उनकी गर्जना सुनाई पड़ेगी। फिर भी उसमें ऐसा प्रकाश होगा, मानो सूर्य की किरणों से ही वह प्रकाशित है। उसके आगे बढ़ने पर तुम्हें शैलोदा नदी मिलेगी। उसके दोनों तटों पर बाँस लगे हुए हैं। उन्हीं की सहायता से लोग उस पार आते-जाते हैं। वहाँ उत्तर कुरुदेश है।”
“उत्तर दिशा में और आगे बढ़ने पर तुम्हें समुद्र मिलेगा। उस समुद्र के मध्यभाग में सोमगिरि नामक बहुत ऊँचा पर्वत है। स्वर्गलोक में जाने वाले लोग उस सोमगिरि का दर्शन करते हैं। भगवान विष्णु, भगवान शंकर तथा ब्रह्माजी वहीं निवास करते हैं। तुम लोग किसी तरह प्रयास करके सोमगिरि की सीमा तक तक अवश्य जाना।”
“उसके आगे न सूर्य का प्रकाश है और न किसी देश की सीमा है। अतः आगे की भूमि के बारे में मैं कुछ भी नहीं जानता। तुम इन सब स्थानों में सीता की खोज करना और जिन स्थानों के नाम मैंने नहीं भी लिए हैं, वहाँ भी अवश्य ढूँढना।”
इस प्रकार सुग्रीव ने सीता की खोज के लिए वानरों के चार दल नियुक्त कर दिए।
आगे जारी रहेगा….
(स्रोत: वाल्मीकि रामायण। किष्किन्धाकाण्ड। गीताप्रेस)

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