Home विषयजाति धर्म सिंध:दलितों को सबक
711 ई में जब सिंध पर अरबों का सातवां आक्रमण हुआ तो सिंध के राजनैतिक व सामाजिक हालात बदल हुये थे।
सिंध में इससे पूर्व ‘क्षुद्रक’ वंश का शासन था जो सिकंदर के समय के ‘मालव-क्षुद्रक’ संघ के अवशिष्ट गण समूह रहे होंगे।
बहरहाल अंतिम क्षुद्रक राजा की रानी की चरित्रहीनता ने सिंध के पतन की नींव रखी जिंसने राजा के वफादार व सच्चरित्र ब्राह्मण मंत्री चच को अपनी वासना का शिकार बनाकर राज्य पर कब्जे के लिए विवश कर दिया।
इस रानी से उत्पन्न चच का दूसरा पुत्र दाहिर गद्दी का वारिस बना जिसका निजी चरित्र दूषित और कुछ हठी भी था।
उसने जाटों मेंडों व बौद्धों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप कर उनके विशेषतः मकरान के जाटों को झुकाने के लिए कुछ ऐसे कानून बना दिए जिन्हें यहाँ नहीं लिखा जा सकता।
नतीजा यह हुआ कि सिंध के सैंधव राजपूत और पूर्वी जाट कबीलों के साथ दाहिरसेन अकेले पड़ गए।
इसके बाद मुहम्मद बिन कासिम ने असाधारण कूटनीति का परिचय देते हुए मकरान क्षेत्र के जाटों व बौद्धों को अपनी ओर मिला लिया व सिंध पर भयंकर आक्रमण किया।
सिंध का पतन हुआ। सैंधव राजपूत अपने नाविक बेड़े को निकालकर सौराष्ट्र में लाने में सफल रहे।
लेकिन असली ड्रामा अब शुरू हुआ।
मकरान के बौद्ध व जाट सिंध में अपनी सत्ता की उम्मीद कर रहे थे और उनमें से अधिकांश ने इस्लाम कुबूल कर लिया।
लेकिन सिंध के प्रशासन को चलाना कासिम के लिए मुश्किल हो रहा था क्योंकि उसे यहाँ के बारे में कुछ पता न था।
उधर सत्ताधारी वर्ग सत्ता को जाते देख बेचैन था और उन्होंने अपनी सत्तालोलुपता का ऐसा परिचय दिया जिसकी मिसाल नहीं।
सारे सत्ताधारी ब्राह्मण व प्रशासनिक अधिकारियों ने फटाफट इस्लाम कुबूल कर लिया और कासिम ने उनको बहाल कर दिया।
बौद्ध खड़े देखते रह गए।
धर्म भी गया और सत्ता की उम्मीद भी।
माया मिली न राम।
सिंध का पतन एक सबक है दलितों के लिए और नमूना है जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावादियों की सत्ता लोलुपता का।
जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावादियों के विरुद्ध सामाजिक युद्ध हमारा आंतरिक मामला है जो यूनियनिस्टों, मंडलों और वामन मेश्राम जैसों के नेतृत्व में नहीं लड़ा जा सकता।
वहीं दूसरी ओर जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावादी अपनी जन्मना स्थिति को आसानी से छोड़ने को तैयार न होंगे चाहे बेशक उन्हें इस्लाम स्व ही गठबंधन करना पड़े।
अतीत में सिंध में जो हुआ वह अब हिन्द में भी हो सकता है।
अगर दलित यह सोचते हैं कि ‘भीम-मीम’ गठबंधन से उन्हें सत्ता मिल जाएगी तो भयंकर धोखे में है। सत्ता इसी वर्ग के हाथों में रहेगी भले धर्मांतरित हो जाएं और तब फिर इसलाम के अंदर आपको मुँह खोलने का भी हक़ न होगा। जबकि यहाँ धर्मग्रंथों को भी जलाने की बेहिसाब धृष्टता दिखा रहे हो।
हिन्दुत्वनिष्ठ शक्तियों को इन दोंनों से ही लड़ना है।

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