Home विषयइतिहास राजपूतों द्वारा अफीम लेने के कारण
1-यह परंपरा सिर्फ राजपूतों में थी।
2-यह परंपरा मौत के डर की वजह से थी।
सबसे पहली बात यह है कि यह परंपरा बहुत पुरानी है।
-महाभारत में उल्लेख है कि भीम ने जयद्रथ वध वाले दिन अर्जुन की सहायता के लिए जाने से पूर्व मद्य का सेवन किया।
-ह्वेनसांग ने चालुक्य पुलिकेशी के योद्धाओं द्वारा ही नहीं बल्कि हाथियों को भी मद्य पीकर युद्ध में उतरने का विवरण लिखा है।
-राजपूतों ने मदिरा के स्थान पर अफीम के अमूल का सेवन कर उतरने की प्रथा प्रारंभ की।
जाहिर है शारीरिक रूप से यह स्टेमिना तो बढ़ाती ही थी साथ ही स्नायु तंत्र को शांत रखती थी अतः प्रायः सभी सैनिक मद्य या किसी न किसी नशीले पदार्थ को साथ रखते आये हैं। यूरोप में प्रायः वाइन या एल का प्रयोग होता था। राजपूतों में यह अफीम थी।
लेकिन अब अगर इसे आप केवल प्राण भय को दूर करने के लिए किए गए उपाय के विषय में सोच रहे हैं तो आप उल्टा ही सोच रहे हैं।
राजपूतों पर कोई भी आरोप लगाया जा सकता है लेकिन मृत्यु से भय की बात तो उनके शत्रु भी नहीं मानते थे।
योद्धा को भी प्राण प्यारे होते हैं लेकिन एकाध को छोड़कर अधिकांश की मनोवृत्ति बदल जाती है।
आप योद्धा परंपरा से वाकिफ हुये बिना एक योद्धा को नहीं समझ सकते और तिसपर हिंदू परंपरा के योद्धा।
अन्य बर्बर जातियों के विपरीत भारतीय योद्धा सदैव ही संवेदनशील रहे हैं और ऊपर से करुणा व अहिंसा की लंबी परंपरा।
उनके लिए किसी की गर्दन काटना कभी आसान नहीं रहा।
प्राणभय से भी ज्यादा भयानक मंजर उनके संवेदनशील ह्रदयों के लिए युद्धभूमि के दृश्यों का होता था।
कटते गले,
फुदकते सिर
फैली अंतड़ियां,
खोपड़ी से निकलता भेजा,
गर्दन से पिचकारी के रूप में निकलता खून…….ये कोई आसान दृश्य नहीं होते।
युद्ध भूमि के ये दृश्य केवल युद्ध के दौरान ही नहीं बाद में भी उन्हें परेशान करते हैं, उन्हें सोने तक नहीं देते। इसलिये उनकी स्मृति क्षीण रहे और युद्ध में गला काटने में उनके हाथ कांप न जाएं इसलिये अफीम, बलि, शिकार आदि उनके व्यसन बनाये गए।
उन दृश्यों से उबरने के लिए प्रायः वे अफीम ताजिंदगी लेते रहते थे एकाध अपवादों को छोड़कर।
अब या तो उन दृश्यों को भुलाने के लिए अफीम लो या अशोक बनकर संन्यास का रास्ता चुन लें।
वे मरने से नहीं डरते थे बल्कि मरते हुए इंसानों के दर्द की यादों से डरते थे।
मुझे इस अनुभव का कैसे पता है?
इस पर फिर कभी।
और हाँ, इसके दुष्परिणाम भी कम नहीं हुए। प्रायः सभी राजपूत अफीम के आदी हो जाते थे जिसके कारण धीरे-धीरे उनकी विचारशक्ति कमजोर होती चली गई। तराइन के युद्ध में हार का कारण युद्ध से पूर्व की रात संधि के भुलावे में निश्चिंत होकर पृथ्वीराज चौहान द्वारा अफीम का गोला लेकर बेखबर सोना भी था, जब गोरी ने हमला शुरू किया था।

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