Home नया द्वैत_का_उपयोग
एक राजा राममोहन राय वह हैं जो अपने विवाह का सारा खर्च अकालपीड़ितों को भोजन कराने में खर्च कर देते हैं तो एक राजा राममोहनराय वह भी हैं जो अपनी माता को लाख रोने गिड़गिड़ाने पर भी तीर्थयात्रा पर नहीं भेजते क्योंकि उन्हें यह सब आडंबर लगता था।
#
एक स्वामी विवेकानंद वह हैं जो पश्चिमी सभ्यता और इस्लाम के अत्यचारों की कटु आलोचना करते हैं और दूसरे विवेकानंद वह भी हैं जो पश्चिमी ज्ञान और मुगलों व विशेषतः अकबर के प्रशंसक हैं।
#
एक महर्षि दयानंद वह हैं जिन्होंने प्रतिधर्मान्तरण की आंधी चला दी तो दूसरे दयानंद वह भी हैं जो मूर्तिपूजा और पौराणिक इतिहास के विरोध में इस्लामिक कट्टरता और पश्चिमी दुराग्रह को भी पार कर जाते हैं।
#
एक भगतसिंह वह हैं जो महाराणा प्रताप को अपना आदर्श मानते हैं तो दूसरे भगतसिंह वह भी हैं जो इस्लामिक कट्टरता का विरोध करने वाले लाला लाजपतराय की कठोर आलोचना करते हैं।
—–
ऐसे सैकड़ों विरोधाभास सैकड़ों महापुरुषों के जीवन में गिनाए जा सकते हैं लेकिन प्रश्न यह है कि आप अपने वर्तमान के लिए उनमें से क्या चुनते हैं।
आप किसी भी महापुरुष के जीवन की किसी एक घटना या सिद्धांत पर उनका नितांत एकपक्षीय ढंग से हर बात पर समर्थन करते हैं या एक नापसंद घटना के आधार पर उनकी निंदा करते हैं तो आप अपने वर्तमान परिवेश को विषैला करके उसे नरक बना रहे होते हैं।
—–
-राजा राममोहन राय के जीवन की दूसरी घटना के आधार पर,
-स्वामी विवेकानंद के मुगल व अकबर प्रेम के आधार पर,
-महर्षि दयानंद के कट्टर मूर्तिभंजक विचारों के आधार पर,
-भगतसिंह के धर्मनिरपेक्ष विचारों के आधार पर,
अगर उन्हें खारिज करते हैं तो आप अपनी विरासत से स्वयं हाथ धो रहे होते हैं।
बेहतर हो कि इन महापुरुषों के जिन विचारों से आपकी असहमति हो उन्हें एक तरफ रखकर और अगर जरूरत पड़े तो संयत आलोचना करके भी उनकी वंदना करना सीखिये।
उन्होंने अपने युग में देशकाल के अनुसार, अपने विचारों के अनुसार, अपने राष्ट्र व धर्म की हर संभव सेवा की।
उनमें भी कमियां थीं क्योंकि वे महामानव होकर भी अंततः मानव ही थे लेकिन फिर भी उनका राष्ट्र के प्रति योगदान आपसे कोटिशः अधिक है।
इसलिये उनकी आलोचनाओं के उपरांत भी हम उनका कर्ज उतारने की क्षमता नहीं रखते।

Related Articles

Leave a Comment